PATNA : समाजवादी दिग्गज शरद यादव की मौत के बाद पूरे देश के नेताओं में शोक जताने वाले की होड़ मची है. लेकिन इस बीच सबसे ज्यादा चर्चा जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा के बयान की हो रही है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा है कि भगवान न करे कि किसी की मौत शरद जी की तरह हो. शरद यादव ने बेहद मानसिक पीड़ा में आखिरी सांसे ली. शरद जी ने जिस-जिस को बनाया उन सबों ने आखिरी वक्त में उनका हाल चाल लेना तक छोड़ दिया था. अब हम कुछ वाकयों से समझाते हैं कि किसने शरद यादव के साथ क्या-क्या किया.
शरद यादव की अटैची पकड़ने के लिए होड़ मचती थी
बिहार के एक समाजवादी नेता ने 1990 से पहले की कहानी बतायी. उस समय दिल्ली से पटना के बीच एक-दो फ्लाइट होती थी, लिहाजा समाजवादी नेता ट्रेन से सफर करते थे. शरद यादव जब दिल्ली से ट्रेन से पटना जंक्शन पर पहुंचते थे तो उनकी अटैची यानि ब्रीफकेस पकड़ने के लिए होड़ मच जाती थी. अटैची पकडने की होड में वे तमाम नेता शामिल रहते थे जो आज खुद को बिहार में समाजवाद का पुरोधा बताते हैं. बिहार में आज के दौर में सामाजिक न्याय के तथाकथित मसीहा कहे जाने वाले नेता के बारे में तो दिलचस्प बातें सामने आयी. उस दौर में उन्होंने देखा कि पटना जंक्शन पर शरद जी की अटैची पकड़ने की आपाधापी मच जाती है तो वे दानापुर स्टेशन पहुंच जाते थे. दिल्ली से पटना आने वाली ट्रेन जब दानापुर पहुंचती थी तो वे वहीं उसमें सवार होकर शरद यादव के पास चले जाते थे. फिर पटना स्टेशन आता तो वहां वे बडे गर्व से शरद जी के साथ उनकी अटैची लिये ट्रेन से बाहर आते थे. मैसेज ये जाता था कि वे शरद जी के इतने करीबी हैं कि दिल्ली से ही उनके साथ आ रहे हैं.
फर्स्ट बिहार से बातचीत में एक पुराने समाजवादी नेता ने बताया कि जो शरद जी की अटैची ढोने में गर्व महसूस करते थे वे कुर्सी पाने के बाद उन्हें ऐसे भूले कि उसे बताया नहीं जा सकता. वे 2019 का एक वाकया बताते हैं कि कैसे पटना पहुंचे शरद यादव ने नेता जी से मिलने के लिए फोन किया. शरद यादव पूरे दिन इंतजार करते रह गये लेकिन मिलने का टाइम नहीं मिला. आहत शरद यादव पूरे दिन पटना के एक होटल में बैठे रहे. दूसरे दिन किसी ने सिफारिश की तो शरद जी को मिलने का टाइम दिया गया. शरद यादव ने उस समय अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल बना रखा था. वे अपनी पार्टी से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे. लेकिन उन्हें साफ साफ कह दिया गया कि अपनी पार्टी से चुनाव लडना है तो अपने बूते पर लडिये. हम कोई मदद नहीं करेंगे.
ऐसे भी हुए वाकये
शरद यादव 2014 में लोकसभा चुनाव हार गये थे. 2014 में ही बिहार में राज्यसभा की दो सीटों के लिए उप चुनाव हो रहा था. शरद यादव चाहते थे कि वे उन्हें राज्यसभा भेजा जाये. दिलचस्प बात ये थी कि वे जिस पार्टी से राज्यसभा जाना चाहते थे उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष भी थे. लेकिन फैसला कहीं और से होना था. राज्यसभा चुनाव के नामांकन का डेट खत्म होने से तीन दिन पहले शरद जी दिल्ली से पटना आ गये थे. उन्होंने अपनी पार्टी के उस नेता से मिलने के लिए कॉल किया. फोन उठाने वाले कर्मचारी को बता दिया गया कि शरद जी मिलना चाहते हैं. सुबह से रात हो गयी लेकिन शऱद जी को मिलने का बुलावा नहीं आया.
हालांकि उस चुनाव में शरद यादव को राज्यसभा का टिकट दिया गया लेकिन वह तब हुआ जब चुनाव में खेल हो गया. दो निर्दलीय उम्मीदवार साबिर अली और अनिल शर्मा चुनाव मैदान में आ गये. शरद जी की पार्टी के सर्वशक्तिमान नेता को अपनी सियासत खतरे में नजर आयी. तब शरद जी की याद आयी. शरद यादव ने ही 2014 में दो पुराने भाइयों का मिलन कराया और तभी उन्हें राज्यसभा का टिकट मिल पाया.
ऐसे हटे थे जेडीयू अध्यक्ष पद से
ये आंखों देखी वाकया है, जिसे कई पत्रकारों ने देखा था. 2015 में शरद यादव को जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा दिया गया था. उन्हें मैसेज दिया गया था कि या तो वे अपने पद से इस्तीफा दे दें नहीं तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जायेगा. शरद जी के पास इस्तीफा देने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था. दिल्ली के पार्लियामेंट एनेक्सी में शरद जी की विदाई और नये अध्यक्ष की ताजपोशी के लिए पार्टी की बैठक बुलायी गयी थी. वहां मौजूद एक पत्रकार ने बताया कि उस बैठक का हाल ये था कि शरद जी की पार्टी का कोई नेता उनसे बात करने तक को तैयार नहीं था. डर ये था कि नये अध्यक्ष इससे नाराज हो जायेंगे. हाल ये था कि पार्लियामेंट एनेक्सी में जब पार्टी की बैठक थी तो शरद यादव हॉल के बाहर अकेले खडे होकर चाय पी रहे थे. पार्टी के सारे नेता उनसे दूर थे. हां, एक-दो पत्रकारों ने जरूर शरद यादव से दुआ सलाम कर उनसे बातचीत की. बाहर चाय पीने के बाद शरद यादव अकेले पार्टी की उस मीटिंग में गये थे जहां अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे का प्रस्ताव पारित किया गया.
घऱ की बिजली-पानी, फोन सब कट गया था
एक पत्रकार ने 2018 का एक और वाकया बताया. 2017 में बिहार में नया गठजोड़ हुआ था औऱ शरद यादव ने अपनी पार्टी के नेता के यू-टर्न के खिलाफ स्टैंड ले लिया था. इसके बाद शरद यादव की पार्टी ने उनकी राज्यसभा सदस्यता रद्द करा दी थी. फर्स्ट बिहार से बातचीत में वरीय पत्रकार ने बताया कि 2018 के जनवरी में जब वे शरद जी के दिल्ली स्थिति सरकारी बंगले पर गये तो अजीब सी स्थिति थी. उस सरकारी घर की बिजली, पानी और टेलीफोन सब काटा जा चुका था. ठंढ का मौसम था औऱ शरद जी लॉन में अकेले बैठे थे. उन्होंने अपने घर आय़े पत्रकार से कहा-अब ये दिन ही देखना बाकी था. बाद में शरद यादव कोर्ट गये औऱ कोर्ट ने स्टे लगाया और तब शरद यादव के घर में बिजली पानी आयी.
बिहार के पत्रकारों औऱ समाजवादी नेताओं के पास ऐसी कहानियों की भरमार है. शरद यादव लंबे समय तक देश में समाजवाद के सबसे बड़े दिग्गजों में शुमार किये जाते रहे. बिहार के दो मुख्यमंत्रियों को बनाने में उनका योगदान जगजाहिर है. शरद जी की मौत गुरूवार को हुई लेकिन वे कई दिनों से गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती थे. क्या आपने सुना था कि बिहार का कोई नेता उनसे अस्पताल में मिलने तक गया था.
शायद यही वे कहानियां हैं जिसके कारण उपेंद्र कुशवाहा ये कह रहे हैं कि जीवन भर वंचितों के लिए संघर्ष करने वाले शऱद यादव का अंत जिस तरह से हुआ वैसा किसी का ना हो. उपेंद्र कुशवाहा तभी कह रहे हैं कि शरद यादव गंभीर मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. उन्हें इसका दर्द साल रहा था. भगवान किसी को इस तरह की स्थिति में ना लाये. शरद जी ने राजनीतिक रूप से बहुत लोगों को बनाया. बहुत सारे लोग उनके कारण बड़े बड़े पदों पर गये. लेकिन उन सारे लोगों ने अंत समय में उनसे बात करना तक छोड़ दिया था. तभी बहुत परेशान रहते थे शऱद जी, कहते थे-कोई फोन तो करे, हाल खबर ले. भगवान शरद जी जैसा दुखद अंत किसी को ना दे.