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04-Nov-2022 06:08 PM
PATNA : श्री सीताराम आश्रम ट्रस्ट, राघवपुर में स्वामी सहजानंद सरस्वती : एक अमेरिकी दृष्टिकोण " विषय पर अमेरिका के वेस्लेन विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर विलियम आर पिंच ने व्याख्यान दिया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत में नागा साधु है जबकि यूरोप में साधु नहीं है। साधु व समप्रदाय भारत में ही क्यों होते हैं, यूरोप में क्यों नहीं ? पुरोहित व महंथ वहां दूर रहते हैं जबकि यहां राजनीति में शामिल रहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि स्वामी सहजानन्द वैकल्पिक और स्वालटर्न दृष्टिकोण के लिए जाने जाते हैं। स्वामी जी किसान परिवार से आते थे अतः किसान के नजरिये से, नीचे से राजनीति को देखने की कोशिश करते थे।
उन्होंने कहा कि हम लोग अमेरिका में स्वामी सहजानन्द सरस्वती में कैसे पढ़ाते हैं लोगों में यह सवाल रहता है, तो इसका जवाब है कि हमारे विश्वविद्यालय में कोर्स खुद डिजायन करवाया जाता हैं। हम लोग कोर्स कहते हैं और भारत में लोग इसे पेपर कहते हैं। उन्होंने कहा कि मैं दूसरे ढंग का इतिहासकार हूं, मुझे शुरूआती दिनों से ही साधु, स्वामी, अखाड़ा इन सब में काफी दिलचस्पी रही है।
अमेरिका में भारत, पकिस्तान, बंगला देश को दक्षिण एशिया के रूप में देखते हैं। हमलोग प्राथमिक श्रोत, सेकेण्डरी सोर्स का इस्तेमाल करते हैं। यानी दस फ़िल्म, चार किताब सेकेण्डरी सोर्स का काम करता है। फिर स्वामी सहजानंद सस्वती की किताब से उनके बारे में छात्र सीखते हैं। फ़िल्म , किताब और प्राइमरी सोर्स से समझने की कोशिश करते हैं कि बिहार में स्वामी सहजानंद ने क्या किया किया था। लैंड को कैसे संगठित किया जाता है। परमांनेंट सेटलमेंट और बंगाल तेनेसी एक्ट के बारे में पढ़ाया जाता है। हमलोग सीपीआई, सीपीम, एमएल मुवमेंट के बारे में भी पढ़ाते हैं। महात्मा गांधी और स्वामी सहजानन्द के बीच जब मुलाक़ात हुई तो क्या हुआ, उनकी आत्मकथा में जाति, समुदाय के बारे में, उनके देवा गाँव के बारे में पढ़ाई करवाई जाती है।
उन्होंने कहा कि स्वामी जी पहले ट्रैकर थे जो बनारस, मथुरा, बदरी नाथ, तब सब जगह पैदल गए। उनका भारत का अपना अनुभव था। विलियम आर पिंच ने आगे कहा " शिक्षा और भाषा का क्या संबंध है वह सहजानंद जी समझते हैं। स्वामी जी बहुत तेज छात्र थे। वे कहा करते कि अंग्रेज़ी पढ़ना एलीट का अहसास कराता है। स्वामी जी अपने शिक्षकों से असंतुष्ट रहा करते थे। स्वामी जी की मौसी को दुख था था कि स्वामी जी ने इतनी जल्दी क्यों सन्यास ग्रहण कर लिया।