PATNA: जेडीयू के नवनियुक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने अपनी ताजपोशी के लगभग दो महीने बाद अपनी कमेटी यानि पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों के नाम का एलान कर दिया. जेडीयू की नयी राष्ट्रीय कमेटी में वैसे तो ज्यादातर चेहरे पुराने हैं. सिर्फ एक बात दिलचस्प है. पार्टी ने 9 राष्ट्रीय महासचिव बनाये हैं उनमें से 4 मुसलमान हैं. बीजेपी के साथ की पार्टी अगर मुसलमानों को इस कदर तवज्जो दे रही है तो इसके मायने निकाले जाने लगे हैं.
वैसे जेडीयू के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची में ललन सिंह को लेकर कुल 18 नाम शामिल हैं. पहले नंबर पर ललन सिंह, दूसरे नंबर पर प्रधान महासचिव केसी त्यागी औऱ तीसरे नंबर पर संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा. उम्मीद जतायी जा रही थी कि ललन सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद प्रधान महासचिव पद से उनके स्वजातीय केसी त्यागी को हटाया जायेगा. लेकिन केसी त्यागी इन दिनों नीतीश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मैदान तैयार कर रहे हैं. वे हरियाणा में चौटाला परिवार से बात कर रहे हैं. शरद पवार के भी संपर्क में हैं. केसी त्यागी पुराने समाजवादी रहे हैं औऱ देश भर की तमाम पार्टियों के नेताओं से उनके निजी संबंध रहे हैं. नीतीश ने आगे की राजनीति का ख्याल करके ही उन्हें अपने पुराने पद यानि प्रधान महासचिव पर काबिज रखा है.
9 महासचिव में 4 मुसलमान
लेकिन जेडीयू के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की सूची में सबसे दिलचस्प बात है मुसलमानों को दिया गया तवज्जो. पार्टी ने 9 राष्ट्रीय महासचिव बनाये हैं. उनमें से 4 मुसलमान हैं. कभी लालू प्रसाद यादव के सबसे खास माने जाने वाले अली अशरफ फातमी के साथ साथ पिछले साल कांग्रेस छोड़कर जेडीयू में आये कमरे आलम जेडीयू के महासचिव बनाये गये हैं. इसके अलावा दिल्ली में जेडीयू का काम देखने वाले अफाक अहमद खान और बिहार के गुलाम रसूल बलियावी को भी राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया है. वैसे ये दोनों पहले से भी पार्टी में इसी पद पर थे.
आगे की सोंच रहे नीतीश?
जेडीयू की ये नयी कमेटी कहने को तो ललन सिंह ने तय किया है लेकिन नाम तो नीतीश कुमार ने ही तय किया है. अब सियासी गलियारे में चर्चा ये हो रही है कि आखिरकार नीतीश कुमार कौन सी सियासत कर रहे हैं. नीतीश बीजेपी के साथ सरकार चला रहे हैं. बीजेपी और मुसलमानों का रिश्ता जगजाहिर है. बीजेपी के साथ वाली पार्टी को मुसलमानों को कितना वोट मिलता है या मिलेगा ये भी बताने की बात नहीं है.
फिर बिहार में बीजेपी की दरियादिली से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज नीतीश कुमार मुसलमान नेताओं को तरजीह देकर कौन सी राजनीति कर रहे हैं. जेडीयू के एक नेता ने बताया कि ये आगे की पॉलिटिक्स है. दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ही नीतीश कुमार बीजेपी से पल्ला झाडने पर आमदा हैं. लेकिन उन्हें कोई दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा है. नीतीश कुर्सी भी नहीं छोडना चाहते हैं.
फिलहाल नीतीश कुमार ने जातिगत जनगणना को लेकर बीजेपी के खिलाफ जंग छेड़ दी है. जेडीयू के ही एक नेता की मानें तो नीतीश इस उम्मीद में हैं कि अगर जातिगत जनगणना के मामले में बीजेपी से रिश्ता टूटने की नौबत आती है तो राजद का साथ मिल सकता है. हालांकि राजद ने कोई ग्रीन सिग्नल नहीं है. सूत्र बताते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव के बाद से ही नीतीश कुमार के दूत लालू प्रसाद यादव को मनाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन तेजस्वी मान नहीं रहे. सबसे बडी बाधा ये है कि नीतीश किसी सूरत में मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं. उधर तेजस्वी का मानना है कि नीतीश के मुख्यमंत्री रहते कोई समझौता नहीं होगा. अगर नीतीश मुख्यमंत्री पद छोडे तो समझौता हो सकता है.
लेकिन सियासत में कोई शर्त आखिरी नहीं होता. गुंजाइश हमेशा बनी रहती है. लिहाजा अगर नीतीश ये उम्मीद कर रहे हैं कि बीजेपी का साथ छोडने पर उन्हें राजद के लालटेन की रोशनी मिल जायेगी तो गलत नहीं है. बिहार में क्या फिर से नया गठबंधन बनेगा, पुराने दोस्त फिर से दुश्मन बन जायेंगे या फिर और कोई नया घटनाक्रम सामने आयेगा ये फिलहाल बता पाना मुश्किल है. लेकिन इतना तो तय है कि आगे आने वाला समय बेहद दिलचस्प होगा.