PATNA: बिहार में निकाय चुनाव की नई तारीखों के एलान के बाद एक बार फिर इसको लेकर सियासत तेज हो गई है। एक तरफ सरकार का कहना है कि बीजेपी बिहार में निकाय चुनाव नहीं होने देना चाह रही है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी का कहना है कि नीतीश कुमार की जिद के कारण निकाय चुनाव कानूनी दांवपेच में फंस गया है। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि रोक के बावजूद बिहार सरकार ने आनन-फानन में चुनाव की नई तारीखों का एलान कर दिया जो सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना है।वहीं उन्होंने आचार संहिता के दौरान गंगा उद्धव योजना के उद्घाटन पर भी सवाल उठाए और कहा कि दोषी अधिकारियों पर केस कर उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
बिहार सरकार और निर्वाचन आयोग पर हमला बोलते हुए बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि निकाय चुनाव को लेकर जब बिहार में आचार संहिता लागू था तो सीएम नीतीश और तेजस्वी ने कैसे गंगा उद्धव योजना का उद्घाटन कर दिया। कैसे विभाग के सचिव और प्रधान सचिव ने उद्घाटन करवाया, इनपर सरकार को केस करना चाहिए और अफसरों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए। जायसवाल ने निकाय चुनाव के तिथि घोषित करने पर निर्वाचन आयोग पर हमला करते हुए कहा कि निर्वाचन आयोग को यह बताना चाहिए कि उसने कब आयोग की रिपोर्ट को पढ़ा, कब उनको मिला और जब मिला तो किसी को जानकारी कैसे नहीं हुई।
संजय जायसवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट के 'ट्रिपल टेस्ट' संबंधी दिशा निर्देशों के अनुरूप कार्रवाई नहीं की गई है जिसके कारण चुनाव तथा चुनाव में ईबीसी आरक्षण के बारे में अभी भी संशय की स्थिति बनी हुई है। सरकार ने खानापूर्ति के उद्देश्य से एक पुराने संकल्प के तथा आधार पर आनन-फानन में अतिपिछड़े वर्गों के लिए राज्य आयोग का गठन तो कर दिया लेकिन यह आयोग न डेडिकेटेड है और न इंडिपेंडेंट जैसा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था। यह पूर्णतः दस्तखतिया आयोग है। इस कारण आयोग सही तरीके से तथा स्वतंत्र रूप से कार्य नहीं कर रहा।
उन्होंने कहा कि आयोग कभी किसी सूचना या कार्यविधि को सार्वजनिक नहीं किया। यहां तक कि एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ने भी सर्वेक्षण का प्रपत्र सार्वजनिक नहीं किया,सब कुछ गुपचुप तरीके से किया गया। आयोग ने फॉरवर्ड मुस्लिम जातियों को आरक्षण के दायरे से निकालने की आवश्यकता संबंधी स्मारपत्र पर भी गौर नहीं किया। यदि गौर किया होता तो भाजपा को साक्ष्य प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता। हमें इस बात की सूचना है कि कई अन्य लोगों ने भी आयोग में अभ्यावेदन दिये हैं पर उन्हें भी साक्ष्य देने के लिए नहीं बुलाया गया है। बीजेपी का मानना है कि ऐसे अनेक कारण मौजूद हैं जिनके कारण ईबीसी आयोग स्वयं तथा उसकी अनुशंसा न्यायिक समीक्षा में खरी नहीं उतर पायेगी।