DESK : पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने के उदेश्य से हर साल 22 अप्रैल को अर्थ डे का आयोजन होता है. Climate Change को ध्यान में रखते हुए इस दिन की शुरुआत 1970 में हुई थी. आज इस दिन को मनाते हुए 50 साल हो गए है. हमने विकास की इस दौड़ में प्रकृति द्वारा दिए गए खनिज सम्पदा का दोहन किया है. जिसका असर भी देखने को मिल रहा है. मौसम और तापमान में हो रहे बदलाव इस ओर इशारा करते है. हर साल इन्ही सब बातों को लेकर लोगों में जागरूकता फ़ैलाने के लिए इस दिन का आयोजन होता है.
भारत और दुनिया के कई देशों में अभी लॉकडाउन चल रहा है. पर्यावरण के लिए काम करने वालों का कहना है कि लॉकडाउन का धरती पर बड़ा असर पड़ा है. भागती दौड़ती दुनिया की रफ़्तार मानो थम सी गई है. इस दौरान लोगों को भी प्रकृति का अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है.
प्रदूषण जो आज सबसे बड़ी समस्या है उसमे बहुत हद तक कमी आई है. जल, वायु, ध्वनि प्रदुषण में काफी कमी देखने को मिल रहा है. ऐसा लगता है मानो कोरोना वायरस ने मनुष्य जाती को बंधक बनाया लिया लेकिन प्रकृति और धरती को आजादी प्रदान कर दी है. बीते दिनों इसकी तस्वीर भी देखने को मिली. पंजाब के जालंधर शहर से 213 किलोमीटर दूर से हिमाचल के पर्वत दिखाई देने लगे, गंगा नदी जिसके पानी को साफ़ करने के लिए न जाने कितने करोड़ रुपये आज तक खर्च हो गए होंगे उसका पानी अपने आप साफ़ हो गया. कल तक धुंध की एक चादर जो नीले आसमान को अपने कैद में रखती थी वो अब छटने लगी है. एयर क्वालिटी इंडेक्स में सुधर होने लगा है. इन तस्वीरों को देख के ऐसा लगता है मानो पृथ्वी सांस ले रही हो. हम इंसानों ने अपने फायदे के लिए प्राकृतिक श्रोतों का दोहन करना शुरू कर दिया था, जिस पर रोक लगते ही चीजें सामान्य होने लगी.
लॉकडाउन की वजह से कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आई है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग भी कम हुआ है. ऐसा माना जा रहा है कार्बन उत्सर्जन में आई कमी का फायदा हमारे जीवन पर सीधा देखने को मिलेगा.
आज तक हमने जो पृथ्वी को बर्बाद किया है उसकी भरपाई शायद कोरोना वायरस हम से करवा रहा है. 2016 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार 6 अरब किलोग्राम औद्योगिक कूड़ा रोज समंदर में डाला जाता है जो कि अभी न के बराबर है. अगर भारत की बात करें तो देश हर साल प्रदूषण की वजह से 2 लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाता है. आकडों पर ध्यान दें तो देश में हर 8 सेकंड में एक बच्चा गंदा पानी पीने से मर जाता है. वायु प्रदूषण का स्तर इस खतरनाक बिंदु पर पहुंच गया था कि केवल मुंबई में एक स्वस्थ व्यक्ति का सांस लेना 100 सिगरेट पिने के बराबर है.
आज जब हर तरफ लॉकडाउन है ऐसे में इंसानों के फेफड़ों, गुर्दे और दिल पर पड़ने वाला प्रदूषण का असर कम हुआ है. पर्यावरण के जानकार कहते है कि अगर भविष्य में इसी तरह कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाए जाएं तो धरती पर आये इस संकट से निजात मिल सकता है. फिलहाल जो भी है वो कागजों पर है जिसे अमल में लाने की कोशिश की सिर्फ बातें होती है.