PATNA : "थकान अनुभव कर रहा हूं. शरीर से ज्यादा मन की थकान है. संस्मरण लिखना चाहता था. वह भी नहीं कर पा रहा हूं. इसलिए जो कर रहा हूं उससे छुट्टी पाना चाहता हूं. संस्मरण लिखने का प्रयास करूंगा. लिख ही दूंगा, ऐसा भरोसा भी नहीं है. लेकिन प्रयास करूंगा. इसलिए राजद की ओर से जिस भूमिका का निर्वहन अब तक मैं कर रहा था उससे छुट्टी ले रहा हूं. "
ये तकरीबन डेढ़ महीने पहले यानि 22 अक्टूबर को दिया गया शिवानंद तिवारी का बयान है. मन की थकान से पीड़ित होकर राजद से छुट्टी लेने वाले शिवानंद तिवारी डेढ़ महीने में ही तरोताजा हो गये. स्फूर्ति का प्रवाह ऐसा हुआ कि छुट्टी खत्म होने का एलान करने तक का सब्र नहीं हुआ. तिवारी जी आज राजद की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पहुंच गये.
राजद की बैठक में जमे रहे शिवानंद तिवारी
जाहिर है सियासी हलके में फिर से मजे लिये जा रहे हैं. लोग पूछ रहे हैं कि आखिरकार क्यों अचानक से अपनी छुट्टी खत्म कर शिवानंद तिवारी आज राजद की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक में पहुंच गये. न सिर्फ पूरी बैठक में बैठे रहे बल्कि तेजस्वी के प्रेस कांफ्रेंस में भी मौजूद रहे. हावभाव कहीं से ये नहीं बता रहा है कि शिवानंद तिवारी राजद के सारे काम छोड़ने का एलान कर चुके हैं.
तिवारी बाबा का दिल क्यों नहीं मानता है
सवाल ये भी पूछा जा रहा है कि शिवानंद तिवारी का दिल आखिरकार क्यों नहीं मानता है. जानकार बताते हैं कि तेजस्वी यादव और उनके सलाहकारों की उपेक्षा से दुखी होकर शिवानंद तिवारी ने 22 अक्टूबर को राजद से छुट्टी लेने का एलान किया था. दूसरा कोई रास्ता ही नहीं बचा था. नीतीश दरवाजे बंद कर चुके हैं. भाजपा और कांग्रेस जैसी पार्टियों में उनकी जगह नहीं है. लालू प्रसाद यादव की गैरहाजिरी में राजद का काम देख रहे तेजस्वी यादव ने जगदानंद सिंह के जिम्मे सारा काम सौंप दिया था. शिवानंद तिवारी करते भी तो क्या.
पाला बदलने के लिए चर्चित रहे हैं शिवानंद तिवारी
बिहार के समाजवादी नेताओं में सबसे सीनियर शिवानंद तिवारी पर पाला बदलने का दाग लगातार लगता रहा है. 1990 में वे लालू यादव के साथ थे. लेकिन बाद में उन्होंने लालू यादव को चारा घोटाला का किंगपिन बताते हुए उनके खिलाफ सीबीआई जांच की अर्जी हाईकोर्ट में दायर कर दी. कुछ दिनों बाद फिर से वे लालू के कुनबे में ही वापस लौट गये. लालू के पाले में लौटते ही शिवानंद तिवारी ने चारा घोटाले को साजिश करार दिया. 2000 में वे राबड़ी देवी सरकार में मंत्री भी बन गये. 2006 में शिवानंद तिवारी वे फिर से लालू का साथ छोड़ कर नीतीश कुमार के साथ आ गये. नीतीश ने उन्हें राज्यसभा भेजा. 2014 में जब उन्हें फिर से राज्यसभा नहीं भेजा गया तो नीतीश से मोहभंग हुआ.
2014 के बाद शिवानंद तिवारी ने चुनावी राजनीति से सन्यास लेने का एलान किया. लेकिन कुछ समय बाद में वे फिर से लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद में शामिल हो गये. 2015 में उनके बेटे राहुल तिवारी को राजद ने विधानसभा का टिकट दिया. राहुल तिवारी विधायक बने और शिवानंद तिवारी राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष. लेकिन लालू के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने कमान संभाली और धीरे-धीरे शिवानंद तिवारी वहां भी उपेक्षित कर दिये गये.