नीतीश सरकार और राजभवन में टकराव बढ़ा: केके पाठक के समर्थन में उतरी सरकार, कहा-यूनिवर्सिटी अपने फंड का खुद करे इंतजाम

नीतीश सरकार और राजभवन में टकराव बढ़ा: केके पाठक के समर्थन में उतरी सरकार, कहा-यूनिवर्सिटी अपने फंड का खुद करे इंतजाम

PATNA: शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक को लेकर अब राज्य सरकार और राजभवन के बीच विवाद गहराने के आसार नजर आने लगे हैं. कल यूनिवर्सिटी के वीसी और प्रोवीसी का वेतन रोकने वाले केके पाठक के आदेश पर राजभवन ने रोक लगा दी थी. लेकिन अब सरकार केके पाठक के समर्थन में उतर आयी है. सरकार ने कहा है कि अगर यूनिवर्सिटी को अपने तरीके से काम करना है तो वह सरकार से पैसा लेना बंद कर दे.


केके पाठक के समर्थन में उतरे मंत्री

नीतीश कुमार के खास माने वाले भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी आज केके पाठक के समर्थन में खुलकर सामने आ गये. अशोक चौधरी ने मीडिया से बात करते हुए राजभवन को नसीहत दे डाली. राजभवन ने बिहार के यूनिवर्सिटी को ऑटोनॉमस बडी यानि स्वायत्त संस्था करार दिया था, जिसका जवाब अशोक चौधरी ने दिया है. अशोक चौधरी ने आज कहा कि ऑटोनॉमस बॉडी का मतलब होता है कि 10 साल तक सरकार उसे मदद करेगी फिर वह अपना खर्च खुद उठायेगा. लेकिन राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को लगातार फंडिंग कर रही और उसी से विश्वविद्यालय का काम चल रहा है. राज्य सरकार अगर फंडिंग करेगी तो उसके गाइडलाइंस तो मानना ही पड़ेंगे. अगर विश्वविद्यालय यह चाहती है कि उसमें राज्य सरकार का दखल न हो तो वह सरकार से फंड न लेकर खुद पैसे का इंतजाम करे. 


राज्यपाल को चुनौती 

अशोक चौधरी का ये बयान सीधे बिहार के राज्यपाल और यूनिवर्सिटी के चांसलर को चुनौती माना जा रहा है. बिहार के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने शुक्रवार को शिक्षा विभाग के आदेश पर कड़ी आपत्ति जताई थी. शिक्षा विभाग ने बिहार विश्वविद्यालय (मुजफ्फरपुर) के प्रभारी वीसी और प्रो-वीसी के वेतन को रोक कर उनकी वित्तीय शक्तियों और बैंक खातों को फ्रीज कर दिया गया था. इसके बाद राज्यपाल के प्रधान सचिव रॉबर्ट एल चोंगथु ने पत्र लिखकर कहा था कि बिहार सरकार के पास विश्वविद्यालयों का ऑडिट करने का अधिकार है लेकिन वह वह यूनिवर्सिटी की वित्तीय शक्तियों और बैंक खातों को जब्त नहीं कर सकती है. बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 54 में ये स्पष्ट है. 


राजभवन की ओऱ से जारी पत्र में कहा गया था कि कुलपति और प्रतिकुलपति का वेतन रोकने, बैंक खातों को फ्रिज करने का फैसला मनमाना और अधिकार क्षेत्र से परे है. ये विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला है और शिक्षा विभाग ने कुलाधिपति की शक्तियों का अतिक्रमण किया है. राजभवन ने स्पष्ट किया था कि यूनिवर्सिटी के प्रमुख चांसलर होते हैं. वीसी या प्रो वीसी का वेतन रोकना राज्य सरकार के अधिकार में नहीं है. इसलिए शिक्षा विभाग आपना आदेश वापस ले और चांसलर के अधिकार क्षेत्र में घुसने या यूनिवर्सिटी के काम में दखलअंदाजी करने से परहेज करे. राज्यपाल के प्रधान सचिव ने बैंकों को पत्र लिख कर यूनिवर्सिटी के खातों को फ्रीज करने के शिक्षा विभाग के सचिव के आदेश को लागू नहीं करने का भी निर्देश दिया था. 


बता दें कि शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने समीक्षा बैठक बुलाई थी, जिसमें बिहार यूनिवर्सिटी के वीसी और प्रो वीसी शामिल नहीं हुए थे. इसके बाद केके पाठक के निर्देश पर शिक्षा सचिव वैजनाथ यादव ने वेतन रोकने और वित्तीय अधिकार निलंबित करने का आदेश जारी कर दिया था.