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02-Aug-2025 10:57 AM
By First Bihar
Bihar News: बिहार के मोतिहारी से आई यह तस्वीर न सिर्फ चौंकाने वाली है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था की बदहाली की असलियत भी उजागर करती है। नगर निगम के वार्ड संख्या 35 के बेलीसराय मोहल्ले में स्थित तीन स्कूलों की स्थिति इतनी दयनीय है कि वहां कोई बच्चा स्कूल जाने की हिम्मत नहीं करता। यह हाल तब है जब ये स्कूल जिला शिक्षा पदाधिकारी (D.E.O) के कार्यालय से महज 500 मीटर की दूरी पर स्थित हैं। इनमें से एक स्कूल पूरी तरह बंद पड़ा है, जबकि दो स्कूलों में शिक्षक-शिक्षिकाएं नियमित रूप से उपस्थित रहते हैं। बच्चों का नामांकन भी दर्ज है, लेकिन उपस्थित शून्य के करीब है।
इसकी सबसे बड़ी वजह है स्कूल के चारों ओर सालभर भरा रहने वाला गंदा और बदबूदार पानी, जिसमें सांप, बिच्छू, मच्छर और अन्य कीड़े-मकौड़े पाए जाते हैं। यह सिर्फ असुविधा नहीं, बल्कि बच्चों की जान के लिए खतरा बन चुका है। बारिश के मौसम में हालात और भी बदतर हो जाते हैं। स्कूल के तीनों क्लासरूम पानी से लबालब भरे हुए हैं, जिससे पढ़ाई के लिए कक्षा में बैठना नामुमकिन हो गया है। मजबूरी में कुछ गिने-चुने बच्चे बरामदे में प्लास्टिक की दरी पर बैठकर पढ़ाई करते हैं, वो भी तब जब उनके अभिभावक खतरा मोल लेने को तैयार हों।
प्रधानाध्यापक राजकुमार, जिन्होंने हाल ही में इस विद्यालय की जिम्मेदारी संभाली है, ने बताया कि स्थिति अत्यंत गंभीर है और उन्होंने इसकी लिखित सूचना जिला शिक्षा पदाधिकारी को दी है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि अब तक कोई अधिकारी स्कूल का स्थलीय निरीक्षण करने नहीं आया और न ही मरम्मत या जलनिकासी की दिशा में कोई कार्यवाही हुई है। उनका कहना है कि यह स्थिति बच्चों के अनुकूल नहीं है और बिना शीघ्र कार्रवाई के हालात और बिगड़ सकते हैं।
स्थानीय निवासियों और अभिभावकों का कहना है कि बच्चों को स्कूल भेजना जान जोखिम में डालने जैसा है। कई बार स्कूल प्रशासन और नगर निगम से शिकायत की गई, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला। नतीजा यह है कि बच्चे घरों में कैद होकर रह गए हैं और उनकी पढ़ाई पूरी तरह ठप है। बच्चों ने खुद कहा कि स्कूल आने में डर लगता है – एक ओर पानी से टपकती छतें, दूसरी ओर कीड़ों और गंदगी का आतंक।
सबसे चिंता की बात यह है कि यह स्कूल उस कार्यालय से चंद कदमों की दूरी पर है, जिसका दायित्व जिले के सभी स्कूलों की निगरानी करना है। जब इस स्थिति की अनदेखी हो रही है, तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि जिले के सुदूर क्षेत्रों में मौजूद स्कूलों की हालत कैसी होगी? यह सिर्फ एक स्कूल की नहीं, बल्कि पूरे शिक्षा तंत्र की विफलता की कहानी है। यह वह सिस्टम है जहाँ योजनाएँ केवल कागज़ों पर बनती हैं, जबकि जमीनी हकीकत गंदे पानी में डूबी हुई है।
शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह इस मसले को गंभीरता से ले और तत्काल कार्रवाई करते हुए जलनिकासी की व्यवस्था, स्कूल की मरम्मत तथा पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को प्राथमिकता दे, ताकि बच्चों का भविष्य इस गंदगी और डर के बीच न सड़ता रहे। शिक्षा सिर्फ किताबों से नहीं, एक सुरक्षित, स्वच्छ और प्रेरक माहौल से फलती-फूलती है, जो यहां पूरी तरह नदारद है।