गया के श्मशान में अजूबा हो गया, शव नहीं आया तो पुतले को जलाया गया

गया के श्मशान में अजूबा हो गया, शव नहीं आया तो पुतले को जलाया गया

GAYA : मोक्ष भूमि गया,  जहां हर दिन एक मुंड और एक पिंड जरूरी है. लेकिन लॉकडाउन के इस काल में बुधवार को मुक्ति के लिए  एक भी शव श्मशान घाट में नहीं पहुंचा. इसके बाद डोम राजा के नेतृत्व में एक मुंड की परंपरा को पूरा करने के लिए पुतला बनाकर अतिम संस्कार किया गया. ठठरी से पुतला को बांधा गया और पूरे धार्मिक मंत्रों के साथ पुतला का दाह संस्कार किया गया और पिंड भी प्रदान किया गया.  पुतला को अज्ञात मान कर  कर्मकांड किया गया.

आपको बता दें कि मोक्ष भूमि  गया में भगवान विष्णु का पद चिन्ह है. पालनहार मां सती हैं. शास्त्रों पुराणों की माने तो गयासुर राक्षस ने  भगवान विष्णु से हर दिन एक मुंड और एक पिंड का वरदान मांगा था. उस वरदान के बाद से ही यह परंपरा सनातन काल से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि जिस दिन यह परंपरा टूटेगी उस दिन गयासुर जाग जाएगा.


सनातन काल से चली आ रही परंपरा को निर्वहन करने के लिए बुधवाक को 3 फीट का पुतला बनाया गया था और पूरी रीती रिवाज ले उसकी अंत्येष्टि की गई.बता दें कि लॉकडाउन के काल में पितृ मुक्ति के लिए एक भी तीर्थयात्री गयाजी नहीं आ रहे हैं . पिंडदान का कर्मकांड टूटे नहीं इसके लिए स्थानीय पंडों ने अपने ऊपर जिम्मेदारी उठा रखी है. हर दिन पंडा समाज का एक सदस्य विष्णुपद मंदिर के गर्भगृह में पिंडदान के कर्मकांड को पूरा कर रहा है. अब एक मुंड की परंपरा को श्मशान घाट के लोग पूरा कर रहे हैं. घाट के डोम राजा  ने बताया कि लॉकडाउन के  अवधि में औसतन 5 से 10 शव हर दिन पहुंच रहे थे. वहीं लॉकडाउन के पहले 15 से 20 शव हर रोज आते थे  लेकिन बुधवार की देर शाम तक दाह संस्कार के लिए एक श्मशान घाट पर नहीं पहुंचा.  जिसके बाद परंपरा का निर्वहन करने के लिए पुतला जलाया गया.