PATNA : लोकसभा में दिल्ली संसोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान जेडीयू अध्यक्ष ललन सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के बीच हुए हॉट टॉक को लेकर बिहार की सियासत गर्म हो गई है। बीजेपी नेता ललन सिंह के ऊपर हमलावर बने हुए है। इसी कड़ी में लोजपा (रामविलास ) के अध्यक्ष चिराग पासवान आईना दिखाया है। चिराग पासवान ने कहा है कि - ललन सिंह को भाजपा ने पहचान दिलाई और वे भूल गए हैं कि उन्हीं के वोट के चलते वो सांसद बने हैं।
चिराग पासवान ने कहा कि- सदन के अंदर ललन सिंह का जिस तरीके से व्यवहार देखने को मिला यह समझ के पड़े था। एक लंबा समय जिन लोगों के विरोध में उन्होंने अपनी राजनीति की आज उनके समर्थन के लिए उनका इस तरह का व्यवहार समझ में नहीं आता है। उनसे मैं यह पूछना चाहता हूं कि एक पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को इस तरह की बातें उचित नजर आती है। जिस तरह का शब्द उन्होंने इस्तेमाल किया है।
चिराग पासवान ने कहा कि - कोई भी सांसद अपनी बातों को सदन में रखें इसमें किसी को कोई एतराज नहीं है सदन का पटल होता ही है इसी काम के लिए। लेकिन, ये लोग कभी सही मुद्दों पर बात नहीं करते है। मणिपुर के मामले को लेकर भी हम लोग लंबे समय से बहस करना चाहते थे।लेकिन, विपक्षी दलों के तरफ से उसमें कोई प्राथमिकता नहीं दिखाई पड़ी। मणिपुर को लेकर नियमों में फंसाते रहे कि प्रधानमंत्री जब तक जवाब नहीं देंगे तब तक वह कुछ भी नहीं कहेंगे।
ऐसा पहली बार हुआ हुआ होगा जब एक प्रधानमंत्री को सिर्फ बोलने के लिए उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो। इस मामले में सदन के तरफ से सब कुछ कह कर देने के बावजूद भी वह लोग सदन चलने देने को तैयार नहीं है। हकीकत यह है कि राजनीति करने के लिए भी कुछ सवाल उठाती तो है लेकिन उसमें समाधान करने की दृष्टि नजर नहीं आती है।
इधर, मोदी सरनेम केस मामले में राहुल गांधी को राहत मिलने पर चिराग पासवान ने कहा कि- यह न्यायालय के न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है। सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से उनकी सजा पर रोक लगाई है उससे यकीनन उनके सांसदी वापस से बहाल होती है। सजा देने का भी काम कोर्ट की तरफ से किया गया था और अब रोक लगाने का काम भी कोर्ट की तरफ से किया गया है तो यह एक न्यायिक प्रक्रिया है इस मामले में हम लोग कुछ नहीं कह सकते हैं। वही, विपक्षी दलों की तरफ से राहुल गांधी के खिलाफ षड्यंत्र कर फंसाने की बात पर चिराग पासवान ने कहा कि- षड्यंत्र कर फंसाने की बात तो राजनीतिक रूप में समझ में आता है। लेकिन, जहां कोर्ट का हस्तक्षेप है वहां इस तरह की बातें करना कहीं से उचित नहीं कहा जा सकता।