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Kanha Chhathi 2025: गोकुल में कैसे मनाई जाती है लड्डू गोपाल की छठी? जानें... मुहूर्त और महत्त्व

Kanha Chhathi 2025: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के छह दिन बाद मनाई जाने वाली कान्हा की छठी 21 और 22 अगस्त 2025 को नंदबाबा गांव में धूमधाम से मनाई जाएगी। जानें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और परंपराएं।

1st Bihar Published by: First Bihar Updated Thu, 21 Aug 2025 01:34:22 PM IST

 Kanha Chhathi 2025: गोकुल में कैसे मनाई जाती है लड्डू गोपाल की छठी? जानें... मुहूर्त और महत्त्व

- फ़ोटो GOOGLE

Kanha Chhathi 2025: मथुरा के नंदबाबा गांव में श्रीकृष्ण की छठी बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जाती है। यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के छठे दिन मनाया जाता है, जिसे ‘कान्हा की छठी’ कहा जाता है। इस बार जन्माष्टमी 16 अगस्त 2025 को मनाई गई थी, ऐसे में 21 अगस्त को कान्हा की छठी पूजा आयोजित की जा रही है। यह दिन श्रीकृष्ण के जन्म के छठे दिन के रूप में पूरे देश में खासतौर पर मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में बेहद धूमधाम से मनाया जाता है।


कान्हा की छठी के दिन भक्त घरों और मंदिरों में विशेष सजावट करते हैं। घरों को रंगोली, दीप और फूल-मालाओं से सजाया जाता है। लड्डू गोपाल को पंचामृत और गंगाजल से स्नान कराकर उन्हें नए वस्त्र और आभूषण पहनाए जाते हैं। इसके बाद तुलसी पत्र, माखन-मिश्री, मोरपंख, बांसुरी आदि समर्पित कर उनका पूजन किया जाता है। इस दिन भक्त लड्डू गोपाल को झूले में झुलाते हैं और भजन-कीर्तन के साथ उनका गुणगान करते हैं।


छठी पूजा का एक प्रमुख आकर्षण विशेष भोज होता है, जिसमें कढ़ी-चावल, पंचामृत, हलवा, पूड़ी, फल और मिठाइयों सहित छप्पन भोग तैयार किया जाता है। यह भोग भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों और बच्चों को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। कई स्थानों पर छोटे बच्चों को विशेष रूप से आमंत्रित कर उनके स्वागत के साथ उन्हें भी यह भोग खिलाया जाता है, जिससे यह पर्व पारिवारिक और सामाजिक समरसता का भी प्रतीक बन जाता है।


इस दिन दान-पुण्य का भी विशेष महत्व है। लोग छठी माई के नाम पर गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और दान देते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस पूजा से नवजात बच्चों की रक्षा होती है और उनके जीवन में शुभता आती है।


कान्हा की छठी पूजा दोपहर के अभिजित मुहूर्त (11:58 AM से 12:50 PM) या शाम के समय की जाती है। पूजा के बाद कान्हा का नामकरण संस्कार भी किया जाता है, जो इस दिन की एक विशेष परंपरा है। यह पर्व केवल धार्मिक उत्सव नहीं बल्कि भक्ति, उत्साह और लोक परंपराओं का अद्भुत संगम भी है।