DESK: चार दशकों तक अपना साम्राज्य चलाने वाले छोटे सरकार जब शनिवार की रात पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए चुपके से निकल भागे तो ये तय हो गया कि आखिरकार छोटे सरकार का साम्राज्य खत्म हो गया है. जिस छोटे सरकार के आगे बिहार की सरकार बौनी थी, जिसके घर कभी नीतीश कुमार हाथ जोड़े पहुंच गये थे, उनकी सरकार ने ही छोटे सरकार के पतन की कहानी रच दी. अजगर से लेकर सांढ़, हाथी और घोड़ों को अपने इशारे पर नचाने वाले छोटे सरकार को इस दफे सरकार ने ऐसे गिरफ्त में लिया है कि अब शिकंजे से बाहर निकल पाना मुमकिन नहीं दिख रहा है. लोग जानते हैं कि छोटे सरकार का ये इलाज नीतीश कुमार के ही खास सिपाहसलार ने किया है. https://www.youtube.com/watch?v=0n6BKDksnbs अनंत सिंह से छोटे सरकार बनने की कहानी पटना से लेकर मोकामा तक छोटे सरकार के नाम से मशहूर अनंत सिंह की कहानी किसी फिल्मी कहानी के माफिक है, जिसमें एक्शन, रोमांच और थ्रिलर सब है. जानिये अनंत सिंह के छोटे सरकार बनने की कहानी... नौ साल की उम्र में जेल गये थे अनंत सिंह कहते हैं अनंत सिंह को 9 साल की उम्र में ही गांव के आपसी विवाद के एक केस में जेल जाना पड़ा. थोड़े दिन में रिहाई हो गयी. लेकिन जुर्म से अनंत सिंह की जुदाई नहीं हुई. मोकामा के पास नदवां गांव में जन्मे अनंत सिंह जब जवान हुए तो निगाहें मोकामा टाल पर जा टिकीं. तब मोकामा टाल इलाके में फसल पर कब्जे के लिए आपराधिक गिरोहों के बीच मुठभेड़ आम बात थी. अनंत सिंह ने टाल इलाके पर कब्जे के लिए हथियार उठाया. कुछ ही दिनों में मोकामा टाल पर उनका वर्चस्व कायम हो गया. भाई की हत्या के बाद खुलकर उठाया हथियार टाल पर कब्जे की लडाई ने अपने गांव नदवां में ही अनंत सिंह के कई दुश्मनों को खड़ा कर दिया. जंग ऐसी छिड़ी कि अनंत सिंह के बड़े भाई विरंची सिंह की सरेआम हत्या कर दी गयी. भाई की हत्या के बाद अनंत सिंह ने खुलेआम हथियार उठा लिये. उसके बाद मोकामा इलाके में हत्या का जो दौर शुरू हुआ उसे याद करके पुराने लोग आज भी कांप उठते हैं. अनंत सिंह की पहली खूनी अदावत अपने ही गांव के विवेका पहलवान के परिवार से हुई. इस जंग में दोनों ओर से कई लाशें गिरीं. ये खूनी जंग आज तक जारी है. भाई के जरिये सियासत में रखा कदम जुर्म की दुनिया में पैर जमाने के बाद अनंत सिंह को ये अहसास हो गया कि असली जंग तभी जीती जा सकती है जब क्राइम और पॉलिटिक्स का कॉकटेल बनाया जाये. लिहाजा अनंत सिंह ने अपने भाई दिलीप सिंह को पॉलिटिक्स में उतारने का फैसला लिया. दिलीप सिंह ने मोकामा से 1990 में चुनाव लड़ा और अनंत सिंह के रूतबे के सहारे विधायक बनकर विधानसभा पहुंच गये. 1995 में भी दिलीप सिंह विधायक बने. लेकिन 2000 में उन्हें अपने ही पुराने शागिर्द सूरजभान के हाथों हार का सामना करना पड़ा. 2004 में अनंत ने नीतीश को नतमस्तक कराया ये वो दौर था जब नीतीश कुमार बाढ लोकसभा सीट से सांसद का चुनाव लड़ते थे. अनंत सिंह का पूरा कुनबा तब लालू यादव के पक्ष में काम करता था. कहते हैं कि अनंत सिंह मोकामा इलाके के 90 बूथों को राजद के लिए छाप दिया करते थे. लिहाजा 2004 में अनंत सिंह का समर्थन हासिल करने नीतीश कुमार उनके घर पहुंच गये. नीतीश को सिक्कों से तौला था अनंत सिंह ने 2004 के चुनाव के दौरान ही अनंत सिंह ने नीतीश कुमार को सिक्कों से तौला था. इसका वीडियो वायरल हुआ तो नीतीश की खूब फजीहत भी हुई लेकिन छोटे सरकार का रूआब ऐसा था कि नीतीश कुमार ने उनका साथ नहीं छोड़ा. हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में बाढ संसदीय क्षेत्र से नीतीश कुमार की हार हो गयी. लेकिन छोटे सरकार की राजनीति में इंट्री हो गयी. अनंत के घर STF की छापेमारी में ताबड़तोड़ चली थी गोलियां 2004 में बिहार पुलिस के स्पेशल टास्क फोर्स ने अनंत सिंह के घर छापेमारी की थी. हालांकि अनंत सिंह उस वक्त जेल में थे. लेकिन घर में मौजूद उनके समर्थकों ने एसटीएफ पर ही धावा बोल दिया. दोनों ओर से घंटों ताबड़तोड़ गोलियां चली थीं, जिसमें 8 लोग मारे गये. मारे जाने वालों में एसटीएफ का एक जवान भी शामिल था. 2005 में विधायक बन गये अनंत सिंह 2005 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने अनंत सिंह को मोकामा विधानसभा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया. अनंत सिंह चुनाव जीत कर विधायक बन गये. उसके बाद उनका सिक्का ऐसा जमा कि पटना और आस पास के इलाके में छोटे सरकार से नजरें मिलाने वाला कोई नहीं रहा. अनंत सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जित की बाहुबली से नेता बनने के सफर में अनंत सिंह ने अकूत संपत्ति अर्जित की. पटना में उनके कई आलीशान मकान हैं. फ्रेजर रोड में उनका मॉल विवादों में रहा है. पाटलिपुत्रा कॉलोनी में उनके होटल पर भी बखेड़ा हुआ. लेकिन कार्रवाई करने का साहस कोई नहीं जुटा पाया. अनंत सिंह के नजदीकी लोगों की मानें तो दिल्ली के बेहद प़ॉश इलाके ग्रेटर कैलाश में भी अनंत सिंह का बड़ा बंगला है. अजगर से लेकर हाथी-घोड़ा और साढ़ तक पाला अनंत सिंह अपने इस शौक के कारण भी चर्चा में रहे. कभी अजगर पाला तो कभी हाथी. 2007 में लालू यादव का घोड़ा खरीद लिया. अनंत सिंह ने जब 50 लाख रूपये में साढ़ खरीदा तो उसकी भी खूब चर्चा हुई. कुछ दिनों के लिए छोटे सरकार ने बग्घी का शौक पाला. पटना की सड़कों पर बग्घी चलाते हुए अनंत सिंह ये बताते रहे कि उनके शौक के आगे सारे नियम कायदे कानून फेल हैं. 2015 में छूटा जदयू से नाता लेकिन 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले अनंत सिंह का नाता जदयू से टूट गया. दरअसल बाढ में एक खास जाति के युवक की हत्या में अनंत सिंह का नाम आया. लालू यादव ने इसे मुद्दा बना लिया. नीतीश कुमार सत्ता बचाने की मजबूरी में लालू यादव के साथ थे. लिहाजा अनंत सिंह को जदयू के टिकट से बेदखल कर दिया गया. लेकिन जेल में रहकर भी अनंत सिंह ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव जीत लिया. ललन सिंह ने अस्त कर दिया छोटे सरकार का साम्राज्य नीतीश कुमार के खास सिपाहसलार ललन सिंह बहुत दिनों तक अनंत सिंह के राजनीतिक गुरू माने जाते रहे. लेकिन 2019 के चुनाव में अनंत सिंह ने अपने सियासी गुरू को ही मात देने की जिद ठान ली. अनंत सिंह ने अपनी पत्नी नीलम देवी को ललन सिंह के खिलाफ कांग्रेसी उम्मीदवार बना कर उतार दिया. चुनाव के दौरान ही ललन सिंह ने अनंत सिंह का होम्योपैथिक इलाज करने का एलान किया था. आखिरकार ललन सिंह का दावा सच साबित हो गया.