PATNA: 7 जनवरी से बिहार में शुरू हुई जातीय जनगणना को लेकर राजनीति तेज हो गयी है। RJD के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने जातीय जनगणना को लेकर बड़ा बयान दिया है। उन्होंने कहा कि बिहार सरकार जनगणना नहीं बल्कि जातीय सर्वेक्षण करा रही है। जनगणना कराने का अधिकार भारत सरकार को है। लेकिन राज्य सरकार इसे करा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकारें जनगणना नहीं करा सकती लेकिन सर्वेक्षण करा सकती हैं।
शिवानंद तिवारी आगे कहते हैं कि बिहार समेत वैसे राज्य जो पंचायतों या नगर निकायों के चुनावों में अति पिछड़ों के लिए सीट आरक्षित करना चाहती हैं। उन्हें सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार जातीय सर्वेक्षण कराना ही होगा। उनको ये बताना होगा कि अति पिछड़ों को आरक्षण देने का आधार क्या है? उच्चतम न्यायालय ने इसके लिए तीन कसौटियां, यानी ट्रिपल निर्धारित किया है। इसके लिए भी जातीय सर्वेक्षण कराना आवश्यक है।
गौरतलब है कि 2011 तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के दबाव में सामाजिक और आर्थिक आधार को भी जन गणना शामिल किया था लेकिन बाद में बताया गया कि वो आंकड़े त्रुटिपूर्ण थे। इसलिए उनको प्रकाशित नहीं किया गया। हालाँकि कमजोर तबकों के लिए योजनाओं के निर्धारण में उन आंकड़ों की मदद ली जा रही है।
शिवानंद तिवारी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेता गोपीनाथ मुंडे ने भी जनगणना में जाति को भी शामिल करने की मांग उठाई थी। राजनाथ सिंह जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने भी पिछड़ों की हालत का जायज़ा लेने के लिए जातीय सर्वेक्षण कराया था। उसी के आधार पर आरक्षण देने का प्रस्ताव भी किया था।
उन्होंने यह भी कहा कि आखिर जातीय सर्वेक्षण का विरोध कौन और क्यों कर रहा है? स्वाभाविक है कि इसका विरोध उन लोगों की ओर से हो रहा है जो अपनी संख्या के अनुपात से कहीं ज़्यादा जगहों पर क़ब्ज़ा जमाए हुए बैठे हैं। उन्हें लगता है कि जातीय सर्वेक्षण से यह भेद खुल जाएगा और समाज में ग़ुस्सा पैदा होगा। इसलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं। शिवानंद ने कहा कि हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इस बात को समझेगा और बिहार सरकार द्वरा सर्वेक्षण कराने का जो अभियान चलाया जा रहा है उसको पुरा करने में किसी प्रकार का अवरोध पैदा नहीं करेगा।