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Makar Sankranti 2025: सनातन धर्म में मकर संक्रांति का पर्व विशेष महत्व रखता है। यह त्योहार हर साल सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश (गोचर) करने के दिन मनाया जाता है। मकर संक्रांति न केवल खगोलीय घटना है, बल्कि यह आध्यात्मिक, पौराणिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन गंगा और अन्य पवित्र नदियों में स्नान, सूर्य देव की पूजा और दान-पुण्य का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, इस पावन तिथि पर गंगा स्नान से अक्षय पुण्य और पापों से मुक्ति प्राप्त होती है।
पौराणिक कथा
मकर संक्रांति का संबंध सूर्य देव और उनके पुत्र शनिदेव के संबंधों से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, शनिदेव के रूप (वर्ण) को देखकर सूर्य देव ने उन्हें अपनाने से मना कर दिया। इससे माता छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दिया। सूर्य देव के क्रोध से शनिदेव और माता छाया को कष्ट झेलना पड़ा। बाद में यम देव ने सूर्य देव को समझाकर उनके क्रोध को शांत किया। इस तिथि पर सूर्य देव शनिदेव से मिलने पहुंचे, और शनिदेव ने उन्हें तिल अर्पित कर उनका स्वागत किया।
मकर संक्रांति की परंपरा और महत्व
सूर्य देव और शनिदेव के पुनर्मिलन की इस पावन घटना को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इस दिन तिल और गुड़ का दान करने और तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करने की परंपरा है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों का नहीं, बल्कि आपसी स्नेह, मेल-जोल और सौहार्द का भी प्रतीक है।
मकर संक्रांति का शुभ मुहूर्त (2025)
पुण्य काल: सुबह 07:33 बजे से शाम 06:56 बजे तक
महा पुण्य काल: सुबह 07:33 बजे से सुबह 09:45 बजे तक
मकर संक्रांति का पर्व हमें कर्म, त्याग, और प्रेम के महत्व को समझने का अवसर प्रदान करता है। इस दिन की परंपराएं और कथा हमें सिखाती हैं कि संबंधों में स्नेह और क्षमा से बड़ा कुछ नहीं होता।