सर,सर,सर.....बिहार के DGP फ्रॉड अभिषेक अग्रवाल को ऐसे ही संबोधित करते थे, टाइम लेकर कॉल करते थे, जानिये FIR में दर्ज पूरी कहानी

सर,सर,सर.....बिहार के DGP फ्रॉड अभिषेक अग्रवाल को ऐसे ही संबोधित करते थे, टाइम लेकर कॉल करते थे, जानिये FIR में दर्ज पूरी कहानी

PATNA: बिहार के पुलिस महकमे का सबसे हाईप्रोफाइल जालसाज अभिषेक अग्रवाल जब बिहार के डीजीपी एसके सिंघल को कॉल करता था तो डीजीपी की घिग्घी बंध जाती थी. अभिषेक अग्रवाल जब डीजीपी को कॉल करता था को एसके सिंघल उसे सर,सर,सर...कह कर संबोधित करते थे. अग्रवाल जब नाराज होकर फोन डिस्कनेक्ट कर देता था तो डीजीपी वाट्सएप पर बकायदा टाइम लेकर कॉल बैक करते थे।


ये हम नहीं कह रहे हैं बल्कि ये उस एफआईआर की कहानी है जिसे बिहार के आर्थिक अपराध इकाई यानि EOU ने दर्ज किया है. EOU के DSP भास्कर रंजन ने रविवार को पकड़े गये अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ जो प्राथमिकी दर्ज करायी है उसमें ये बातें लिखी हुई हैं. प्राथमिकी के मुताबिक अभिषेक अग्रवाल ने स्वीकार किया है कि “ DGP बिहार द्वारा भी मेरे छद्म रूप को असली मानते हुए मुझे सर, सर कह कर संबोधित किया जाता था तथा उनके द्वारा मेरे नाराजगी दिखाने पर मुझसे मोबाइल पर वाट्सएप के माध्यम से समय लेकर कॉल भी किया गया.” 


EOU की FIR कहती है कि अभिषेक अग्रवाल ने खुद को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बताते हुए डीजीपी एसके सिंघल को कई दफे कॉल किया. अभिषेक ने पूरे रौब-दाब के साथ उनसे बात की औऱ बिहार के डीजीपी उनके दवाब में आ गये. उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि अभिषेक अग्रवाल वाकई पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस है. FIR के मुताबिक ये सारा खेल इसलिए किया गया था कि बिहार के डीजीपी गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार के खिलाफ चल रही विभागीय कार्यवाही को समाप्त कर दें और पुलिस मुख्यालय में बैठे आदित्य कुमार की किसी जिले में पोस्टिंग कर दें. 


EOU द्वारा जो FIR दर्ज की गयी है उसमें जालसाज अभिषेक अग्रवाल की जुबानी कई बातें कहलवायी गयी हैं. एफआईआर के मुताबिक अभिषेक अग्रवाल ने कहा है  “IPS अधिकारी आदित्य कुमार (जो पूर्व में गया के SSP पद पर तैनात थे और वर्तमान में बिहार पुलिस के मुख्यालय पटेल भवन में तैनात हैं) को मैं पिछले चार सालों से जानता हूं औऱ वे मेरे अभिन्न मित्र हैं. आदित्य कुमार के खिलाफ शराब से संबंधित केस दर्ज था, जिसे खत्म कराने में मेरी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी. आदित्य कुमार की गया में एसएसपी के तौर पर पोस्टिंग के दौरान तत्कालीन आईजी अमित लोढ़ा से भी विवाद चल रहा था और वो उन्हें फंसाना चाहते हैं.”


EOU ने इस पूरे मामले में जो FIR दर्ज की है उसमें अभिषेक अग्रवाल कह रहा है “आदित्य कुमार ने मुझसे केस के संबंध में चर्चा की थी. उन्होंने मुझसे अपेक्षित सलाह और सहयोग की अपेक्षा की थी. उनसे बातचीत में ये निर्णय हुआ कि हाईकोर्ट, पटना के किसी वरीय जज के नाम पर यदि डीजीपी, बिहार को कहा को आदित्य कुमार के खिलाफ प्रोसिडिंग खत्म करते हुए किसी जिले में पदस्थापना हो सकता है. आदित्य कुमार का हित साधे के लिए मैं और वो उनके कार्यालय और बरिस्ता रेस्टोरेंट बोरिंग रोड में कई दफे बैठक एवं मंत्रणा किये तथा हम दोनों ने मिलकर एक सुनियोजित योजना तैयार की. जिसके तहत हम दोनों ने संजय करोल, चीफ जस्टिस, पटना हाईकोर्ट का छद्म रूप धारण कर वाट्सएप और नार्मल कॉल से डीजीपी, बिहार को झांसा देकर अपने प्रभाव में लेकर आदित्य कुमार के हित में प्रशासनिक निर्णय लेने हेतु बाध्य करने का खाका तैयार किया.”


बिहार के डीजीपी पर बेहद गंभीर सवाल

ईओयू की इस एफआईआऱ में जो बात नहीं दर्ज है वो ये है कि वाकई बिहार के डीजीपी ने आदित्य कुमार के खिलाफ गया के फतेहपुर थाने में शराब के मामले में दर्ज मामले को खत्म कर दिया. वैसे ये एफआईआर ही कह रही है कि अभिषेक अग्रवाल ने माना कि इस केस को खत्म करने में उसने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी. मतलब यही निकलता है कि एक फ्रॉड ने खुद को चीफ जस्टिस बता कर बिहार के डीजीपी को लगातार कॉल किया. डीजीपी उसे सर, सर कहते रहे. उससे टाइम लेकर बात करते रहे औऱ आखिरकार आईपीएस के खिलाफ दर्ज शराब के बेहद गंभीर मामले को मिस्टेक ऑफ लॉ करार देकर बंद कर दिया।


अब EOU के FIR की सबसे दिलचस्प बात को देखिये. इस एफआईआर के मुताबिक खुद बिहार के डीजीपी ने लिखित तौर पर एक शिकायत पत्र भेजा थी. इस पत्र में उन्होंने कहा था कि कोई व्यक्ति एक मोबाइल नंबर 9709303397 से कॉल कर खुद को पटना हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बताता है. उसके वाट्सएप के डीपी में चीफ जस्टिस संजय करोल की तस्वीर लगी है. वह व्यक्ति बिहार के डीजीपी के सराकरी मोबाइल नंबर 9431602303 पर कॉल कर बात करता था और कई काम करने को कहता था. परंतु उसके बात करने के टोन से उन्हें शक हो गया औऱ तब डीजीपी ने ईओयू को कहा कि वह उस व्यक्ति की जांच करे।


FIR की ये दोनों बातें ही एक दूसरे का खंडन करती है. एक ओर तो उसी FIR में ये लिखा है कि अभिषेक अग्रवाल ने आईपीएस अधिकारी आदित्य कुमार के खिलाफ दर्ज केस को खत्म करा दिया. इसके लिए उसने चीफ जस्टिस बनकर डीजीपी को कॉल किया था, जिसे डीजीपी सर, सर कह कर संबोधित करते थे और टाइम लेकर कॉल करते थे. दूसरी ओर डीजीपी ये भी कह रहे हैं कि उन्हें कॉल करने के टोन से शक हो गया था. फिर सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब डीजीपी को शक ही हो गया था तो फिर आईपीएस आदित्य कुमार के खिलाफ दर्ज शराब के केस को मिस्टेक ऑफ लॉ बताकर खत्म कैसे कर दिया गया।


क्या सब छुपा रही है पुलिस और EOU 

बड़ा सवाल ये भी है कि बिहार पुलिस औऱ उसकी आर्थिक अपराध इकाई यानि EOU अभिषेक अग्रवाल और उसके दोस्तों के कितने राज को छिपा रही है. क्या किसी सूबे की पुलिस का हेड यानि डीजीपी किसी जालसाज के झांसे में आकर एक आईपीएस अधिकारी के खिलाफ दर्ज गंभीर मामले को खत्म कर देगा. जिस राज्य का डीजीपी ही ऐसे झांसे में आ जाये तो फिर नीचे की पुलिस का क्या हाल होगा. अभिषेक अग्रवाल की ढेर सारी तस्वीरें सामने आ चुकी हैं जिसमें वह बिहार के कई आईपीएस अधिकारियों के साथ अंतरंगता से खड़ा, बैठा या बात करता दिख रहा है. ये जगजाहिर हो चुका है कि अभिषेक अग्रवाल का किन आईपीएस अधिकारियों से संबंध रहा है. ईओयू ने उनके बारे में क्या छानबीन की? 


पहले से दागी रहा है अभिषेक अग्रवाल

उधर अभिषेक अग्रवाल के खिलाफ कई औऱ मामले सामने आ रहे हैं. सूत्र बता रहे हैं कि उसने पटना के एक थानेदार को भी जज बनकर कॉल किया था लेकिन थानेदार ने तुरंत उसकी जालसाजी पकड़ ली थी. इसके बाद उसके खिलाफ केस भी दर्ज किया गया था. वहीं, अभिषेक अग्रवाल द्वारा खुद को जिलाधिकारी बता कर भी पुलिस थाने में फोन करने का भी मामला सामने आ रहा है. सवाल ये है कि जिस जालसाज को एक थानेदार ने एक ही कॉल में पकड़ लिया उसे बिहार के डीजीपी कैसे नहीं पहचान पाये. डीजीपी उसे तभी क्यों पहचान पाये जब अभिषेक अग्रवाल का काम पूरा हो गया. ऐसे कई सवाल हैं जिसका कोई जवाब ईओयू, बिहार पुलिस औऱ बिहार सरकार के पास नहीं है।