आखिर नीतीश के लिए लालू-तेजस्वी ने क्यों ली शहाबुद्दीन परिवार की बलि? परिस्थितियों का सीएम कहने की लंबी सजा, शहाबुद्दीन परिवार RJD से ऑल आउट

आखिर नीतीश के लिए लालू-तेजस्वी ने क्यों ली शहाबुद्दीन परिवार की बलि? परिस्थितियों का सीएम कहने की लंबी सजा, शहाबुद्दीन परिवार RJD से ऑल आउट

PATNA : तीन दशकों तक सिवान ही नहीं बल्कि बिहार के बडे हिस्से में राजद के लिए वोट बटोरने वाले सबसे बड़े चेहरे माने जाने जाने वाले पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के परिवार को आखिरकार लालू-तेजस्वी ने पूरी तरह आउट कर दिया है. लालू-तेजस्वी और मो. शहाबुद्दीन के परिवार के बीच दूरी इस हद तक बढ़ गयी है कि अब फिर से एक होने की संभावना पूरी तरह खत्म हो गयी है. दिलचस्प बात ये है कि सियासी गलियारे में चर्चा हो रही है कि नीतीश कुमार को खुश करने के लिए लालू और तेजस्वी ने 30 साल तक राजद को खून-पसीना देने वाले शहाबुद्दीन के परिवार की बलि चढ़ा दी. 

बता दें कि शहाबुद्दीन की मौत के बाद लालू-तेजस्वी ने उनकी विधवा हिना शहाब और बेटे ओसामा को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया है. पहले चर्चा ये थी कि हिना शहाब को राज्यसभा भेजा जायेगा लेकिन राजद ने मुस्लिम कोटे से कारोबारी माने जाने वाले फैयाज आलम को राज्यसभा भेज दिया. लेकिन शहाबुद्दीन परिवार के राजद से ऑल आउट होने की खबर पर मुहर तब लगी जब राजद ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी, केंद्रीय संसदीय बोर्ड और प्रदेश संसदीय बोर्ड का गठन किया. इन तीनों में दो सौ से अधिक सदस्य हैं लेकिन इनमें शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब या उनके पुत्र ओसामा को जगह नहीं दी गई.


वफादारों पर अनाम चेहरे भारी पड़े

सिवान राजद के एक नेता ने बताया कि पार्टी राष्ट्रीय कार्यकारिणी, केंद्रीय संसदीय बोर्ड और प्रदेश संसदीय बोर्ड में शामिल किये गये लोगों में कई ऐसे नाम हैं जिन्हें राजद के 99 प्रतिशत वर्कर और नेता जानते तक नहीं. बिहार में अपने बूते एक हजार वोट लाने की भी क्षमता नहीं रखने वाले शरद यादव के घरेलू सहायकों तक को राजद की राष्ट्रीय कमेटी में रखा गया. कई नाम ऐसे भी जो खराब समय में राजद छोड़कर दूसरे दलों में चले गए थे. दूसरे दलों में इज्जत नहीं मिली तो पुराना घर बता कर फिर राजद में लौट आए. लेकिन लालू-तेजस्वी शहाबुद्दीन के अहसानों को भूल गये. सिवान के एक मुस्लिम राजद नेता ने कहा कि साहब (शहाबुद्दीन) ने कभी लालू यादव को धोखा नहीं दिया. उनके परिवार को उसकी ही सजा मिल रही है. नीतीश कुमार जैसे नेताओं ने साहब पर लगातार डोरा डाला था, सारे केस खत्म करने तक का ऑफर था लेकिन साहब लालू जी का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुए.  


नीतीश को खुश करने के लिए एक और बलि

बिहार में साढ़े तीन महीने नीतीश कुमार और राजद के गठबंधन की सरकार बनी है. इसके बाद राजद के जिस किसी नेता ने नीतीश के खिलाफ एक शब्द बोला उसकी लालू-तेजस्वी ने बलि ले ली. सुधाकर सिंह इसके सबसे बडे उदाहरण है. राजद के एक सीनियर नेता ने फर्स्ट बिहार को बताया कि शहाबुद्दीन के परिवार की भी बलि नीतीश कुमार को खुश करने के लिए ही ली गयी है. दरअसल, शहाबुद्दीन के जीते जी ही नीतीश उनसे खासे खफा था. 2017 में शहाबुद्दीन जेल में थे, जब बाहर निकले तो कह दिया कि नीतीश कुमार परिस्थितयों के मुख्यमंत्री हैं. उन दिनों राजद-जदयू की साझा सरकार चल रही थी. जब शहाबुद्दीन ने उन्हें परिस्थितयों का मुख्यमंत्री कहा तो नीतीश ने उसे दिल पर ले लिया. उसके बाद से शहाबुद्दीन पर कानून की सख्ती बढ़ती गई और सजा के दौरान ही उनकी मौत भी हुई. 

वैसे 2017 में ही नीतीश कुमार राजद से गठबंधन तोड़ कर बीजेपी के साथ चले गये थे. सिवान राजद के कई नेताओं के मुताबिक उसके बाद जेडीयू ने पूरी कोशिश की थी कि शहाबुद्दीन परिवार नीतीश के साथ आ जाये. लेकिन शहाबुद्दीन, हिना शहाब राजी नहीं हुए. यहां तक कि शहाबुद्दीन की मौत के बाद भी जेडीयू की ओर से हिना शहाब को अपने साथ लाने की कोशिश की गयी थी. जब वे नही मानी तो नीतीश कुमार और बौखलाये. शहाबुद्दीन समर्थक कह रहे हैं कि लालू-तेजस्वी के साथ वफादारी का साहेब के परिवार को यही इनाम मिला.  


राजद को हो सकता है भारी नुकसान

शहाबुद्दीन की मौत के बाद भी उनके परिवार का सारण क्षेत्र ही नहीं बल्कि उत्तर बिहार के बड़े इलाके में प्रभाव है. इसका उदाहरण गोपालगंज के उप चुनाव में देखने को मिला. शहाबुद्दीन के परिजनों ने उस उप चुनाव में राजद उम्मीदवार की मदद नहीं की. लिहाजा नाराज होकर बड़ी तादाद में मुस्लिम वोट ओवैसी की पार्टी  एआइएमआइएम के खाते में चले गए. एआइएमआइएम के उम्मीदवार को 11 हजार से अधिक वोट मिले और दो हजार से कम वोटों के अंतर से राजद उम्मीदवार की हार हो गई. सिवान से लेकर छपरा और गोपालगंज जैसे जिलों में आगे के चुनाव में भी शहाबुद्दीन परिवार की नाराजगी का बड़ा असर हो सकता है.