DESK: 93 वर्षीय पर्यावरणविद, स्वतंत्रता सेनानी व पद्मभूषण सुंदरलाल बहुगुणा ने का आज दोपहर निधन हो गया। एम्स ऋषिकेश में उन्होंने अंतिम सांस ली। कोरोना से संक्रमित होने के कारण उन्हें 8 मई को ऋषिकेश स्थित एम्स में एडमिट कराया गया था। जहां उन्हें आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था। डॉक्टर की निगरानी में इलाज किया जा रहा था। शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली।
पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर शोक की लहर है। उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में ही मौजूद है। पर्यावरणविद बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने उनके निधन को उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे देश की अपूरणीय क्षति बताया। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया।
पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने 1972 में चिपको आंदोलन को धार दी। साथ ही देश-दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप चिपको आंदोलन की गूंज समूची दुनिया में सुनाई पड़ी। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। इसीलिए वह टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी।
विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का यह नारा था-'धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।' यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये। सादा जीवन उच्च विचार को आत्मसात करते हुए वह जीवनपर्यंत प्रकृति, नदियों व वनों के संरक्षण की मुहिम में जुटे रहे। बहुगुणा ही वह शख्स थे, जिन्होंने अच्छे और बुरे पौधों में फर्क करना सिखाया। पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा के निधन से शोक की लहर है।