PATNA : बिहार में नगर निकाय चुनाव की घोषणा भले ही हो गई हो लेकिन संशय के बादल अभी भी मंडरा रहे हैं। दरअसल हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में मामला फंसा होने के कारण यह सवाल बना हुआ है कि क्या नगर निकाय चुनाव बिहार में समय पर हो पाएंगे? आपको बता दें कि बिहार में नगर निकाय चुनाव की घोषणा के पहले ही 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई थी, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमीशन मानने से इनकार कर दिया था। इसके ठीक बाद 30 नवंबर को राज्य निर्वाचन आयोग ने राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग की तरफ से दी गई रिपोर्ट के आधार पर बिहार में निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था। लेकिन इस मामले में याचिकाकर्ता सुनील कुमार ने एक बार फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। इस बीच राज्य सरकार ने राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग को लेकर अपना स्टैंड क्लियर किया है।
राज्य के नगर विकास एवं आवास विभाग ने शनिवार को एक अधिकारिक बयान जारी करते हुए स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग आयोग को ही डेडिकेटेड कमीशन के रूप में घोषित किया है। इसकी रिपोर्ट राज्य निर्वाचन आयोग को भेजी गई जिसके आधार पर बिहार में 18 और 28 दिसंबर को दो चरण में नगर निकाय चुनाव की घोषणा की गई है। विभाग का कहना है कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के उन सभी आदेशों का पालन किया है जो निकाय चुनाव को लेकर दिए गए थे। सरकार ने अन्य राज्यों की तर्ज पर ही डेडीकेटेड कमीशन के फॉर्मेट पर काम किया है। सरकार का कहना है कि मध्यप्रदेश सरकार ने पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग को ही डेडीकेटेड कमीशन के तौर पर अधिसूचित कर उसकी रिपोर्ट के जरिए वहां स्थानीय निकाय चुनाव कराए थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी अनुमति भी दी थी। इसी तरह बिहार में भी बीते 21 अक्टूबर को अति पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमीशन घोषित किया था।
सरकार के रुख से यह स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट में वह मध्यप्रदेश के आधार पर ही बिहार में डेडिकेटेड कमीशन की बात रखने वाली है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में 28 नवंबर को कह चुका है कि नीतीश सरकार की तरफ से जिस अति पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन किया गया उसे डेडिकेटेड कमीशन नहीं माना जा सकता। आपको बता दें कि पटना के एन सिन्हा इंस्टिट्यूट से 261 नगर निकायों में सर्वे कराया गया, इसकी रिपोर्ट आयोग को दी गई और इस रिपोर्ट के आधार पर ही आयोग के अध्यक्ष और सभी सदस्यों ने जिलों का भ्रमण कर पूरी रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंपी। 6 दिसंबर को इस मामले में हाई कोर्ट के अंदर सुनवाई होनी है। नगर निकाय चुनाव से जुड़े अन्य बिंदुओं पर जहां हाई कोर्ट सुनवाई करेगा, वहीं सुप्रीम कोर्ट में भी मामला फंसा हुआ है। अब देखना होगा कि राज्य सरकार की तरफ से जो तर्क कोर्ट में रखा जाता है उसे न्यायालय स्वीकार करता है या नगर निकाय चुनाव पर ग्रहण लग जाता है।