PATNA : जनता दल यूनाइटेड को वैसे तो वन मैन पार्टी माना जाता है। लेकिन, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेता होने के बावजूद राजनीतिक सुविधा के मुताबिक किसी न किसी को अपने बाद नंबर 2 के तौर पर ताकतवर बनाकर रखा। नीतीश कुमार ने कभी आरसीपी सिंह को अपने बाद पार्टी में सबसे ताकतवर बनाए रखा, तो अब यह ताकत राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के पास शिफ्ट हो चुकी है। उनकी पार्टी इन दिनों संगठन चुनाव की प्रक्रिया से गुजर रही है। लेकिन, चुनाव के दौरान जो खबरें सामने आई हैं वह नीतीश कुमार की परेशानी बढ़ाने वाला है।
दरअसल, संगठन चुनाव के दौरान जेडीयू में लगातार विवाद देखने को मिल रहा है। जिलाध्यक्षों के चुनाव में विवाद इतना गहराया कि कई जगहों पर चुनाव स्थगित करना पड़ा। कई जिलों में अध्यक्ष के चयन के लिए नीतीश कुमार को अधिकृत कर दिया गया, तो कई जिले ऐसे रहे जहां अध्यक्ष की रेस में उतरे उम्मीदवारों ने धांधली का आरोप लगाया। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर जनता दल यूनाइटेड के अंदर संगठन चुनाव की प्रक्रिया में इतना विवाद क्यों हो रहा है?
विवाद का कारण क्या?
जनता दल यूनाइटेड में प्रखंड स्तर तक संगठन चुनाव की प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीके से पूरी करा ली गई थी। लेकिन, जैसे ही मामला जिला स्तर के चुनाव तक पहुंचा विवाद सामने आने लगा संगठन चुनाव के दौरान जिलों में मुख्यालय की तरफ से पर्यवेक्षक के भेजे गए थे। लेकिन, पर्यवेक्षकों के ऊपर भी धांधली का आरोप कई जगहों पर लगा। पार्टी के कई जिलों में ऐसे उम्मीदवार देखने को मिले जो मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाते रहे। दरअसल, ज्यादातर जिलों में पुराने अध्यक्षों को ही जीत मिली उनके निर्वाचन को लेकर सवाल भी उठे ऐसे में पार्टी के अंदर अध्यक्ष की रेस में आए नए नेताओं को लगा कि उनका अधिकार छीना जा रहा है। यही वजह रही कि विरोध और विवाद सामने आते रहे और इस विवाद के कारण मधेपुरा शेखपुरा औरंगाबाद सासाराम जैसे जिलों में संगठन चुनाव को स्थगित कर दिया गया। इन जिलों से कोई भी डेलिगेट पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नहीं रहेगा । औरंगाबाद और सासाराम में चुनाव गड़बड़ी की शिकायत के बाद स्थगित कर दिया गया । गया महानगर अध्यक्ष चुनाव का विवाद भी मुख्यालय तक पहुंचा है यहां राजू बरनवाल के निर्वाचित होने के बाद बाकी उम्मीदवारों ने धांधली का आरोप लगाया है । इसके साथ ही नालंदा, मधुबनी और बेगूसराय में अध्यक्ष कौन होगा इसका फैसला नीतीश कुमार के ऊपर छोड़ दिया गया है?
आरसीपी ने किया खेल?
जनता दल यूनाइटेड के संगठन चुनाव में जो विवाद देखने को मिल रहा है, उस पर जानकारों की राय अलग-अलग है। संगठन को बारीक तरीके से समझने वाले कई लोगों के मुताबिक पार्टी भले ही युवाओं और नए चेहरों को तरजीह देने का दावा करती हो लेकिन, हकीकत यह है कि नेतृत्व पुराने चरणों के भरोसे ही चलना चाहता है उसका झुकाव पुराने जिला अध्यक्षों की तरफ है। यही वजह है कि नए उम्मीदवारों का चयन नहीं होने से उनकी तरफ से धांधली का आरोप लगाया जा रहा है। इस नाराजगी के बीच रहा सहा काम पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी से बाहर हो चुके आरसीपी सिंह ने कर दिया है। आरसीपी सिंह ने जेडीयू के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक विकल्प खड़ा करने का प्रयास किया है आरसीपी सिंह भले ही नई पार्टी बनाने का ऐलान नहीं किया है। लेकिन, जेडीयू के अंदर आज भी संगठन में ऐसे नेताओं की कमी नहीं जो आरसीपी सिंह से जुड़े रहे हैं । खास तौर पर कई जिलों में ऐसे उम्मीदवारों ने पुराने जिला अध्यक्षों को चुनौती दी जो आरसीपी सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष या संगठन का राष्ट्रीय महासचिव रहते हुए पार्टी में काम करते रहे जिनके वर्क परफॉर्मेंस पर आरसीपी सिंह ने उन्हें जिम्मेदारी देने का वादा किया था।
अब आरसीपी सिंह भले ही पार्टी में नहीं हो लेकिन जेडीयू के अंदर नेताओं की कतार खड़ी हो चुकी है यही वजह है कि नए पुराने के बीच विवाद बढ़ता जा रहा है। आरसीपी सिंह के संपर्क में ऐसे कई नेता हैं और यही वजह है कि संगठन चुनाव के दौरान ही पार्टी कमजोर नजर आ रही है और विवाद ज्यादा देखने को मिल रहा है। वैसे देखा जाए तो आरसीपी सिंह के साथ जो नेता पार्टी छोड़कर गए उनकी लिस्ट बहुत लंबी नहीं है। लेकिन, जो लोग भी पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ हैं वह जमीन पर काम कर रहे हैं आरसीपी सिंह खुद नालंदा समेत कई जिलों का दौरा कर चुके हैं। आगे भी उनकी तरफ से जारी रहने वाला है सिंह के करीबी माने जाने वाले कन्हैया सिंह ने भी शाहाबाद और बाकी इलाकों में दौरा किया है । औरंगाबाद भोजपुर जैसे जिलों में उनकी पकड़ देखने को मिली है और जेडीयू के संगठन के अंदर आरसीपी सिंह की मजबूत पकड़ के पीछे ऐसे नेताओं की भूमिका बेहद खास है।
नीतीश और ललन सिंह की चुनौती
जिला स्तर पर संगठन चुनाव की प्रक्रिया पूरी होने के बाद प्रदेश नेतृत्व तक चुनावी प्रक्रिया पहुंचेगी। संगठन चुनाव के दौरान ही पार्टी के अंदर जो विवाद देखने को मिल रहा है उसको देखकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह परेशान होंगे। इन दोनों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि विवाद को दरकिनार कर नेताओं को कैसे संगठन में जुड़े रखा जाए। जिला अध्यक्षों के निर्वाचन के बाद उनके विरोध में जो दूसरे उम्मीदवार खड़े हुए और धांधली का आरोप लगाते रहे वह पार्टी के साथ कैसे जोड़कर मजबूती से काम करेंगे यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती होगी ।