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17-Mar-2025 02:31 PM
By First Bihar
SAHARSA: कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों...! इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया है सहरसा के 30 वर्षीय पिंटू कुमार ने जो अपने लग्न और मेहनत की बदोलत हर साल 10लाख रुपये कमा रहे हैं। इतनी बड़ी रकम वो मधुमक्खी पालन से कमा रहे हैं। आज हम जानेंगे सहरसा के पिंटू की सफलता की कहानी।
दरअसल पिंटू सहरसा जिले के सौरबाजार प्रखंड के खजूरी पंचायत का रहने वाला है। पिंटू ने मधुमक्खी पालन में एक नई पहचान बनाई है। राजस्थान में नौकरी के दौरान मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया, जहां उन्हें इसकी संभावनाओं के बारे में जानकारी मिली। ट्रेनिंग के उपरांत उसने वो कर दिखाया जो सबसे बस की बात नहीं थी। आज पिंटू मधुमख्खी पालन कर हर साल 10 लाख से ज्यादा कमा रहा है। यह सब उसकी मेहनत का फल है।
पिंटू आज जितना कमाता है उतना प्राइवेट जॉब में रहते कभी नहीं कमा पाता। आज पिंटू मधुमक्खी पालन कर पूरी तरह से आत्मनिर्भर हो गया है। जिससे वो आज काफी खूश है। परिवार चलाने में अब कही कोई दिक्कत नहीं होती जबकि पहले जब वो राजस्थान में जॉब करता था तब टेंशन भी अधिक रहता था और पैसा भी कम मिलता था।
2020 में गांव लौटकर किया मधुमक्खी पालन शुरुआत
प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद पिंटू ने साल 2020 में अपने गांव लौटकर मधुमक्खी पालन शुरू करने का फैसला किया। शुरुआती दिनों में उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी मेहनत और समर्पण के बल पर उन्होंने धीरे-धीरे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाया।
प्रत्येक सप्ताह 35 बाल्टी शहद का उत्पादन
पिंटू ने बताया कि मधुमक्खी पालन का लाभ मौसम के अनुसार बढ़ता है। खासकर सरसों और सूरजमुखी के फूलों के समय मधुमक्खियों को पर्याप्त पराग और अमृत मिलने से शहद का उत्पादन बढ़ जाता है। वर्तमान में उनके पास 250 बॉक्स हैं, जिनमें मधुमक्खियां पाली जाती हैं। हर सप्ताह एक बार शहद निकाला जाता है, जिससे 30 से 35 बाल्टी शहद का उत्पादन होता है।
बिना सरकारी मदद, सीधी थोक बिक्री से फायदा
उन्होंने बताया कि उनका व्यवसाय पूरी तरह आत्मनिर्भर है और किसी सरकारी सहायता पर निर्भर नहीं है। वे अपना शहद बड़ी कंपनियों को सीधे बेचते हैं, जिससे उन्हें अच्छा मुनाफा होता है। खुदरा बाजार में सप्लाई न करने की रणनीति के कारण उन्हें थोक बिक्री से अधिक लाभ मिलता है।
पिंटू युवाओं को कर रहे प्रेरित
पिंटू अकेले इस व्यवसाय को नहीं चला रहे, बल्कि उनके गांव के दो अन्य साथी भी इससे जुड़े हुए हैं, जिससे कारोबार तेजी से बढ़ रहा है। उनका मानना है कि मधुमक्खी पालन ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत की है, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी स्वरोजगार अपनाने के लिए प्रेरित किया है। पिंटू ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान ही उन्होंने नौकरी के बजाय खुद का व्यवसाय करने का फैसला किया था, क्योंकि किसी और के लिए काम करने की बजाय उन्हें आत्मनिर्भर बनना अधिक फायदेमंद लगा।