PATNA: पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार की जातीय गणना पर हो रही सुनवाई पूरी हो गयी है. लगातार पांच दिनों तक इस मामले पर कोर्ट में बहस हुई. इसमें पहले जातीय गणना के खिलाफ याचिका दायर करने वालों ने पक्ष रखा. फिर तीन दिनों तक राज्य सरकार की ओर से दलीलें पेश की गयी. कोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है. अगले सप्ताह कोर्ट अपना फैसला सुना सकती है.
पटना हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन और जस्टिस पार्थ सारथी की बेंच में इस मामले में सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता पी के शाही ने कोर्ट के सामने दलीलें रखी. उन्होंने कहा कि जातीय गणना कोई जनगणना नहीं बल्कि सर्वे है और इसका मकसद आम नागरिकों के आंकड़े इकट्ठा करना है. सरकार इन आंकड़ों के सहारे कल्याण की योजनायें चलायेगी.
लेकिन जातीय गणना के खिलाफ याचिका दायर करने वालों की ओर से बहस करने वाले वकीलों ने कहा कि बिहार सरकार के पास जातिगत जनगणना कराने का अधिकार नहीं है. वह सरकारी पैसे का दुरूपयोग कर रही है. सरकार निजता के कानून का उल्लंघन कर रही है. लोगों को जाति बताने को मजबूर किया जा रहा है. राज्य सरकार के पास इसका कोई अधिकार नहीं है.
बता दें कि बिहार सरकार ने इसी साल 7 जनवरी से जातीय गणना का पहला चरण शुरू किया था. इसके बाद 15 अप्रैल को दूसरे चरण की शुरुआत हुई थी. लेकिन इसी बीच 21 अप्रैल को जातीय गणना का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. सुप्रीम कोर्ट ने जातीय गणना के खिलाफ याचिका दायर करने वालों को हाईकोर्ट जाने को कहा और निर्देश दिया कि हाईकोर्ट जल्द इस मामले की सुनवाई करे.
4 मई को पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जातीय गणना पर रोक लगा दिया था. कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई के लिए 3 जुलाई की अगली तारीख तय की थी. इसके बाद बिहार सरकार ने जल्द सुनवाई की अपील दाखिल की थी लेकिन हाईकोर्ट ने उसकी मांग नहीं मानी. 9 मई को बिहार सरकार की अपील हाईकोर्ट से रिजेक्ट हुई तो बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट में सुनवाई पूरी होने तक इंतजार करने को कहा था. इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने 3 से 7 जुलाई तक इस मामले पर सुनवाई की.