खुशखबरी : बंदरों पर कोरोना वायरस के वैक्सीन का सफल परीक्षण

खुशखबरी : बंदरों पर कोरोना वायरस के वैक्सीन का सफल परीक्षण

DESK : महामारी का प्रकोप झेलने के बाद लगातार चीन से अच्छी खबर आने लगी है. कुछ दिन पहले खबर आई थी कि चीन ने अपने टेंट वाले हॉस्पिटल को बंद कर दिया है क्योंकि मरीजों की संख्या अब बहुत कम हो गई है. वुहान शहर अब सामान्य हो रहा है, लोग अपने सामान्य दिनचर्या में वापस लौट रहे है. पर ये महामारी अब पुरे विश्व में अपना पैर पसार चूका है. विश्व के वैज्ञानिक कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन बनाने में लगे है. कल से अमेरिका ने इंसानों पर एक वैक्सीन का परीक्षण शुरू किया है. अमेरिका अगर इस में सफल हुआ तो ये एक बड़ी कामयाबी होगी. 


चीन भी इस महामारी का सामना करने के बाद से इस और कदन बढ़ाये जा रहा है.जहां से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला, वहां से एक अच्छी खबर आई है .वुहान से पूरी दुनिया में फैले कोरोना वायरस की वजह से 170,740 लोग संक्रमित हुए हैं. जबकि, 6687 लोगों की मौत हो गई है. चीन के वैज्ञानिकों ने कहा है कि उन लोगों ने प्रयोगशाला में कुछ बंदरों को कोरोना वायरस से संक्रमित किया था.अब इन बंदरों के शरीर ने इस वायरस से लड़ने के लिए इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक शक्ति) हासिल कर ली है. वैज्ञानिकों का कहना है की अगर बंदर का शरीर कोरोना वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित कर सकता है तो इंसान भी अपनी इम्यूनिटी को मजबूत करके इस बीमारी से लड़ सकता है. वैज्ञानिक अब इन बंदरों के शरीर से एंटीबॉडीज लेकर नए वैक्सीन को विकसित करने की तैयारी में है. 

एंटीबॉडीज हमारे शरीर में रहने वाले वो सिपाही हैं जो बाहर से होने वाले बैक्टीरिया और वायरस के हमले से बचाता हैं. हमें किसी भी प्रकार के संक्रमण और बीमारियों से लड़ने में मदद करता है. चीनी वैज्ञानिकों की मने तो वह इस वैक्सीन का परीक्षण एक महीने में शुरू कर देंगे. साथ ही जो लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैंउनके शरीर से एंटीबॉडीज को लेकर वैक्सीन बनाने की तैयारी में है.आपको बता दें कि चीन में अब तक 75 हजार से ज्यादा लोग कोरोना वायरस से ठीक हो चुके हैं.बंदरों के एंटीबॉडीज और ठीक हो चुके कोरोना के मरीजों के एंटीबॉडीज कोमिलाकर देखा जायेगाकि दोनों में कितनी समानता है.

कुछ लोगों को ये डर है कि उन्हें दोबारा कोरोना वायरस का संक्रमण हो सकता है. तो आप चिंता न करें क्योंकि कोरोना वायरस का संक्रमण सिर्फ 0.1 से 1 फीसदी लोगों को ही दोबारा होने का खतरा रहता है. इस वजह से वैज्ञानिकों को पूरी उम्मीद है कि उन्हें इस प्रयास में सफलता जरुर मिलेगी.