PATNA : बहुचर्चित दिल्ली सेवा विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग के दौरान एक दिलचस्प नजारा देखने को दिखा. राज्यसभा में जब इस विधेयक पर बहस हो रही थी तो सदन की कार्यवाही का संचालन सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ कर रहे थे. लेकिन जैसे ही विधेयक पर वोटिंग का समय आया, सभापति आसन से उठ गये. आसन पर जेडीयू के सांसद और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह बैठ गये. उन्होंने वोटिंग की सारी प्रक्रिया को संपन्न कराया. ये सामान्य बात नहीं थी, इसके पीछे बड़ा सियासी खेल था.
फंसने से बच गये हरिवंश
दरअसल जेडीयू के सांसद और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह को लेकर लगातार सवाल उठते रहे हैं. जब से नीतीश कुमार ने बिहार में राजद का दामन थामा है, तब से ही हरिवंश अपनी पार्टी और नीतीश कुमार से दूरी बनाकर रखे हुए हैं. जेडीयू नेताओं का ही एक तबका हरिवंश नारायण सिंह पर जमकर हमला बोलता रहा है. उन पर बीजेपी से सांठगांठ का आरोप लगाता रहा है. हालांकि पिछले महीने हरिवंश ने पटना में नीतीश कुमार से मुलाकात की थी. लेकिन वो औपचारिक मुलाकात ही रही.
अब सवाल ये उठता है कि दिल्ली सेवा विधेयक पर राज्यसभा में वोटिंग के दौरान सभापति आसन छोड़ कर क्यों उठ गये और उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह को क्यों आसन पर बिठाया गया. आसन पर बैठे व्यक्ति के फेरबदल ने जेडीयू के सांसद हरिवंश नारायण सिंह को संकट से बचा लिया.
दरअसल राज्यसभा में इस बिल पर वोटिंग के लिए जेडीयू ने व्हीप जारी कर रखा था. व्हीप में जेडीयू ने अपने सांसदों से कहा था कि वह इस विधेयक के विरोध में वोट करे. पार्टी का व्हीप मानना हर सांसद के लिए जरूरी होता है. अगर किसी ने पार्टी के व्हीप के खिलाफ वोट किया तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाती है. पार्टी के व्हीप के बाद वोटिंग का बहिष्कार करने से भी सदस्यता चली जाती है. हरिवंश नारायण सिंह इसी संकट में फंसे थे. उन्हें वोटिंग के दौरान हर हाल में दिल्ली सेवा बिल के खिलाफ वोट करना था.
आसन पर बैठते ही खतरा खत्म
दरअसल राज्यसभा या लोकसभा के नियमों के मुताबिक आसन पर बैठा सांसद किसी वोटिंग में शामिल नहीं होता. अगर सदन में वोटिंग के दौरान टाई हो जाये यानि पक्ष और विपक्ष दोनों में बराबर वोट पड़े तो आसन पर बैठे व्यक्ति को वोटिंग करनी होती है. आसन पर बैठे सांसद का वोट निर्णायक होता है. राज्यसभा में सोमवार को दिल्ली सेवा बिल पर वोटिंग के दौरान जैसे ही हरिवंश आसन पर बैठे, वैसे ही वे पार्टी के व्हीप से बाहर हो गये. उन्हें वोटिंग करना ही नहीं पड़ा. आसन पर बैठे व्यक्ति पर पार्टी का व्हीप लागू नहीं होता.
इसी रणनीति के तहत राज्यसभा में वोटिंग के दौरान हरिवंश नारायण सिंह आसन पर बिठा दिये गये. इससे दो फायदा हुआ. एक तो हरिवंश नारायण सिंह पार्टी के व्हीप से बच गये. दूसरा ये कि बीजेपी के खिलाफ पड़ने वाला एक वोट कम हो गया. इसी रणनीति के तहत हरिवंश नारायण सिंह ने आज दिल्ली सेवा विधेयक पर वोटिंग करायी.