BJP के लिए आखिर क्यों जरुरी हैं नीतीश, साथ नहीं रहे तो राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे फंसेगा पेंच

BJP के लिए आखिर क्यों जरुरी हैं नीतीश, साथ नहीं रहे तो राष्ट्रपति चुनाव में ऐसे फंसेगा पेंच

PATNA : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर इन दिनों सियासी गलियारे में खूब चर्चा हो रही है. चर्चा कभी उपराष्ट्रपति पद के लिए तो कभी राष्ट्रपति के उम्मीदवार के तौर पर खुद नीतीश कुमार ने राज्यसभा को लेकर जो बात कही उसके बाद कयास लगाया जा रहा है कि नीतीश कुमार केंद्र की सियासत में रुक कर सकते हैं लेकिन फर्स्ट बिहार आपको बताने जा रहा है कि दरअसल नीतीश कुमार के बगैर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में बीजेपी की स्थिति जमीनी तौर पर क्या होने वाली है. 


नीतीश बीजेपी के लिए कितने जरूरी हो जाते हैं इस बात को आंकड़े से समझा जा सकता है. सबको मालूम है कि देश में राष्ट्रपति का चुनाव होना है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए अधिसूचना जून महीने के दूसरे या तीसरे हफ्ते में जारी हो सकती है. राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है. एनडीए के पास संख्या बल तो है लेकिन इस चुनाव में जीत के लिए जो आंकड़े चाहिए उससे एनडीए थोड़ा कम है. ऐसे में पार्टी के बड़े नेताओं को संख्या बल जुटाने का लक्ष्य दिया गया है.


विधानसभा में बीजेपी और उसके गठबंधन दलों की स्थिति को देखते हुए एनडीए का पलड़ा भारी माना जा रहा है. लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति चुनाव के लिए 9000 वोट एनडीए के पास कम है. यह संख्या जुटाना एनडीए के लिए कोई बड़ी बात नहीं लेकिन इसके लिए यह भी जरुरी हो जाता है कि बीजेपी के साथ नीतीश कुमार जैसे मजबूत सहयोगी बने रहें. 


बता दें कि मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. ऐसे में जुलाई महीने के अंदर राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान तय माना  जा रहा है। उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए लोकसभा और राज्यसभा के सांसद ही मतदान करते हैं. इन दोनों सदनों में एनडीए के पास पर्याप्त बहुमत है लेकिन राष्ट्रपति के लिए जो निर्वाचक मंडल होता है उसमें संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के साथ-साथ विधानसभाओं के सदस्य भी मतदान करते हैं.


आंकड़े बताते हैं कि राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल का वोट 10 लाख 98 हजार 903 है. किसी भी उम्मीदवार की जीत के लिए बहुमत का आंकड़ा 5 लाख 49 हजार 452 है. हर राज्य के विधानसभा सदस्यों के वोट का मूल्य अलग अलग होता है. जैसे उत्तर प्रदेश के विधायक के के वोट का मूल्य सबसे ज्यादा है यूपी के एक विधायक के वोट का मूल्य 208 है. बिहार में भी विधायकों का वोट मूल्य ज्यादा है लेकिन मौजूदा स्थिति को अगर जोड़ दें तो एनडीए और सत्ताधारी बीजेपी के पास लगभग 9000 वोटों की कमी दिख रही है. 


ऐसे में बीजेपी को कुछ क्षेत्रीय दलों का साथ लेना होगा. भारतीय जनता पार्टी ने इसके लिए नेताओं की टीम भी बना दी है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए वोटों का जुगाड़ करना है. उसके लिए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, मंत्री पीयूष गोयल, संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी को जिम्मेदारी दी गई है. जाहिर है ऐसे में नीतीश कुमार की अहमियत बढ़ जाती है. इसके बगैर बीजेपी के लिए राष्ट्रपति चुनाव की राह आसान नहीं होगी. नीतीश राष्ट्रपति बने या ना बने उपराष्ट्रपति के पद पर जाएं या ना जाएं लेकिन इतना जरूर है कि नीतीश फिलहाल बीजेपी के लिए मजबूरी भी हैं और जरूरी भी.