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1st Bihar Published by: HARERAM DAS Updated Thu, 24 Nov 2022 09:23:03 AM IST
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BEGUSARAI : बिहार में एक तरफ जहां उपमुख्यमंत्री और स्वास्थ मंत्री तेजस्वी यादव मिशन-60 के तहत राज्य के सदर अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं को सुदृढ़ करने में जुटे हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ उनके ही सरकार के डॉक्टर अपने केबिन से गायब नजर आ रहे हैं। आलम यह है कि यदि उनसे अधिक जोर जबरदस्ती किया जाता है तो वो मरीज को बिना हाथ लगाए सीधा रफेर कर देते हैं। इसी कड़ी में अब एक ताजा मामला बिहार के बेगुसराय जिले से निकल कर सामने आ रहा है। जहां मरीजों को इलाज के लिए सदर अस्पताल में इधर- उधर भटकना पड़ रहा है। लेकिन, इसके बाबजूद कोई सुनने वाला नहीं है।
दरअसल, बेगूसराय में बिहार का नंबर वन सदर अस्पताल है, लेकिन यहां मरीजों को बिना उचित इलाज के ही रेफर कर दिया जा रहा है। इतना ही नहीं मरीजों को डॉक्टरों द्वारा सही से इलाज के बदले पुर्जा देखकर ही रेफर करने का आरोप मरीज के परिजनों द्वारा लगाया जा रहा है। आलम यह है कि, ओपीडी या विभाग से डॉक्टर का गायब रहना तो आम बात हो गया है। इस अस्पताल में इमरजेंसी ड्यूटी में भी डाक्टर सदर अस्पताल से गायब दिख रहे हैं।
बता दें कि, खगड़िया जिले की रहने वाली मोहम्मद इरशाद की पत्नी 7 माह की गर्भवती मरियम खातून अपने नानी घर शोकहारा में रहती थी और सदर अस्पताल में ब्लड की कमी की शिकायत पर इलाज कराने पहुंची थी। परिजनों का आरोप है कि अस्पताल के कई दरवाजे का चक्कर लगाने के बावजूद डॉक्टरों के सही से नहीं देखा गया और पूर्जा देखकर रेफर कर दिया गया। जबकि लोगों ने कहा था की सभी सुविधा उपलब्ध है, मशीन लगी हुई है इसलिए वो लोग इलाज कराने पहुंचे थे। लेकिन, सदर अस्पताल में उसे बिना देखे ही रेफर कर दिया गया।
जिसके बाद इस मामले में जब सिविल सर्जन से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि,24 घंटा इमरजेंसी सेवा है तभी तो परिजनों को डॉक्टर के द्वारा देखा गया और पटना रेफर किया गया। सिविल सर्जन ने कहा कि बेगूसराय में मरीज की मौत होने से अच्छा है कि उसे पटना रेफर कर दिया गया है। इलाज में कोई लापरवाही नहीं हुई है।
अब इसके बाद यह सवाल उठ रहा है कि, बिहार का नंबर वन अस्पताल होने के बावजूद मरीज के परिजनों का जो आरोप है यदि वह सही है तो फिर स्वास्थ मंत्री द्वारा जो कार्य किया जा रहा है क्या उसकी जानकारी इस अस्पताल के लोगों को नहीं हैं, या फिर वो लोग काम ही नहीं करना पसंद करते हैं। आखिकार, पूर्जा देखकर सिर्फ मरीज को रेफर किया जाना स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा रही है।