DESK : कोविड-19 की शुरुआत के साथ देश में दो महीने के लिए लॉकडाउन लगाया गया. जिसे बाद में हटा लिया गया, पर कुछ राज्यों में संक्रमण के बढ़ते मामले मामले की देखते हुए फिर से लॉकडाउन लगाना पड़ा. अब हालत ये है कि संक्रमण के खतरे के साथ लोग जीना सिख रहे हैं. सामान्य जीवन में लौटने के साथ लोग घर से बाहार भी निकल रहे हैं और यात्रा भी कर रहे हैं.
पहले सभी यात्रा से बचने की कोशिश करते थे, पर न्यूयॉर्क टाइम्स की एक सर्वे में चौंकाने वाली बात सामने निकलकर आई है. इस सर्वे में पता चला है कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आवाजाही उतनी खतरनाक नहीं है, जितनी पहले सोची जा रही थी. यात्री अगर मास्क पहनें और प्रशाषण द्वारा भीड़ पर नियंत्रण रखा जाये, तो कोरोना का खतरा काफी हद तक कम हो जाता है.
सड़क पर चल रही गाड़ियों की सीटों को लगातार सैनेटाइज किया जाता है. बैठने की व्यवस्था इस तरह से कि गई है कि दो यात्रियों में सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे. ऐसे में संक्रमित होने का खतरा कम हो जाता है. अनलॉकिंग के दौर को ध्यान रखते हुए लगातार कई स्टडीज हो रही हैं. इनमें पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर खास ध्यान दिया जा रहा है. कई स्टडीज इस बात पर भी हो रही हैं कि कितनी दूरी पर बैठे से यात्रियों में संक्रमण का खतरा नहीं रहता है. पब्लिक प्लेस पर वेंटिलेशन सिस्टम और एयर प्यूरिफिकेशन सिस्टम को बेहतर कर के भी हम संक्रमण के खतरे को काफी हद तक कम कर सकते हैं.
इसी तरह की एक स्टडी में ये बात निकलकर आई है कि कोरोना के मरीज यानी इंडेक्ट पेशेंट पांच सीट आगे-पीछे के लोगों और आजू-बाजू की तीन सीटों तक पर बैठे यात्रियों में संक्रमण का खतरा औसत 0.32 प्रतिशत होता है. वहीं अगर कोई यात्री इंडेक्ट पेशेंट के बगल में ही बैठा हो तो उसे संक्रमण का खतरा सबसे ज्यादा 3.5 प्रतिशत तक होता है.
हालांकि ये स्टडी 3 घंटे से कम दूरी के यात्रियों पर की गई थी. अगर यात्रा 3 घंटे या इससे ज्यादा हो तो इसके परिणाम अलग हो सकते हैं. संक्रमण का दर इस बात पर भी निर्भर करता है कि मरीज और दूसरे लोगों ने यात्रा के दौरान हाइजीन का कितना ध्यान रखा था. अगर मास्क न पहना जाए या हाथों को नाक, कान या आंखों के पास ले जाया जाए तो संक्रमण का खतरा काफी ज्यादा हो सकता है. ट्रेन की तरह ही फ्लाइट में भी यात्रा करने के दौरान इन नियमों का पालन किया जाये तो कोरोना संक्रमण का खतरा काफी कम जाता है.