PATNA : विधान परिषद चुनाव के लिए नामांकन की शुरुआत होने के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों की तरफ से अपने अपने तरीके से दावेदारी भी शुरू हो गई है। एनडीए गठबंधन में एक तरफ जहां बीजेपी और जेडीयू के बीच 50-50 के फार्मूले पर पेंच फंसा हुआ है तो वहीं बड़े घटक दलों की मुश्किलें जीतन राम मांझी जैसे नेताओं ने बढ़ा दी है। जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा ने विधान परिषद की एक सीट पर अपना दावा पेश किया है। मीडिया के सामने आकर नहीं बल्कि बीजेपी और जेडीयू के नेताओं के सामने रखा गया है। फिलहाल पार्टी का कोई भी नेता अधिकारिक तौर पर इस पर कुछ भी नहीं कहना चाहता, लेकिन विश्वस्त सूत्रों की माने तो एक सीट पर मांझी की तरफ से मजबूत दावेदारी की जा रही है।
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि विधान परिषद की 1 सीट को लेकर जीतन राम मांझी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बातचीत भी की है। उनकी बातचीत जेडीयू के वरिष्ठ नेता और बिहार सरकार के मंत्री विजय कुमार चौधरी से भी हुई है। मांझी ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि वह जेडीयू के साथ ही एनडीए गठबंधन में शामिल हुए थे, इसलिए जेडीयू की जिम्मेदारी बनती है कि विधान परिषद की 1 सीटों स्थानीय मोर्चा को दिलवाए। आपको बता दें कि बिहार में 7 सीटों पर चुनाव हो रहे हैं। इनमें से तीन सीटें आरजेडी और लेफ्ट एलायंस के पास जानी है, जबकि 4 सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों को सदन में चुनकर जाना है। बीजेपी पहले ही 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार भेजने का ऐलान कर चुकी है, जबकि जेडीयू 5050 का फार्मूला अपनाने की बात कर रहा है। कहा जा रहा है कि 2 सीटों पर बीजेपी और दोपहर जेडीयू के उम्मीदवार विधान परिषद जाएं। ऐसे में जीतन राम मांझी ने एक सीट पर दावा पेश कर घटक दलों की परेशानी बढ़ा दी है।
सूत्र बता रहे हैं कि अगर विधान परिषद की 1 सीटें हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को नहीं मिली तो किशनगंज में आयोजित होने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के नेता कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं। किशनगंज में आयोजित होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इस बात को लेकर फैसला किया जाएगा कि विधान परिषद की 1 सीट नहीं मिलने की स्थिति में आगे कौन सा रास्ता चुना जाए। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या परिषद चुनाव को लेकर जीतन राम मांझी उसी तरह के रास्ते पर चल सकते हैं जैसे रास्ते पर मुकेश साहनी आगे बढ़े। मुकेश सैनी ने स्थानीय निकाय कोटे से परिषद चुनाव में अपना उम्मीदवार उतार कर बीजेपी से राहें जुदा कर दिया था। अब सहनी ना तो एनडीए में है और ना ही महागठबंधन में। सवाल उठना लाजमी है कि क्या आज भी ऐसे ही भविष्य की तरफ आगे बढ़ने का साहस जुटा पाएंगे।