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Kurma Dwadashi: कूर्म द्वादशी, सनातन धर्म में भगवान विष्णु के कूर्म (कछुए) अवतार को समर्पित एक महत्वपूर्ण पर्व है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत को स्थिर रखने के लिए कूर्म रूप धारण किया था। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है। यह पर्व धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
कूर्म द्वादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
पौष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि पर कूर्म द्वादशी मनाई जाती है। इस वर्ष यह पर्व शुक्रवार, 10 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा। वैदिक पंचांग के अनुसार, द्वादशी तिथि 10 जनवरी को सुबह 10:19 बजे शुरू होगी और 11 जनवरी को सुबह 8:21 बजे समाप्त होगी।
कूर्म द्वादशी का महत्व
कूर्म द्वादशी का संबंध भगवान विष्णु के उस अवतार से है, जब उन्होंने मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थिर करके देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन को संभव बनाया। इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है, सभी कष्ट दूर होते हैं, और भक्तों को सुख-शांति प्राप्त होती है। यह दिन मोक्ष की प्राप्ति और आत्मिक शुद्धि के लिए भी विशेष महत्व रखता है।
कूर्म द्वादशी की पूजा विधि
स्नान और शुद्धिकरण: कूर्म द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और अपने मन को पवित्र करें। पूजा स्थल को स्वच्छ करें।
चौकी की स्थापना: पूजा स्थल पर एक चौकी रखें और उस पर लाल रंग का स्वच्छ कपड़ा बिछाएं। इस पर भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
पूजा सामग्री अर्पित करें: दीप जलाएं और भगवान को सिंदूर, अक्षत, चंदन, फूल और तुलसी दल अर्पित करें। तुलसी के बिना विष्णु पूजा अधूरी मानी जाती है।
कुर्म स्तोत्र का पाठ: इस दिन कुर्म स्तोत्र का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
भोग लगाएं: भगवान को भोग अर्पित करें, जिसमें फल, मिठाई और विशेष रूप से तुलसी के पत्ते शामिल हों।
आरती और प्रसाद वितरण: पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करें और प्रसाद सभी में वितरित करें।
कुर्म स्तोत्र का महत्व
कुर्म स्तोत्र का पाठ कूर्म द्वादशी के दिन विशेष फलदायी माना गया है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की महिमा का गुणगान करता है। इसके नियमित पाठ से मन को शांति मिलती है और भक्त की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। कुर्म स्तोत्र इस प्रकार है:
श्रीगणेशाय नमः
॥ देवा ऊचुः ॥
नमाम ते देव पदारविंदं प्रपन्नतापोपशमातपत्रम्।
यन्मूलकेता यततोऽञ्जसोरु संसारदुःखबहिरुत्क्षिपंति॥
(पूर्ण स्तोत्र पाठ पूजा के दौरान किया जाता है।)
विशेष संयोग
इस वर्ष कूर्म द्वादशी पर ध्रुव योग और शिववास योग का संयोग बन रहा है, जो इस दिन की शुभता को और भी अधिक बढ़ा देता है। इन योगों में की गई पूजा विशेष फलदायी होती है और जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है।
कूर्म द्वादशी का आध्यात्मिक संदेश
कूर्म द्वादशी केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह जीवन में स्थिरता और कर्तव्य परायणता का प्रतीक है। भगवान विष्णु के कूर्म अवतार से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में चाहे कितने भी संकट आएं, स्थिरता और धैर्य से उनका सामना करना चाहिए। इस दिन की पूजा हमें ईश्वर के प्रति समर्पण और अपने कर्तव्यों के प्रति निष्ठा की प्रेरणा देती है। कूर्म द्वादशी के पवित्र अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करके उनकी कृपा प्राप्त करें और अपने जीवन को सुखमय बनाएं।