नटवरलाल से भी तेज निकला नालंदा का भिखारी: फर्जी जमींदार बनकर 41 साल तक अरबों की संपत्ति भोगता रहा, पढिये ये दिलचस्प कहानी

नटवरलाल से भी तेज निकला नालंदा का भिखारी: फर्जी जमींदार बनकर 41 साल तक अरबों की संपत्ति भोगता रहा, पढिये ये दिलचस्प कहानी

NALANDA: घर-घर घूमकर भीख मांगने वाला एक शख्स 41 साल पहले अचानक से जमींदार बन गया. पटना, नालंदा से लेकर कई दूसरे जिलों में कोठी, सैकड़ों एकड़ जमीन औऱ करोड़ों के गहने-जेवरात. ये भिखारी इस पूरी प्रोपर्टी का सुख भोगता रहा. वह दोनों हाथों से पैसे लुटाता रहा. 41 साल बाद उसके फर्जीवाड़े का खेल खत्म हुआ. आज वह अंततः सलाखों के पीछे पहुंच गया. बिहार के जमुई से शुरू हुई ये कहानी नालंदा में जिस अंदाज में खत्‍म हुई, उसके सामने अच्‍छी-अच्‍छी फिल्‍मों और हिट धारावाहिकों की स्‍क्र‍िप्‍ट भी फेल हो जायेगा. पढ़िये नटवरलाल से भी बड़े ठग की दिलचस्प कहानी.


उससे पहले ये बता दें कि मंगलवार यानि आज नालंदा कोर्ट ने फर्जी जमींदार को फर्जीवाड़े का दोषी करार दिया. नालंदा जिला न्यायालय में 41 साल पुराने मामले की सुनवाई खत्म हुई. जज ने अकूत संपत्ति के मालिक बन बैठे कन्हैया उर्फ दयानंद गोसाई को फर्जीवाड़े के मामले का दोषी करार दिया है. कन्हैया उर्फ दयानंद गोसाई नाम का ये शख्स अब सलाखों के पीछे हैं लेकिन उसने चार दशक से भी ज्यादा समय तक अकूत संपत्ति को जमकर दोनों हाथों से लुटाया. नालंदा की अदालत ने उसे आइपीसी की धारा 419 में तीन वर्ष की सजा और 10 हजार रुपये का जुर्माना, आइपीसी की धारा 420 के तहत तीन वर्ष की सजा और दस हजार जुर्माना के साथ साथ  120बी के तहत छह माह की सजा सुनाई. जुर्माने का भुगतान नहीं करने पर छह माह अतिरिक्त कारावास की सजा मिलेगी. 


ऐसे शुरू हुई कहानी

नालंदा जिले के सिलाव थाना क्षेत्र के मोरगावां के जमींदार हुआ करते थे स्व. कामेश्वर सिंह. लगभग 1977 में यानि 45 साल पहले उनका इकलौता बेटा कन्हैया कुमार गायब हो गया. कन्हैया 1977 में मैट्रिक की परीक्षा देने चंडी गए थे, वहीं से गायब हो गए. काफी तलाश के बाद जब कन्हैया का कुछ पता नहीं चला तो सिलाव (वर्तमान में बेन) थाने में केस दर्ज कराया गया. 


1981 में यानि 41 साल पहले दयानंद नाम का युवक साधु के वेश में मोरगावां भीख मांगने पहुंचा. दयानंद ने ग्रामीणों से कहा कि वह जमींदार कामेश्वर सिंह का बेटा है. कामेश्वर सिंह तब तक 75 साल के हो चुके थे. उन्हें जैसे ही जानकारी मिली कि उनका बेटा आया है तो वहां पहुंच गये. वह युवक कामेश्वर सिंह को पापा-पापा कहते हुए गले से लिपट गया. कन्हैया के लापता हुए पांच साल बीत चुके थे. लिहाजा गांव वाले भी उसे ठीक से पहचान नहीं रहे थे. लेकिन उसने ऐसी बातें बतानी शुरू की जिससे गांव वालों को लगा कि वह कन्हैया ही है. ग्रामीणों की बात मानकर कामेश्वर सिंह उस युवक को अपने घर ले गये. 


मां ने बेटा मानने से इंकार कर दिया

दरअसल वह व्यक्ति पूरी ट्रेनिंग के साथ वहां आया था. जमींदार कामेश्वर सिंह उसे बेटा मान बैठे. लेकिन कन्हैया की मां रामसखी देवी की आंखों ने फर्जी बेटे को पहचानने में भूल नहीं की. मां रामसखी देवी ने घर आय़े युवक को अपना बेटा मानने से इन्कार कर दिया. उन्होंने देखा कि उनके बेटे के माथे के पीछे चोट था. बचपन में लगे चोट के कारण वहां बाल नहीं उग सका था. लेकिन जो व्यक्ति घऱ आय़ा था उसके माथे पर ऐसा कोई निशान नहीं था. 


41 साल तक कानूनी लड़ाई

75 साल की उम्र में बूढ़े कामेश्वर सिंह ग्रामीणों के दबाव में उसे बेटा मानने को मजबूर हो रहे थे. लेकिन मां रामसखी देवी फर्जी बेटे के खिलाफ कोर्ट चली गयी. उन्होंने कोर्ट में मुकदमा दायर कर फर्जी बेटे को जायदाद नहीं देने की गुहार लगायी. मां रामसखी देवी का केस नालंदा के लोअर कोर्ट में चल ही रहा था कि उनकी मौत हो गयी. उसके बाद पूरा केस ही पलट गया. नालंदा के लोअर कोर्ट ने उस केस को खारिज कर दिया. कोर्ट ने कहा कि पिता कामेश्वर सिंह उसे अपना पुत्र मान रहे हैं. केस करने वाली रामसखी देवी का निधन हो चुका है. लिहाजा अब केस चलाने का कोई मतलब नहीं है. कोर्ट ने फर्जी बेटे को संपत्ति का वारिस करार दिया. 


सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर फिर से सुनवाई

लोअर कोर्ट के फैसले के बाद फर्जी कन्हैया बन बैठे व्यक्ति की सारी बाधायें दूर हो गयी. वह कामेश्वर सिंह की संपत्ति पर जमकर ऐश करने लगा. लेकिन इस बीच कामेश्वर सिंह की बेटी विद्या देवी आगे आयी. वे लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ पटना हाईकोर्ट चलीं गईं. लेकिन पटना हाईकोर्ट ने भी खुद को कन्हैया बताने वाले के पक्ष में फैसला सुना दिया. मजबूरन विद्या देवी सुप्रीम कोर्ट पहुंची. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने लोअर कोर्ट को आदेश दिया कि वह सिर्फ इस आधार पर केस को खारिज नहीं करे कि सूचक रामसखी देवी की मौत हो गयी है. वह उनकी बेटी विद्या देवी को अपना पक्ष रखने का मौका दे और मामले में ट्रायल शुरू करे. इसके बाद लोअर कोर्ट में फिर से फर्जीवाड़े की सुनवाई शुरू हुई. 


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद नालंदा के लोअर कोर्ट में ये मामला लटका था. सिर्फ तारीख पर तारीख दी जा रही थी. करीब तीन महीने पहले एसीजेएम- पांच बने मानवेंद्र मिश्रा ने पटना हाईकोर्ट के निर्देश पर साल 2000 से पहले के पेंडिग सभी मामलों  का स्पीडी ट्रायल कराने का निर्णय लिया. उन्होंने देखा कि फर्जीवाड़े का ये मामला कोर्ट में 41 वर्ष से लंबित है. लिहाजा स्पीडी ट्रायल शुरू हुआ और पिछले दो महीने से इसकी डे-टू-डे सुनवाई हो रही थी. 


आज सामने आयी हकीकत 

नालंदा लोअर कोर्ट में आज फर्जी कन्हैया की हकीकत सामने आ गयी. कोर्ट के जज मानवेंद्र मिश्रा ने कहा कि तथाकथित कन्हैया दरअसल दयानंद गोसाई नाम का व्यक्ति है. उसने ढेर सारे फर्जीवाड़े कर खुद को कन्हैया साबित करने की कोशिश की. वह दयानंद गोसाई है. उसका मूल घर जमुई जिले में है. उसने दयानंद गोसाई को मार कर कन्हैया का रूप लेने के लिए दयानंद गोसाई का फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र भी बनवा लिया था. 


इस मामले के अभियोजन अधिकारी डा. राजेश कुमार पाठक ने बताया कि कोर्ट ने जब कन्हैया उर्फ दयानंद गोसाईं को डीएनए टेस्ट कराने को कहा तो वह मुकर गया. जांच में पाया गया कि उसने दयानंद गोसाई का जो मृत्यु प्रमाण पत्र दिया था वह भी फर्जी है. अगर वह कन्हैया था तो 1977 में गायब होने के बाद 1981 के बीच वह कहां रहा, इसका कोई प्रमाण नहीं प्रस्तुत कर पाया. किसी ने भी कोर्ट में आकर गवाही नहीं दी कि कन्हैया हमारे साथ था. 


जमुई के तीन लोगों ने की दयानंद की पहचान

कोर्ट में सुनवाई के दौरान जमुई के चौकीदार, उसी गांव के ग्रामीण नंदन और विष्णु गोसाईं ने भी पहचान किया कि खुद को कन्हैया बता रहा व्यक्ति दयानंद गोसाईं है. उसने दयानंद गोसाईं का मृत्यु प्रमाण-पत्र भी 2014 में दिया था. उसके पहले वह कोर्ट में कहता रहा था कि दयानंद गोसाईं नाम का कोई व्यक्ति है ही नहीं. जबकि बिहार बोर्ड के रिकार्ड में दर्ज है कि 1980 में प्रभु गोस्वामी के बेटे दयानंद गोसाईं ने मैट्रिक की परीक्षा दी थी. पुलिस जांच में ये भी पता चला कि प्रभु गोस्वामी का छोटा बेटा दयानंद भिखारी बनकर नालंदा गया है और वहां जमींदार की संपत्ति पर कब्जा जमा लिया है. 


अभियोजन अधिकारी डा. राजेश कुमार पाठक ने बताया कि अभियुक्त दयानंद गोसाई सात गवाह लाया था लेकिन उसमें से कोई कन्हैया का हमउम्र नहीं था. परिवार का कोई भी सदस्य नहीं ऐसा नहीं था जो उसे कन्हैया बता रहा हो. दयानंद गोसाई ने दो मामा को गवाह के रूप में प्रस्तुत किता था, वे सौतेली मां के गांव लखीसराय के थे. पास के बख्तियारपुर में रहने वाले अपने मामा नहीं आए.


गांव वालों ने बताया कि कामेश्वर सिंह की मौत के बाद दयानंद गोसाईं ने पिता का श्राद्ध तक नहीं किया था. कामेश्वर सिंह के इकलौते पुत्र होने के नाते कन्हैया को उनके निधन पर मुखाग्नि देनी चाहिए थी लेकिन वह मुखाग्नि देने भी नहीं आय़ा था. कामेश्वर सिंह को उनके भतीजे ने मुखाग्नि दी थी. 


अरबों की संपत्ति हाथ से गयी

फर्जीवाड़े से कन्हैया बन बैठे दयानंद के हाथों से अरबों की संपत्ति चली गयी. जमींदार स्व. कामेश्वर सिंह के पास लगभग डेढ सौ बीघा जमीन है. एक बीघे जमीन की कीमत 30 से 40 लाख रुपये है. इसके अलावा परवलपुर में काफी जमीन है, जिसकी कीमत  लगभग एक करोड़ रूपये है. मोरगावां में दो बीघा जमीन में दो मंजिली इमारत है, इसकी कीमत भी एक करोड़ रूपये के करीब है. इसके साथ ही पटना में सीताराम और लक्ष्मी कंप्लेक्स कामेश्वर सिंह का ही है. दोनों अपार्टमेंट 15-15 कट्ठा जमीन में बना है, जिसकी कीमत 200 करोड़ रूपये से ज्यादा की है. वहीं पटना के निलगिरी अपार्टमेंट में भी एक फ्लैट कन्हैया का है, जिसकी कीमत लगभग एक करोड़ रूपये है.