DESK : बिहार में तेजस्वी यादव को सत्ता की कुर्सी से दूर करने वाले ओवैसी अब मिशन बंगाल पर निकल पड़े हैं। ओवैसी ने बिहार के बाद बंगाल में भी अपनी पार्टी एमआईएमआईएम को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला किया है। बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद ओवैसी का हौसला बुलंद है। सीमांचल के इलाके में ओवैसी ने आरजेडी के अल्पसंख्यक वोट में सेंधमारी की और इस बड़ी सेंधमारी की बदौलत ही तेजस्वी यादव को उन्होंने सत्ता से दूर रखा। अब ओवैसी बंगाल का रुख कर रहे हैं और वहां ओवैसी की पार्टी ममता बनर्जी के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाली है।
ओवैसी की पार्टी अगर बंगाल चुनाव में उतरती है तो इसका सीधा नुकसान निर्मूल कांग्रेस को होगा ममता बनर्जी के वोट बैंक में मुसलमानों का बड़ा हिस्सा है और ऐसे में ओवैसी अगर सेंधमारी करते हैं तो सीधा नुकसान भी ममता बनर्जी को होगा ओवैसी के इस मिशन को लेकर तृणमूल कांग्रेस अभी से रणनीति बनाने में जुट गई है साल 2011 में ममता बनर्जी ने जब लेफ्ट को बंगाल में मात दी थी उसके बाद लगातार मुसलमान वोटरों पर उनकी पकड़ मजबूत रही है। ओवैसी का प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदाय तक ही सीमित है जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का 6 फ़ीसदी हिस्सा है। पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 30% है कश्मीर के बाद सबसे अधिक मुस्लिम वोटर बंगाल में ही हैं।
पश्चिम बंगाल विधानसभा की कुल 294 सीटों में से 100 से 110 सीटों पर मुस्लिम बोर्ड निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस को मुस्लिम वोटरों के कारण ही फायदा पहुंचा और मोदी लहर के बीच भी तृणमूल कांग्रेस अपना वजूद बचाए रखने में सफल रही। बिहार चुनाव में ओवैसी के काम करने का जो तौर तरीका सामने आया है उसके मुताबिक वह बड़ी जनसभाओं या रैलियों को संबोधित करने की बजाय मदरसों और मस्जिदों में रहने वाले मौलानाओं के जरिए अपने संपर्क सूत्र को एक्टिवेट करते हैं। वहीं से जनसंपर्क चलाया जाता है और इसका मकसद जमीनी स्तर पर मुस्लिम वोटरों को अपने पार्टी के साथ जोड़ना होता है। पश्चिम बंगाल के 23 जिलों में से 22 में एआईएमआईएम की यूनिट काम कर रही है। ऐसे में तेजस्वी यादव के हालात देखकर ममता बनर्जी को भी यह चिंता सता रही है कि कहीं ओवैसी उन्हें बंगाल में भी झटका ना दे दें।