शरद की सियासत पर कोरोना ने लगाया लॉक, बैठा-बैठी में निकल गया नई पार्टी का एक साल

शरद की सियासत पर कोरोना ने लगाया लॉक, बैठा-बैठी में निकल गया नई पार्टी का एक साल

PATNA : एक साल पहले लोकसभा चुनाव के दौरान शरद यादव ने नई पार्टी बनाई थी। शरद यादव ने लोकसभा का चुनाव भले ही अपनी पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल के टिकट पर नहीं लड़ा लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि आरजेडी की टिकट पर लोकसभा पहुंच जाएंगे। हालांकि मोदी लहर में सब कुछ उल्टा हो गया। शरद यादव की लोकतांत्रिक जनता दल ने अपने पहले साल का सफर पूरा कर लिया है। 18 मई को उनकी पार्टी का पहला स्थापना दिवस था। 


लोकतांत्रिक जनता दल के पहले स्थापना दिवस पर शरद ने अपनी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को बधाई दी थी लेकिन कोरोना महामारी और लॉक डाउन में फिलहाल शरद यादव की राजनीतिक गतिविधियों पर पूरी तरह से ताला लगा दिया है। राज्य सभा चुनाव के पहले बिहार में सक्रिय हुए शरद यादव को उम्मीद थी कि कुशवाहा मांझी और मुकेश साहनी के साथ नजदीकियां बढ़ा कर आरजेडी के ऊपर दबाव बना सकते थे। हालांकि राज्यसभा में जाने के लिए शरद का यह दांव भी खाली गया था। लालू यादव पर उनका दबाव काम नहीं आया और शरद की बजाय लालू ने नए चेहरों को राज्यसभा भेज दिया। इससे नाराज उनकी पार्टी के नेताओं ने लालू यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और अब शरद यादव की अगली प्लानिंग बिहार में नए सियासी समीकरण की तरफ आगे बढ़ने की थी। 


पार्टी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि शरद होली के बाद बिहार में अपनी सक्रियता बढ़ाने वाले थे लेकिन तभी कोरोना महामारी ने हालात बेकाबू कर दिए। देश में लॉकडाउन का दौर शुरू हो गया और शरद की सियासत पर भी लॉक लग गया। अब विधानसभा चुनाव के पहले शरद अपनी पार्टी को कितना सक्रिय कर पाएंगे इस पर भी संदेह है। मौजूदा हालात में शरद यादव के पास भी राजनीतिक विकल्प बहुत कम बचे हैं। शरद के पास पहला विकल्प महागठबंधन में मन मारकर बने रहने का है तो वहीं दूसरा विकल्प वापस नीतीश कुमार के पास लौटने का है। सियासी जानकार मानते हैं कि शरद के लिए दूसरा विकल्प बेहद मुश्किल है क्योंकि नीतीश कुमार शरद को अपनाएंगे इस बात की उम्मीद ना के बराबर है। ऐसे में शरद की राजनीति अब पटरी पर वापस कब तक लौटेगी यह कह पाना फिलहाल मुश्किल है।