सेनारी नरसंहार: 34 लोगों की गला रेत कर बर्बर हत्या का दोषी कोई नहीं, सारे अभियुक्तों को कोर्ट ने बरी किया, पढिये अंधे कानून के खेल की पूरी कहानी

सेनारी नरसंहार: 34 लोगों की गला रेत कर बर्बर हत्या का दोषी कोई नहीं, सारे अभियुक्तों को कोर्ट ने बरी किया, पढिये अंधे कानून के खेल की पूरी कहानी

PATNA : हथियारबंद अपराधियों ने पहले पूरे गांव को घेर लिया. फिर चुन चुन कर सारे मर्दों को घरों से बाहर निकाला गया. ऐसे 34 लोगों को एक साथ एक मैदान में लाया गया. वहां पहले उनके हाथ पैर बांधे गये और फिर जानवरों को काटने वाले छूरे से 34 इंसानों का गला रेत रेत कर मार डाला. खून के फव्वारे के बीच जल्लाद जश्न मनाते रहे. पूरी दुनिया में ऐसा वाकया आपने कहीं औऱ शायद ही सुना होगा. लेकिन अभी इस हैवानियत की पराकाष्ठा देखना बाकी है. बिहार में हाईकोर्ट ने कह दिया है 34 लोगों की ऐसी बर्बर हत्या किसी ने नहीं की. जिन्हें अभियुक्त बनाया गया था उन सबों को बाईज्जत बरी कर दिया गया.


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ये वाकया सेनारी नरसंहार का है. नरसंहार की पूरी कहानी हम बतायेंगे लेकिन उससे पहले शुक्रवार यानि आज पटना हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया उसे जान लीजिये. सेनारी नरसंहार में निचली अदालत ने 13 लोगों को सजा सुनायी थी. 10 को फांसी की सजा मिली थी औऱ 3 को उम्र कैद की. पटना हाईकोर्ट ने आज सब को बाइज्जत बरी कर दिया. सरकार को कहा कि वह तमाम दोषियों को तत्काल जेल से रिहा कर दे. 


पांच साल पहले सुनायी गयी थी सजा
2016 में जहानाबाद की कोर्ट ने सेनारी हत्याकांड में फैसला दिया था. इसमें 13 आऱोपियों को दोषी मानते हुए 10   को फांसी की सजा और तीन अन्य को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई.इसके अलावा अदालत ने उन तीनों दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिन्हें इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है. वैसे अदालत ने इस मामले में 15 लोगों को दोषी ठहराया था. दो अभियुक्त व्यास यादव और गनौरी यादव फरार थे इसलिए उन्हें सजा नहीं सुनायी गयी. निचली अदालत ने ही इस मामले में सबूत के अभाव में 23 अन्य लोगों को बरी कर दिया था.


सेनारी नरसंहार के बारे में जानिये
बिहार के जहानाबाद के सेनारी नरसंहार को 18 मार्च 1999 की रात अंजाम दिया गया था. सेनारी गांव में हत्यारों ने 34 लोगों के हाथ-पांव बांधकर उनका गला रेत दिया था. इस हत्याकांड ने पूरे देश में तूफान खड़ा कर दिया था. सेनारी नरसंहार को प्रतिबंधित नक्सली संगठन माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) ने अंजाम दिया था. एमसीसी के सैकड़ों हत्यारों ने 18 मार्च 1999 की रात सेनारी गांव की घेराबंदी कर ली थी. फिर चुन-चुन कर एक जाति विशेष के पुरुषों को घरों से निकाला गया था. औऱतों को घरों में ही बंद करके छोड़ दिया गया था. जिस औऱत ने भी अपने घर से मर्द को ले जाने का विरोध किया उसकी बर्बर पिटाई भी की गयी थी.


क्रूर हत्यारों ने सारे मर्दों को गांव के ही ठाकुरबाड़ी मंदिर के पास मैदान में इकट्ठा किया था. उसके बाद उनके हाथ पैर बांध दिये गये. फिर जानवरों को काटने वाले छूरे से उनके गले को रेत कर उनकी हत्या कर दी गयी. सेनारी हत्याकांड में 7 लोग ऐसे खुशकिस्मत भी निकले थे जिनका गला रेते जाने के बावजूद उनकी जान नहीं गयी. वे गंभीर रूप से जख्मी हुए लेकिन बाद में इलाज में उनकी जान बच गयी. 


एक-एक कर बरी होते गये अभियुक्त
सेनारी हत्याकांड में प्राथमिकी गांव की चिंतामणि देवी ने दर्ज करायी थी. चिंतामणि देवी के पति औऱ पुत्र दोनों की हत्या गला रेत कर दी गयी थी. पुलिस ने इस मामले में व्यास यादव उर्फ नरेश यादव औऱ 500 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी. 


1999 में हुए इस नरसंहार के 3 साल बाद पुलिस ने कोर्ट में चार्जशीट दायर किया. इसमें 74 लोगों को दोषी मानते हुए उन्हें सजा देने की कोर्ट से गुहार लगायी गयी थी. पुलिस द्वारा अभियुक्त बनाये गये 74 में से 18 फरार थे. लिहाजा बाकी बजे 56 अभियुक्तों के खिलाफ कोर्ट ने सुनवाई शुरू की. जहानाबाद कोर्ट ने उनमें से 45 के खिलाफ ही ट्रायल शुरू किया. 11 अभियुक्तों के खिलाफ चार्ज फ्रेम ही नहीं किया गया. यानि ट्रायल शुरू होने से पहले 11 बरी हो गये.


इस वीभत्स हत्याकांड की कोर्ट में सुनवाई किस तरह हुई ये भी कम हैरानी भरा नहीं है. कोर्ट ने जिन 45 अभियुक्तों के खिलाफ आऱोप पत्र गठित कर ट्रायल शुरू करने का फैसला किया उनमें से पांच लापता हो गये. यानि सिर्फ 40 अभियुक्त ट्रायल के लिए बच गये. उनमें से भी 2 की मौत ट्रायल के दौरान हो गयी. लिहाजा 38 लोगों के खिलाफ ही जहानाबाद कोर्ट में सुनवाई हुई. ट्रायल के बाद कोर्ट ने उन 38 लोगो में से भी 23 को बरी कर दिया. सिर्फ 15 लोगों को इस हैवानी नरसंहार का दोषी पाया गया. 


जिन 15 लोगों को जहानाबाद के एडीजे कोर्ट ने दोषी माना था उनमें से भी दो फरार हो गये. फरार अभियुक्तों को सजा नहीं सुनायी जा सकती. लिहाजा जहानाबाद की अदालत ने सिर्फ 13 अभियुक्तों को सजा सुनायी. 10 को फांसी औऱ 3 को उम्र कैद. पटना हाईकोर्ट ने आज उन सबों को बरी कर दिया. यानि 34 लोगों की क्रूरतम हत्या का दोषी कोई नहीं.