ब्रेकिंग न्यूज़

Bihar Teacher News: फर्जी प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे कई शिक्षक बर्खास्त, जिला शिक्षा पदाधिकारी के बड़े एक्शन के बाद मचा हड़कंप SVU Raid: CO के ठिकाने पर बड़ी रेड, SVU सुबह से कर रही छापेमारी, कुछ दिनों पहले हुए थे निलंबित Bihar News: चलो शराब पीकर शराबियों को पकड़ते हैं".. जाम छलकाते थाने का ड्राइवर वायरल, अब होगा बड़ा एक्शन Bihar politics: तेजस्वी के तीन विधायक वांटेड...पुलिस को है तलाश, BJP ने जारी किया पोस्टर Religion: हनुमान जी की पूजा में करें इन मंत्रों का जाप, चमक उठेगा सोया हुआ भाग्य BIHAR JOB UPDATE: पैरों में चिप लगाकर दौड़ेंगे होम गार्ड अभ्यर्थी, चेस्ट मापने के लिए लगेगा यह मशीन Patna University: पटना यूनिवर्सिटी में आपको भी लेना है एडमिशन तो नोट कर लें यह डेट, जारी किया कैलेंडर Bihar Election 2025 : एक घंटे तक तेजस्वी और राहुल -खड़गे में हुई बातचीत,आखिर क्यों नहीं बन रही सहमति; पढ़िए यह खबर BIHAR NEWS: पटना जेपी पथ में आई दरार पर NIT की आई रिपोर्ट, जानिए जांच के बाद क्या मिला आदेश Bihar Rain Alert: आंधी-बारिश से पूरे बिहार की हवा हुई साफ, आज इन जिलों में अलर्ट जारी

IPS In Bihar Politics : DGP गुप्तेश्वर पांडे से लेकर DP ओझा तक...क्यों बिहार की सियासत में फीकी पड़ गई 'खाकी'? क्या लांडे भी हो जाएंगे फेल!

IPS In Bihar Politics : बिहार की राजनीति में पुलिस अधिकारियों का प्रवेश कोई नई बात नहीं है, लेकिन सफलता आज भी उनसे कोसों दूर है। डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे, डीपी ओझा और आशीष रंजन जैसे नाम जब राजनीति में आए तो बड़ी उम्मीदें थीं?

Bihar politics, IPS officer in politics, Shivdeep Lande, Hind Sena, Gupteshwar Pandey, DP Ojha, Bihar election 2025, khaki in politics, बिहार चुनाव, गुप्तेश्वर पांडे, शिवदीप लांडे, खाकी वर्दी राजनीति,

14-Apr-2025 05:12 PM

 IPS In Bihar Politics : बिहार की सियासत में एक बार फिर से पुलिस की खाकी वर्दी चर्चा में है। पूर्व आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे ने राजनीति में कदम रखते हुए अपनी पार्टी 'हिंद सेना' बनाने का ऐलान किया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या लांडे बिहार में खाकी की सियासी पकड़ को मजबूत कर पाएंगे? क्योंकि इतिहास पर नजर डालें तो कई नामचीन पुलिस अधिकारी जब-जब इलेक्टोरल राजनीति में आए, लेकिन सियासत में  फिसड्डी साबित हुए |

गुप्तेश्वर पांडे से डीपी ओझा तक ,ज्यादातर पुलिस अधिकारी फेल

पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे जब राजनीति में आए, तो उन्होंने बड़े जोश से VRS लेकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी की। लेकिन उन्हें टिकट तक नहीं मिला आपको बता दे कि इसी तरह,वो 2011 में  भी VRS लेकर कथित तौर पर बक्सर लोकसभा से टिकट लेने कि होड़ में थे लेकिन उनको टिकट नही दिया गया | वहीँ डीजीपी आशीष रंजन को कांग्रेस ने टिकट दिया, पर वो नीतीश कुमार के गढ़ नालंदा में हार गए।यही  हाल डीपी ओझा का हुआ, जो कभी शहाबुद्दीन से टकराने वाले बहादुर पुलिस अफसर माने जाते थे, लेकिन बेगूसराय से बुरी तरह चुनाव हार गए।

लांडे की राजनीति में  राह आसान नहीं 

शिवदीप लांडे की छवि एक सख्त और जनप्रिय अधिकारी की रही है। युवाओं के बीच उनकी पकड़ भी मजबूत है। लेकिन राजनीति में सिर्फ लोकप्रियता काफी नहीं होती। बिहार की राजनीति जाति, गठबंधन और जमीनी नेटवर्क पर चलती है, जिसमें नई पार्टियों को खड़ा करना आसान नहीं। लांडे की 'हिंद सेना' कितनी असरदार होगी, ये तो आने वाला वक्त  बताएगा।

किसे मिली राजनीति में कामयाबी? 

कुछ नाम जैसे निखिल कुमार, ललित विजय और सुनील कुमार ऐसे रहे जो खाकी छोड़कर चुनावी रण में उतरे और मंत्री पद तक पहुंचे। लेकिन ये लोग या तो मजबूत राजनीतिक पारिवारिक पृष्ठभूमि से थे या फिर उन्हें किसी स्थापित और किसी मजबूत पार्टी का समर्थन मिला।

बिहार में खाकी क्यों नहीं चमक पाई?   

बिहार की राजनीति में जब कोई पूर्व पुलिस अधिकारी चुनाव लड़ता है, तो आम जनता उसे ‘सिस्टम’ का हिस्सा मानती है, न कि मसीहा। दूसरी बात, खाकी में अनुशासन तो होता है, लेकिन राजनीति में लचीलापन और गठजोड़ की कला ज्यादा मायने रखती है। शायद यही वजह है कि 'इमानदारी' और 'कड़क छवि' वाले अफसर भी चुनाव में हार जाते हैं। 

जनता से जुड़ाव चुनाव में  कैसे अहम् रोल प्ले करता है |

अफसर जब चुनाव में आते हैं, तो उन्हें जनता बाहरी या अपरिचित चेहरा मानती है। वहीं, स्थानीय दबंग, भले ही अनपढ़ हों, लेकिन उनका हर गली-मोहल्ले में कनेक्शन होता है ,शादी-ब्याह और सभी कार्यक्रमों में   शामिल होते हैं, लोगों को जब जरुरत पड़ती है चाहे पैरवी करने कि बात हो या  कोई और मदद ,लिहाजा लोग उन्हें अपना नेता मान बैठते हैं।

आपको बता दे कि बिहार जैसे राज्यों में चुनाव जितने में  लोकप्रियता, जाति, ज़मीनी पकड़, और गठबंधन कौशल पर ज्यादा निर्भर करता है। पढ़ाई-लिखाई, ईमानदारी और सिस्टम का अनुभव जरूरी जरूर है, लेकिन ये राजनीति जीतने की गारंटी नहीं प्रदान करता है | अधिकारी बहुत अच्छे वक्ता हो सकते हैं, लेकिन उनके भाषणों में अक्सर भावनात्मक जुड़ाव की कमी होती है। दूसरी ओर, एक लोकल नेता जो लोगों के बीच का है ,और लोगों के लिए उपलव्ध रहता  है,जनता उसे आसानी से अपना नेता स्वीकार कर लेती है |

क्या शिवदीप लांडे बदलेंगे इतिहास?  

शिवदीप लांडे के पास अब ये चुनौती है कि नई पार्टी को खड़ा करना, जनता से जुड़ना और पुराने अफसरों की विफलता से सबक लेना। उनकी लोकप्रियता ज़रूर है, लेकिन बिहार की सियासत में बदलाव लाने के लिए उन्हें सिर्फ छवि नहीं, ठोस रणनीति और गठबंधन की ज़रूरत पड़ेगी। बिहार में अब तक 'खाकी' की राजनीति कोई बड़ा प्रभाव नहीं छोड़ पाई है। अब देखना ये है कि क्या शिवदीप लांडे अपनी नई पार्टी ‘हिंद सेना’ के जरिए इस ट्रेंड को तोड़ पाएंगे या वो भी पूर्व अधिकारियों की तरह कही भीड़ में गुम हो जाएंगे।