PATNA: बिहार में सरकारी स्वास्थ्य सेवा इस बदतर हालत में है कि वहां जाने वाले मरीज अगर जिंदा बच जाये तो ये उपर वाले की कृपा ही होगी. भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक यानि CAG की रिपोर्ट ने नीतीश सरकार को एक तरह से नंगा कर दिया है. CAG ने बिहार के जिस भी सरकारी अस्पताल का निरीक्षण किया वहां सिर्फ और सिर्फ बदहाली नजर आयी. ना डाक्टर-नर्स हैं, ना ही दवा और जांच की व्यवस्था. सरकारी अस्पताल में अवैध ब्लड बैंक चल रहे हैं. जिलों के सबसे बड़े सरकारी अस्पतालों में ऑपरेशन थियेटर तक नहीं है. CAG की टीम ने देखा कि सरकारी अस्पतालों में आवारा कुत्ते और सुअर घूम रहे हैं.
CAG की रिपोर्ट पढ़िये
भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक यानि CAG की टीम ने बिहार के पांच जिलों के जिला अस्पताल यानि सदर अस्पतालों के साथ साथ सिविल सर्जन कार्यालय और स्वास्थ्य विभाग के राज्यस्तरीय कार्यालयों का निरीक्षण किया था. उसके बाद जो रिपोर्ट आयी है वह हैरान कर देने वाली है. CAG की टीम ने पटना, बिहारशरीफ यानि नालंदा, हाजीपुर यानि वैशाली, मधेपुरा और जहानाबाद के सदर अस्पतालों का निरीक्षण किया था. पढिये क्या पाया सीएजी की टीम ने
सदर अस्पतालों में कुत्ते औऱ सुअर घूम रहे हैं
CAG की टीम ने देखा कि जहानाबाद सदर अस्पताल परिसर में आवारा कुत्ते घूम रहे हैं. मधेपुरा के सदर अस्पताल परिसर में आवारा सूअरों का झुंड घूम रहा है. मधेपुरा सदर अस्पताल में इमरजेंसी के सामने खुला नाला था, जिसमें कचरा भरा था. जहानाबाद सदर अस्पताल में नाले का पानी, कचरा और मल फैला हुआ था. अस्पताल में बने नये पीआईसीयू के पीछे खुले में शौच का जगह बना दिया गया था. शहर का एक खुला नाला सदर अस्पताल के बीच से होकर गुजर रहा था जो मरीजों के लिए भारी खतरनाक है.
मरीजों को मुफ्त दवा देने का दाव झूठा
राज्य सरकार कहती है कि सरकारी अस्पतालों में आने वाले मरीजों को मुफ्त दवा दिया जायेगा. सीएजी की टीम ने पाया कि जिला अस्पतालों में इलाज के लिए आने वाले बाहरी मरीज (ओपीडी) में से 59 प्रतिशत मरीजों को दवा मिली ही नहीं. दवा की स्थिति आपातकालीन मरीजों के लिए भी बेहद खराब है. सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन स्थिति में ज्यादातर दुर्घटना वाले मरीज आते हैं. लेकिन बिहार के सरकारी अस्पतालों में दुर्घटना और स्ट्रोक के दवा थे ही नहीं. सरकारी अस्पतालों में मनोचिकित्सा की भी कोई दवा नहीं है. बिहार के सदर अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों को सरकार ने 14 तरह की दवा देने का एलान कर रखा है. इसमें से आधी दवा उपलब्ध नहीं थी.
सरकारी अस्पतालों में बेड की भारी कमी
सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिहार के सरकारी जिला अस्पतालों यानि सदर अस्पतालों में 92 प्रतिशत तक खाली है. यानि अगर किसी अस्पताल में 100 बेड की जरूरत है तो वहां सिर्फ 8 बेड हैं. सीएजी की रिपोर्ट ने सरकार की पोल खोली है. नीतीश सरकार ने 2009 में ही सरकारी अस्पतालों में बेड बढ़ाने का फैसला लिया था, जिसे अब तक बढाया नही गया. सीएजी की रिपोर्ट कहती है-बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों के लिए न खुद कोई मानक या मापदंड तैयार किया और ना ही भारत सरकार द्वारा निर्धारित मानक या मापदंड पर काम किया. लिहाजा सारे अस्पतालों में संसाधन और सेवा की भारी कमी है.
डाक्टर से लेकर नर्स की बड़े पैमाने पर कमी
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर, नर्स और पैरा मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है. नेशनल हेल्थ मिशन के तहत सभी जिला अस्पतालों में 24 तरह के इलाज की सुविधा होनी चाहिये. लेकिन बिहार के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ 9 से 12 तरीके की सुविधा ही उपलब्ध है. किसी जिला अस्पताल में हृदय रोग, ईएनटी, किडनी रोग, मधुमेह, त्वचा रोग, साइकेट्री जैसी बीमारियों के इलाज का इंतजाम है ही नहीं. सरकारी अस्पताल में जो रोगी आ भी रहे हैं उन्हें चंद मिनटों में निपटा दिया जा रहा है. सीएजी की रिपोर्ट कहती है-इतने कम अवधि का डॉक्टरी परामर्श मरीजों की देखभाल पर प्रतिकूल असर डाल सकती है.
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार डॉक्टर औऱ नर्सों की बहाली नहीं कर रही है. यहा तक कि उनके खाली पदों को भरने के लिए कुल रिक्तियों का प्रकाशन भी नहीं किया जा रहा है. बिहार सरकार ने जिला अस्पतालो में दवा भेजने का काम अपनी एजेंसी BMSICL को दे रखा है. इस एजेंसी ने जिला अस्पतालों को दवा भेजा ही नहीं.
सरकारी अस्पतालों में अवैध ब्लड बैंक
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी नियमों के मुताबिक हर जिले के सदर अस्पताल में 24 घंटे काम करने वाला ब्लड बैंक होना चाहिये. भले ही बेड की संख्या कितनी भी हो. लेकिन बिहार में 36 जिला अस्पतालों में से 9 जिला अस्पतालों में ब्लड बैंक है ही नहीं. हैरानी की बात ये थी कि बिहार के 27 जिला अस्पतालों में जो ब्लड बैंक चल रहा है उसमें से 25 ब्लड बैंक के पास वैध लाइसेंस ही नहीं है. यानि वे अवैध तरीके से चलाये जा रहे हैं.
ना ऑपरेशन थियेटर औऱ ना ही आईसीयू
सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी नियमों के मुताबिक सदर अस्पतालों में ऑपरेशन थियेटर तक नहीं है. सीएजी ने पांच जिलों के सदर अस्पतालों को जांचा तो पाया कि उनमें से किसी में इमरजेंसी सर्जरी के लिए ओटी नहीं है. दूसरी सर्जरी के लिए एक-दो अस्पतालों में ऑपरेशन थियेटर बने हैं लेकिन वहां न उपकरण है न दवा. ओटी में 22 तरह की दवा होनी चाहिये, बिहार के सदर अस्पतालों में जहां ओटी है, वहां दो तरह की दवा मिली. सरकारी नियमों के मुताबिक ऑपरेशन थियेटर में 25 तरह के उपस्कर होने चाहिये, बिहार के सदर अस्पतालों में अधिकतम 13 तरह के उपस्कर मिले.
सरकारी नियमों के मुताबिक हर जिला अस्पताल में आईसीयू होना जरूरी है. सीएजी ने बिहार के पांच जिलों के सदर अस्पतालों की जांच की तो पाया कि सिर्फ एक जिला जहानाबाद में आईसीयू है. लेकिन वह आईसीयू भी सिर्फ नाम का. जहानाबाद सदर अस्पताल के आईसीयू में नौ तरह के उपकरण होने चाहिये लेकिन सिर्फ तीन तरह का उपकरण उपलब्ध था. आईसीयू में हर पाली में पांच नर्स होना चाहिये लेकिन सिर्फ एक-एक नर्स की तैनाती की गयी थी. आईसीयू में न दवा उपलब्ध थी औऱ ना ही आईसीयू प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा था.