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09-Jun-2025 01:38 PM
By First Bihar
AI Enabled Negev LMG: भारत ने रक्षा प्रौद्योगिकी में एक और बड़ा कदम उठा लिया है। देहरादून की कंपनी BSS मटेरियल ने भारतीय सेना के साथ मिलकर AI-संचालित नेगेव लाइट मशीन गन (LMG) का 14,000 फीट की ऊंचाई पर कठिन सीमाई इलाकों में सफल परीक्षण किया है। यह हथियार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस है, जो दुश्मनों को स्वचालित रूप से पहचानकर फायर कर सकता है।
नेगेव LMG को इजरायल वेपन्स इंडस्ट्रीज (IWI) ने विकसित किया है और यह दुनिया की सबसे घातक मशीन गनों में से एक है। भारतीय सेना ने 2020 में 16,479 नेगेव NG-7 गन्स के लिए 880 करोड़ रुपये का सौदा किया था, जिनमें से 6,000 की पहली खेप जनवरी 2021 में मिली थी। अब BSS मटेरियल ने इस हथियार को AI तकनीक के साथ और उन्नत बनाया है। जिससे यह बिना मानव हस्तक्षेप के लक्ष्य भेदने में सक्षम है। यह तकनीक खासकर उन सीमाई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है, जहां सैनिकों की तैनाती बेहद जोखिम भरी होती है।
इस हथियार का वजन 7.65 किलोग्राम है और यह 5.56x45mm या 7.62x51mm नाटो कारतूस पर काम करता है। गैस-ऑपरेटेड रोटेटिंग बोल्ट तकनीक से लैस यह गन प्रति मिनट 850 से 1,050 राउंड फायर कर सकती है। इसकी गोलियां 915 मीटर प्रति सेकंड की गति से 300 से 1,000 मीटर की रेंज में लक्ष्य को भेद सकती हैं और इसकी अधिकतम रेंज 1,200 मीटर है। यह 150 से 200 राउंड की बेल्ट या 35 राउंड की मैगजीन के साथ काम करती है। नेगेव NG-7 में सेमी-ऑटोमैटिक और फुली-ऑटोमैटिक मोड हैं, जो इसे नजदीकी युद्ध और लंबी दूरी दोनों के लिए प्रभावी बनाते हैं।
इस परीक्षण का उद्देश्य हथियार की कार्यक्षमता और सटीकता का आकलन करना था। AI तकनीक इस गन को दुश्मनों को स्वचालित रूप से पहचानने और फायर करने की क्षमता देती है। जिससे जवानों की सुरक्षा बढ़ती है और ऑपरेशनल दक्षता में सुधार होता है। मेघालय और लद्दाख जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह हथियार गेम-चेंजर साबित हो सकता है। मई 2020 से लद्दाख में चीनी सेना के साथ तनाव के बीच भारतीय सेना ने आधुनिक हथियारों की खरीद तेज की है और यह AI-संचालित नेगेव LMG उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
BSS मटेरियल और भारतीय सेना का यह सहयोग न केवल रक्षा क्षेत्र में स्वदेशी तकनीक को बढ़ावा देता है, बल्कि भविष्य के युद्धों के लिए भारत को तैयार भी करता है। इस तरह के हथियार सीमा पर निगरानी और त्वरित कार्रवाई की क्षमता को बढ़ा देंगे। जिससे सैनिकों को जोखिम भरे मिशनों में अतिरिक्त सुरक्षा मिलेगी। यह प्रोजेक्ट भारत की रक्षा आत्मनिर्भरता को मजबूत करने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।