PATNA : सुप्रीमकोर्ट ने विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीमकोर्ट ने साफ़ कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक आदेश दिया है कि कुलपति पद के उम्मीदवारों को प्रोफेसर के रूप में शिक्षण का अनुभव कम से कम 10 साल का होना जरूरी है. फैसले के मुताबिक नियुक्ति और उसकी प्रक्रिया भले ही राज्य के कानून के तहत हो, लेकिन वह किसी भी सूरत में यूजीसी के प्रावधानों के विपरीत नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला गुजरात की सरदार पटेल यूनिवर्सिटी में कुलपति की नियुक्ति के संदर्भ में आया है, जिसमें जस्टिस एमआर शाह और न्यायमूर्ति वीवी नागरत्ना की पीठ ने वहां के कुलपति पद पर हुई नियुक्ति को रद्द कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सामान्य रूप से पूरे बिहार सहित देश के विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति के संदर्भ में नजीर के रूप में मान्य होगा. इसका असर बिहार में भी देखने को मिलेगा. बिहार में यूजीसी के मापदंडों के अलावा सुप्रीम कोर्ट का 2013 का फैसला और हाइकोर्ट पटना की एकल खंडपीठ के एक फैसले के आधार पर कुलाधिपति की तरफ से कुलपति का चयन किया जाता है. फैसले के मुताबिक कुलाधिपति, कुलपति की नियुक्ति का निर्णय मुख्यमंत्री से सक्रिय विमर्श के बाद ही लेंगे. यह विमर्श लिखित रूप से भी होता है.
हाइकोर्ट पटना ने कुलपति पद के उम्मीदवारों के चयन के लिए 10 वर्ष का अनुभव उनके प्रमोशन नोटिफिकेशन की तिथि से मान्य होगा. हालांकि यूजीसी के प्रावधान में तिथि का उल्लेख नहीं है. च्वाइस बेस्ड प्रमोशन बिहार में 2005 से प्रभावी है जो कि यूजीसी प्रावधान 2018 के समतुल्य है. इसी प्रावधान के अनुसार10 साल का अनुभव अनिवार्य किया गया है.
नियुक्ति के संबंध में आ रहीं व्यावहारिक दिक्कतें बिहार उच्चतर शिक्षा परिषद के उपाध्यक्ष प्रो कामेश्वर झा ने बताया कि बिहार में प्रोफेसर्स के प्रमोशन की अधिसूचना काफी देरी से विभिन्न वजहों से प्रकाशित होती है. इससे कई पात्र प्रोफेसर इसके दायरे से बाहर ही रह जाते हैं. इसलिए प्रमोशन अधिसूचना समय पर जारी की जानी चाहिए. प्रो झा के मुताबिक कुलपतियों की नियुक्ति के लिए गठित सर्च कमेटियां बिहारी विद्वानों को छांटने में असमर्थ दिख रही हैं. हालांकि, हमारे यहां यूजीसी के नियमों का पालन पूरी तरह हो रहा है.