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Bihar Assembly Election 2025: चुनाव की तारीखों के एलान के साथ बिहार में आदर्श आचार संहिता लागू, पूरी तरह से बैन होंगे यह काम

Bihar Assembly Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों के एलान के साथ राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो गई है। अब कोई नई योजना, उद्घाटन या तबादले नहीं होंगे। जानिए क्या-क्या रहेगा पूरी तरह से प्रतिबंधित।

1st Bihar Published by: FIRST BIHAR Updated Mon, 06 Oct 2025 04:35:48 PM IST

Bihar Election 2025

- फ़ोटो Google

Bihar Assembly Election 2025: भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान कर दिया है। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने बिहार चुनाव का शेड्यूल जारी किया है। बिहार में चुनावी बिगुल बजने के साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता लागू हो गया। आचार संहिता लागू होने के बाद अब नई सरकार के गठन से पहले सभी तरह के विकास कार्य बंद रहेंगे।


दरअसल, बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राज्य में आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) प्रभावी हो गई है। इसके लागू होते ही सरकार, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों पर कई सख्त नियम लागू हो जाते हैं, जिससे चुनाव की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके। बिहार में पहली बार दो चरणों में चुनाव कराए जाएंगे। 6 और 11 नवंबर को वोटिंग होगी जबकि चुनाव के नतीजे 14 नवंबर को आएंगे।


क्या है आचार संहिता का उद्देश्य?

आचार संहिता का मुख्य उद्देश्य समान और निष्पक्ष चुनाव कराना है। यह सुनिश्चित करती है कि सत्ताधारी दल अपनी स्थिति का दुरुपयोग न कर सके और मतदाता बिना किसी दबाव के वोट दे सकें। इस अवधि में राज्य सरकार केवल रूटीन प्रशासनिक कार्य कर सकती है।


क्या-क्या नहीं कर सकती सरकार?

आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद सरकार कोई नई योजना, परियोजना, उद्घाटन या शिलान्यास की घोषणा नहीं हो सकती। वित्तीय निर्णय, बजट आवंटन, स्थानांतरण, पदोन्नति और नियुक्तियों पर रोक लग जाती है। सरकारी भवनों, संसाधनों और कर्मचारियों का राजनीतिक उपयोग प्रतिबंधित हो जाता है। सरकारी विज्ञापन, प्रचार या किसी भी पार्टी की उपलब्धियों का बखान रोक दिया जाता है।


प्रशासनिक नियंत्रण अब आयोग के हाथ

जैसे ही चुनाव की तारीखों की घोषणा होती है, उसी क्षण से आचार संहिता लागू हो जाती है। अब सभी DM, SP, BDO, SDO और ब्लॉक स्तरीय अधिकारी सीधे निर्वाचन आयोग के अधीन आ जाते हैं। बिना चुनाव आयोग की अनुमति, किसी अधिकारी का तबादला या नियुक्ति नहीं हो सकती। इस दौरान प्रशासन का मुख्य कार्य केवल चुनाव प्रक्रिया संचालित करना होता है।


राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए कड़े नियम

इसके लागू होने के बाद राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए धर्म, जाति, भाषा या क्षेत्र के नाम पर वोट मांगना सख्त वर्जित है। भड़काऊ भाषण, नफरत फैलाने वाली बातें और सांप्रदायिक बयानबाजी पर पूर्ण रोक है। मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए कोई उपहार, पैसा या प्रलोभन नहीं दिया जा सकता।


डिजिटल प्लेटफॉर्म भी आयोग की निगरानी

अब चुनाव आयोग केवल मैदान तक ही सीमित नहीं है, बल्कि सोशल मीडिया, व्हाट्सएप ग्रुप, फेसबुक विज्ञापन और डिजिटल संदेशों पर भी कड़ी नजर रखता है। हर उम्मीदवार को अपने डिजिटल खर्च का ब्यौरा देना होता है। फेक न्यूज या भ्रामक सूचना फैलाने पर आईटी और चुनाव कानून के तहत कार्रवाई की जा सकती है।


उल्लंघन पर सख्त कार्रवाई

अगर कोई मंत्री या उम्मीदवार आचार संहिता का उल्लंघन करता है, तो निर्वाचन आयोग नोटिस जारी कर जवाब तलब कर सकता है। जरूरत पड़ने पर उसके खिलाफ FIR दर्ज दर्ज किया जा सकता है, चुनाव प्रचार पर रोक लगाया जा सकता है और जुर्माना या नामांकन रद्द तक की कार्रवाई संभव है।


आयोग के नियंत्रण में राज्य की सत्ता

आचार संहिता लागू होने के साथ ही बिहार में सत्ता और प्रशासन का संतुलन बदल गया है। अब सरकार की गतिविधियां सीमित हो जाती हैं और राज्य की पूरी प्रशासनिक व्यवस्था आयोग की निगरानी में आ जाती है। इसका उद्देश्य यही है कि कोई भी पार्टी या नेता अपने पद का दुरुपयोग कर चुनावी फायदे न उठा सके और लोकतंत्र की मूल भावना सुरक्षित रहे।