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09-Feb-2025 06:45 AM
Aghori sadhana: सनातन धर्म में अघोरी साधु का एक अद्वितीय स्थान है। ये साधु भगवान शिव के प्रति अपनी अत्यंत गहरी भक्ति, तंत्र साधना और अनूठी जीवनशैली के लिए प्रसिद्ध हैं। श्वेताश्वतरोपनिषद में भी अघोरी साधुओं का उल्लेख मिलता है, जो उनके जीवन के रहस्यमय और पारलौकिक आयामों को उजागर करता है। अघोरी साधु का जीवन सामान्य व्यक्ति के जीवन से काफी अलग होता है – जहाँ आम लोग सांसारिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागते हैं, वहीं अघोरी साधु मोह-माया का त्याग कर, मृत्यु के सत्य को समझने और उसे अपनाने का मार्ग चुनते हैं।
अघोरी साधु का आदर्श मार्ग
अघोरी साधु बाबा भैरवनाथ को अपना आराध्य मानते हैं। वे न केवल भगवान शिव के अत्यंत निकट साधक माने जाते हैं, बल्कि वे अपनी तंत्र साधना के माध्यम से जीवन की गूढ़ताओं और रहस्यों को समझते हैं। अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन होती है। इस कठिन प्रक्रिया में कई मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक परीक्षा शामिल होती है, और यदि कोई साधु इन परीक्षाओं में सफलता नहीं पा लेता, तो वह पूर्ण अघोरी साधु बनने से रह जाता है। यही कारण है कि अघोरी साधु बनने की प्रक्रिया को विशेष रूप से कठोर माना जाता है।
श्मशान में साधना – अघोरी साधुओं की पहचान
अघोरी साधु अपने जीवन के अधिकांश हिस्से श्मशान भूमि में बिताते हैं। श्मशान में बैठकर किए जाने वाले शव साधना के पीछे एक गहरी धार्मिक और आध्यात्मिक मान्यता है। यह साधना उन्हें मृत्यु के अटल सत्य का नमन करने और जीवन-मृत्यु के चक्र को समझने में सहायक होती है। अक्सर कहा जाता है कि अघोरी साधु अधजले शव का सेवन करते हैं, जिसे वे साधना का एक हिस्सा मानते हैं। इस तरह की साधना से उनका मन, शरीर और आत्मा में अद्भुत परिवर्तन आते हैं, जिससे उन्हें पारलौकिक शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
कुछ लोगों का मानना है कि श्मशान में अघोरी साधु काला जादू करते हैं, परंतु ऐसा कहना उचित नहीं होगा। वास्तव में, अघोरी साधुओं की साधना का उद्देश्य मोह-माया का त्याग और जीवन के अंतिम सत्य को समझना होता है। वे इस साधना के माध्यम से न केवल अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत करते हैं, बल्कि अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध करते हैं।
तंत्र साधना और अघोरी साधु
अघोरी साधु अपने जीवनकाल के दौरान तंत्र साधना में गहन रुचि रखते हैं। तंत्र साधना के माध्यम से वे भगवान शिव के रहस्यमय गुणों और शक्तियों को आत्मसात करते हैं। तंत्र साधना में मंत्रों, यंत्रों, मुद्रा और विभिन्न आध्यात्मिक क्रियाओं का विशेष महत्व होता है। अघोरी साधु बाबा अपनी साधना में इन सभी विधाओं का प्रयोग करते हैं, ताकि वे आत्मिक उन्नति कर सकें और विश्व के रहस्यों को जान सकें।
इस कठोर साधना में अघोरी साधु को जीवन की तमाम सांसारिक इच्छाओं से परे उठकर, शून्यता और एकाग्रता का अभ्यास करना पड़ता है। यह अभ्यास उन्हें एक विशिष्ट स्थिति में ले जाता है, जहाँ वे संसारिक सुख-दुख से स्वतंत्र हो जाते हैं और केवल दिव्य ऊर्जा में लीन हो जाते हैं। यही कारण है कि अघोरी साधु को बनने के लिए एक अद्वितीय मानसिक दृढ़ता और आत्म-अनुशासन की आवश्यकता होती है।
अघोरी साधुओं की सामाजिक धरोहर
अघोरी साधु न केवल आध्यात्मिक उन्नति के प्रतीक हैं, बल्कि वे समाज में एक विशेष संदेश भी देते हैं। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि मोह-माया और सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठकर जीवन का वास्तविक उद्देश्य खोजा जा सकता है। अघोरी साधु अपने कठोर अनुशासन, साधना और आत्मसमर्पण के माध्यम से हमें यह दिखाते हैं कि असली शक्ति बाहरी भौतिकता में नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मबल में निहित है।
हालांकि, आधुनिक समाज में अघोरी साधुओं के जीवन को अक्सर गलत अर्थों में समझा जाता है। कुछ लोग उन्हें अंधविश्वास या काला जादू के प्रतीक के रूप में देखते हैं, परंतु वास्तव में उनका जीवन एक गहन आध्यात्मिक साधना और आंतरिक ज्ञान की प्राप्ति का एक माध्यम है। उनके द्वारा अपनाई जाने वाली साधना और तंत्र विधियाँ हमें जीवन के गूढ़ रहस्यों और परम सत्य की ओर आकर्षित करती हैं।
सनातन धर्म में अघोरी साधु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे भगवान शिव के प्रति अपनी अनन्य भक्ति, कठोर तंत्र साधना और श्मशान में किए जाने वाले शव साधना के माध्यम से जीवन-मृत्यु के चक्र की गहराई को समझते हैं। अघोरी साधु अपने मोह-माया का त्याग कर, आत्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होते हैं और समाज को यह संदेश देते हैं कि सच्ची शक्ति और ज्ञान बाहरी भौतिकता में नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मबल में निहित है। इन साधुओं का जीवन हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन से सांसारिक इच्छाओं को त्यागकर, एकाग्रता और आत्म-अनुशासन के साथ जीवन के वास्तविक उद्देश्य की ओर अग्रसर हों।