सिंगल ब्रांडिंग का जोखिम समझते हैं तेजस्वी, हार का ठीकरा या जीत का सेहरा.. वक़्त बताएगा

सिंगल ब्रांडिंग का जोखिम समझते हैं तेजस्वी, हार का ठीकरा या जीत का सेहरा.. वक़्त बताएगा

PATNA: राजनीति में सिंगल ब्रांडिंग  बहुत रिस्की होता है लेकिन कई बार सिंगल ब्रांडिंग  राजनीतिक दलों की रणनीतिक मजबूरी होती है। राहुल गांधी इस रणनीतिक मजबूरी का शिकार हो चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद हार का ठीकरा राहुल गांधी के सर हीं फूटा था। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले तेजस्वी यादव की सिंगल ब्रांडिंग  हो रही है। तेजस्वी इस सिंगल ब्रांडिंग का जोखिम और नुकसान सब समझते हैं लेकिन कांग्रेस की तरह उनकी भी रणनीतिक मजबूरी है। चुनाव से पहले न सिर्फ पार्टी दफ्तर के बाहर बल्कि पटना और बिहार के दूसरे इलाकों में आरजेडी की तरफ से बड़े-बडे़ होर्डिंग लगाये गये हैं जिसमें सिर्फ और सिर्फ तेजस्वी यादव की तस्वीर है।




न सिर्फ यह सिंगल ब्रांडिंग है बल्कि एक बड़ा प्रयोग है आरजेडी की तरफ से। कुछ वक्त पहले तक यह सोंचा भी नहीं जा सकता था कि आरजेडी के बैनर-पोस्टर और होर्डिंग से लालू-राबड़ी गायब हो जाएंगे लेकिन लालू-राबड़ी आरजेडी के पोस्टरों बैनरों से गायब हो गये हैं। तेजस्वी की सिंगल ब्रांडिंग आरजेडी का सबसे ठोस चुनावी प्लान इसलिए है क्योंकि अब जबकि इतने बड़े पैमाने पर उनके पोस्टर और बैनर लगा दिये गये हैं तो सहयोगी भी उनके नेतृत्व पर बात नहीं कर सकेंगे क्योंकि आरजेडी ने अब क्लियर कर दिया है कि चेहरा तेजस्वी यादव हीं होंगे।हांलाकि इस सिंगल ब्राडिंग का नुकसान यह है कि स्थिति यह होती है ताली कप्ता को तो गाली भी कप्तान को ऐसे में ऐसी ब्राडिंग रिस्की भी होता है।