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11-Mar-2025 12:06 PM
Bihar news: पूर्णिया से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है, जहां पदस्थापित एक पुलिस पदाधिकारी के खिलाफ दर्ज हत्या का राज छिपा रह गया और आरोपित पुलिस इंस्पेक्टर के सिर डीएसपी का ताज सज गया। दरअसल मामला सामने आने के बाद राज्य पुलिस मुख्यालय ने पूरे मामले की जांच कर पूर्णिया डीआईजी से रिपोर्ट मांगी है। राज्य पुलिस मुख्यालय के निर्देश पर डीआईजी ने पूर्णिया एसपी जवाब मांगी है और कहा है कि जब पुलिस निरीक्षक के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज था तो फिर सेवा पुस्तिका में इसे अंकित क्यों नहीं किया गया। इस पूरे मामला का रिपोर्ट तीन दिनों के अन्दर पूर्णिया एसपी को देने होंगे।
सेवा पुस्तिका में हत्या जैसे संगीन मामले दर्ज नहीं होने के कारण पुलिस इंस्पेक्टर मुखलाल पासवान को राज्य मुख्यालय स्तर पर इंस्पेक्टर से पदोन्नति करते हुए डीएसपी बनाया गया है. वहीं पुलिस निरीक्षक मुखलाल पासवान पांच सितंबर, 1994 को पुलिस व निरीक्षक के पद पर नियुक्त हुए थे। आठ नवंबर 1995 से लेकर 20 जुलाई 1999 तक पूर्णिया जिला बल में पुलिस और निरीक्षक के पद पर पदस्थापित रहे। इस दौरान इनके खिलाफ बिहारीगंज थाने में हत्या का मामला दर्ज हुआ।
हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि हत्या का मामला दर्ज रहने के बाद भी पुलिस और निरीक्षक मुखलाल पासवान को पहले पुलिस निरीक्षक और फिर पुलिस उपाधीक्षक में पदोन्नति की गई। हत्या के इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही थी। जब सीबीआई कोर्ट ने इस मामले में आरोपित तत्कालीन दारोगा और वर्तमान में डीएसपी बने मुखलाल पासवान को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, तो राज्य पुलिस मुख्यालय इस मामले को लेकर गंभीर हुआ कि हत्या आरोपित दारोगा को पहले इंस्पेक्टर व फिर डीएसपी में प्रमोशन कैसे मिल गई।
जानकारी मिलते ही राज्य पुलिस मुख्यालय ने इस मामले की जांच का आदेश दिया है और आरोपित पुलिस पदाधिकारी की प्रमोशन के लिए प्रस्ताव भेजने वाले पुलिस पदाधिकारियों की पहचान करने का भी निर्देश दिया है। वहीं मुखलाल पासवान के खिलाफ हत्या का यह मामला 12 दिसंबर 1998 को दर्ज किया गया था। फिर भी ये लगातार तरक्की कर रहे थे, इनका तबादला 4 अगस्त 2016 को विशेष शाखा पटना में किया गया था।
जानकारी के अनुसार जब भी किसी अधिकारी का पदोन्नति की जाती है तो हर पदोन्नति के पूर्व अधिकारी को स्वलिखित घोषणा भी करनी पड़ती है कि उनके खिलाफ किसी भी मामले में न्यायालय में कोई मामला दर्ज नहीं है, लेकिन सूचना के अनुसार मुखलाल पासवान मामले में सभी प्रविधानों को नजरअंदाज किया गया था और कोई भी लिखित आवेदन नहीं जमा कराया गया था।