कुढ़नी में वोट लेने नहीं.. कटवाने का खेल, वोटकटवा का इतिहास क्या कहता है?

कुढ़नी में वोट लेने नहीं.. कटवाने का खेल, वोटकटवा का इतिहास क्या कहता है?

PATNA : कुर्मी विधानसभा उपचुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी ताकत झोंकनी शुरू कर दी है। कुढ़नी में यूं तो सीधा मुकाबला बीजेपी और जेडीयू उम्मीदवारों के बीच गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार मनोज कुशवाहा और बीजेपी की तरफ से केदार गुप्ता मैदान में हैं लेकिन कुर्मी में हार और जीत का फैसला उम्मीदवार तय करेंगे जिन्हें छोटी पार्टियों ने मैदान में उतारा है। पहला नाम मुकेश सहनी की वीआईपी के उम्मीदवार निलाभ कुमार का हैं तो वहीं दूसरे उम्मीदवार एआईएमआईएम के गुलाम मुर्तजा हैं। वीआईपी और एआईएमआईएम के उम्मीदवार अलग-अलग गठबंधन दलों के उम्मीदवारों की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।


कुढ़नी विधानसभा सीट का इतिहास भी यही बताता है कि यहां हार और जीत का फैसला वोट मिलने से नहीं बल्कि वोट कटने से होता है। शायद यही वजह है कि जेडीयू और बीजेपी इस बात पर ज्यादा फोकस कर रही है कि उनके विरोधी खेमे के लिए वोटों में सेंधमारी करने वाले उम्मीदवार को कितनी सफलता मिलती है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार को जो भी वोट मिलेंगे वह महागठबंधन के पाले में सेंधमारी होगी, ऐसा गोपालगंज में पहले भी देखने को मिला है। वहीं दूसरी तरफ वीआईपी ने भूमिहार जाति से आने वाले नीलाम कुमार को उम्मीदवार बनाकर डबल कार्ड खेला है। नीलाभ जो वोट काटेंगे वह साहनी जाति के वोटरों के अलावे बीजेपी के कैडर माने जाने वाले वोट में सेंधमारी की तरह होगा। बीजेपी भी इसका काट निकालने में जुट गई है।


कुढ़नी में वोट कटवा का इतिहास पुराना रहा है। पिछले चुनाव में केदार गुप्ता की हार केवल 712 वोटों से हुई थी। जेडीयू के साथ रहते हुए भी बीजेपी उम्मीदवार की हार अगर हुई तो इसके पीछे सबसे बड़ी वजह उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उम्मीदवार का वोट काटना था। तब रालोसपा के उम्मीदवार रामबाबू सिंह ने 10,000 से ज्यादा वोट लिए थे और माना जा रहा था कि यह वोट जेडीयू के परंपरागत वोट बैंक कुशवाहा जाति के थे। बीजेपी को यहां नीतीश कुमार के साथ रहने का फायदा नहीं मिला क्योंकि उपेंद्र कुशवाहा के उम्मीदवार ने खेल कर दिया। इस सीट पर इसी वजह से आरजेडी को मामूली अंतर से जीत मिली थी।


साल 2015 के चुनाव में वोट कटवा की बहुत ज्यादा भूमिका तो नहीं रही लेकिन 2010 के विधानसभा चुनाव में भी लगभग यही देखने को मिला था। तब कांग्रेस के उम्मीदवार रहे शाह आलम शब्बू ने 12000 से अधिक वोट काटे थे और मनोज कुशवाहा जो एनडीए के उम्मीदवार थे वह लगभग डेढ़ हजार वोटों से जीत गए थे। उस वक्त लोक जनशक्ति पार्टी के उम्मीदवार विजेंद्र चौधरी को जो वोट मिल सकते थे, उस पर कांग्रेस उम्मीदवार ने सेंधमारी कर ली थी। 2010 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी और लोक जनशक्ति पार्टी एक गठबंधन में चुनाव लड़े थे जबकि कांग्रेस अलग थी। जाहिर है इस बार भी नीलाभ कुमार और गुलाम मुर्तजा बड़े उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ सकते हैं हालांकि जीत के दावे तो सभी दलों की तरफ से किए जा रहे हैं लेकिन इतिहास अगर कुढ़नी में दोहराता है तो  वोट कटवा ही किसी को विजेता बना सकता है।