पुरानी पद्धति से बंद होगा ईंट भट्ठा का संचालन, जिग-जैक तकनीक से कम होगा प्रदूषण

पुरानी पद्धति से बंद होगा ईंट भट्ठा का संचालन, जिग-जैक तकनीक से कम होगा प्रदूषण



SUPAUL:- मंत्री पद संभालने के बाद पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री नीरज कुमार सिंह आज पहली बार सुपौल पहुंचे। जहां BJP कार्यकर्ताओं ने गर्मजोशी के साथ स्वागत किया। बिहार सरकार में मंत्री और छातापुर के विधायक नीरज कुमार बबलू ने अपनी प्राथमिकता बताते हुए कहा कि 2012 से अब तक बिहार में 23 करोड़ पौधे लगाए जा चुके है। इस साल 5 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य भी रखा गया है।


वही बिहार में पुरानी तकनीक से संचालित हो रहे ईंट भट्टों पर कहा कि जिन चिमनियों में जिग-जैक तकनीक से ईंट का उत्पादन नहीं हो रहा उन्हें तत्काल बंद कराया जाएगा। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। इसे लेकर प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक भी करना होगा।  


सरकार के निर्देश के बावजूद सुपौल जिले में स्वच्छता तकनीक के बगैर पुरानी पद्धति से कई ईंट भट्ठे संचालित हो रहे हैं। नियम बनने के बाद संबंधित विभाग और प्रशासन को भी इसकी फिक्र नहीं है। विभाग ने यह देखना भी उचित नहीं समझा कि ईंट भट्ठे कैसे संचालित किए जा रहे हैं। नतीजा प्रदूषण कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। बिहार में संचालित ऐसे ईंट भट्ठों को तत्काल बंद कराए जाने की बात मंत्री नीरज कुमार ने की। उन्होंने कहा कि जिन चिमनियों में जिग-जैक तकनीक से ईंट का उत्पादन नहीं होता उन्हें तत्काल बंद किया जाएगा। इससे पर्यावरण को काफी नुकसान हो रहा है। बढ़ते प्रदूषण के प्रति लोगों को जागरूक करने की बात उन्होंने कही।   


माइनिंग विभाग के आंकड़ों के अनुसार सुपौल में करीब 73 ईंट भट्ठे हैं। इनमें से फिलहाल 69 ईंट भट्ठे चल रहे हैं। करीब 30 से 40 फीसदी ईंट-भट्ठे पुरानी पद्धति से चलाए जा रहे हैं। लेकिन कार्रवाई के नाम पर प्रदूषण विभाग सिर्फ औपचारिकता निभा रहा है। जिसके कारण प्रदूषण में इजाफा हो रहा है। पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा राज्य के करीब छह हजार ईंट भट्ठों को हाईकोर्ट के आदेश पर पुरानी पद्धति से भट्ठा चलाने पर रोक लगा दी गई थी। गौरतलब है कि 4 दिसंबर 2018 को पटना हाईकोर्ट ने ईंट भट्ठा चलाने की पुरानी पद्धति पर रोक लगाने को लेकर आदेश पारित किया था। इसमें नई पद्धति और स्वच्छता तकनीक अपानते हुए ईंट भट्ठों को चलाने का आदेश दिया था। जिसके बाद सुपौल में करीब 43 ईंट भट्ठों मालिकों ने नई पद्धति को अपना लिया।


नई तकनीक से ईंट भट्ठों का संचालन


नई तकनीक से ईंट भट्ठों के संचालन के लिए दो तरीके ज्यादा फेमस है। पहला नेचुरल जिग-जैक तकनीक की यदि बात की जाए तो इस पद्धति से फिलहाल सुपौल में ढाई दर्जन से अधिक ईंट भट्ठे चल रहे हैं। जिग-जैक तकनीक के जरिए गर्म हवा से ईंट को पकाया जाता है। वहीं डेढ़ दर्जन से अधिक भट्ठे हाई ड्राफ्ट तकनीक से संचालित किए जा रहे हैं। इसमें चिमनी की ऊंचाई 90 से 120 फीट होती है। इससे निकलने वाला धुआं सफेद और कम मात्रा में निकलता है जिसमें ईंट आसानी से पकता है।


पुरानी तकनीक से ईंट भट्ठों का संचालन

पुरानी पद्धति के ईंट भट्ठों से काला धुआं निकलता है जो वातावरण को काफी नुकसान पहुंचाता है। ईंट पकाने का काम नवंबर से शुरू हो जाता है। दिसंबर में ठंड के मौसम में चिमनी से निकलने वाला धुआं कोहरे में मिल जाता है। इससे लोगों को ठंड में सांस संबंधित परेशानी होने लगती है।