PATNA : बिहार विधानसभा के कार्यक्रम में आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच की केमिस्ट्री पर सबकी नजर होगी और पीएम मोदी एक दूसरे को लेकर कितने सहज रहते हैं, इस बात पर तमाम निगाहें टिकी होंगी। विरोधियों से लेकर एनडीए के घटक दल के नेताओं और मीडिया के कैमरे इस बात को कैप्चर करने में जुटे होंगे कि आखिर नमो और नीतीश का बर्ताव एक दूसरे को लेकर कैसा रहता है। खुले मंच पर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच पिछली मुलाकात लखनऊ में हुई थी। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में नीतीश कुमार को आमंत्रित किया गया था, तब प्रधानमंत्री के पास पहुंचकर नीतीश कुमार ने उनका अभिवादन किया था। अब पटना में मंच सजा है और दोनों नेताओं के बीच मुलाकात कैसी रहती है यह देखने वाली बात होगी। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री का जैसा रहेगा एनडीए की भविष्य की सियासत पर नजर आएगी।
हालांकि प्रधानमंत्री के दौरे के पहले केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान ने एनडीए में नेतृत्व को लेकर चल रहे कंफ्यूजन को दूर करने का प्रयास किया था। धर्मेंद्र प्रधान ने नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद यह कहा था कि साल 2025 तक एनडीए के नेता नीतीश कुमार हैं। इतना ही नहीं धर्मेंद्र प्रधान ने यह भी कहा था कि नीतीश केवल एनडीए के ही नहीं हमारे भी नेता हैं। धर्मेंद्र प्रधान के इस बयान के बाद नीतीश कुमार को लेकर जो बीजेपी नेता गाहे-बगाहे बयान देते रहते थे, उनकी जुबान बंद हो चुकी है। ऐसे में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नीतीश कुमार के ऊपर और ज्यादा भरोसा दिखाने की कोशिश करेंगे। नीतीश कुमार को लेकर प्रधानमंत्री जो कुछ कहेंगे उसका असर बिहार की सियासत पर लंबे अरसे तक पड़ेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दौरे के ठीक पहले जनता दल यूनाइटेड ने पीएम की तारीफ की है। जेडीयू के ऐसे नेता भी पीएम की तारीफ कर रहे हैं जो अब तक इशारों ही इशारों में केंद्र सरकार के ऊपर निशाना साधते रहे हैं। बात उपेंद्र कुशवाहा जैसे नेता की करें तो उन्होंने भी कहा है कि प्रधानमंत्री का पटना आगमन एक बड़ा मैसेज देगा। उपेंद्र कुशवाहा ने यहां तक कह दिया कि वह खुश किस्मत हैं कि उन्हें प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोनों के साथ काम करने का मौका मिला। जेडीयू दबी जुबान से ही सही लेकिन बिहार को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग याद दिला रहा है लेकिन फिलहाल सबके सामने यह सवाल है की क्या पीएम बिहार को खाली हाथ छोड़कर वापस लौट जाएंगे या वाकई बिहार जैसे राज्य के लिए केंद्र के पिटारे से जरूर कुछ निकलेगा।