खतरनाक है नीतीश का बिहार : 10 सालों में 213 आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले, दो सालों से सरकार ने नहीं की कोई कार्रवाई

खतरनाक है नीतीश का बिहार : 10 सालों में 213 आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले, दो सालों से सरकार ने नहीं की कोई कार्रवाई

PATNA : नीतीश सरकार में सूचना मांगना अपराध बनता जा रहा है. सूचना के अधिकार कानून के तहत सूचना मांगने वालों पर जुल्म लगातार बढ़ता जा रहा है. बिहार में पिछले 10 सालों में सूचना का अधिकार मांगने गये लोगों पर हमले एवं प्रताड़ना को लेकर कम से कम 213 केस दर्ज किए गए हैं. सरकार का हाल ये है कि फरवरी, 2018 से अब तक सूचना का अधिकार यानि आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हमले के 21 मामलों में कोई कार्रवाई नहीं हुई है.


आरटीआई से ही मिली जानकारी
बिहार में आरटीआई के तहत सूचना मांगने वालों के इस हाल की जानकारी भी आरटीआई के तहत ही मिली है. अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने इसकी विस्तृत रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में नागरिक अधिकार मंच के संयोजक और आरटीआई कार्यकर्ता शिव प्रकाश राय ने बताया ‘मैंने आरटीआई कार्यकर्ताओं पर हुए हमलों और प्रताड़ना की जानकारी मांगी थी. जब मैंने कार्यकर्ताओं के खिलाफ दायर मामलों की जानकारी मांगी तो मुझे बताया गया है कि 213 में से 184 मामलों को निपटाया जा चुका है. लेकिन सरकार ने इसकी जानकारी नहीं दी है जिन पर हमला या प्रताड़ना करने का आरोप था उनके खिलाफ क्या कार्रवाई की गयी.’


अब तक 17 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या
बिहार में सूचना के अधिकार कानून यानि आरटीआई के तहत सूचना मांगने वाले 17 लोगों की हत्या हो चुकी है. शिव प्रकाश राय ने बताया कि बिहार सरकार के  गृह विभाग ने उन्हें य़े जानकारी दी है कि 2008  से अब तक 17 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. इसके अलावा भी कई लोगों पर जानलेवा हमले हुए हैं कई लोगों के खिलाफ झूठे मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जा चुका है.


आरटीआई कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय के खिलाफ दर्ज मामला भी अभी लंबित है. उनका कहना है कि सूचना मांगने के कारण उन्हें जेल भेज दिया गया. तीन साल पहले एक आरटीआई कार्यकर्ता ने बक्सर एसपी से सूचना मांगी तो एसपी ने उसके खिलाफ दुर्व्यवहार का केस दर्ज करा दिया. आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि वे इस मामले को लेकर डीजीपी के पास भी गये लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी.


ऐसा ही एक और मामला बेगूसराय के रहने वाले 70 साल के गिरीश गुप्ता का है. गिरीश गुप्ता बताते हैं कि सूचना मांगने के बाद उन्हें मई 2020 में ब्लॉक के कर्मचारियों ने बुरी तरह पीटा. गिरीश गुप्ता ने बताया ‘मैंने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी कि क्या सरकारी कर्मचारी या पुलिस अपने आयकर रिटर्न में अपने जन्मदिन पर प्रकाशित होने वाले विज्ञापनों के खर्च का उल्लेख करते हैं. पुलिस इस आरटीआई के कारण मुझसे नाराज थी. लॉकडाउन के दौरान मेरे घर पर आकर सरकारी कर्मचारियों ने मुझे बुरी तरह से पीटा. मैं बुढ़ापे के कारण मुश्किल से चल पाता हूं लेकिन मुझ पर लॉकडाउन उल्लंघन को लेकर केस दर्ज किया गया.’


पिछले साल अगस्त में बक्सर में ऐसा ही एक और मामला सामने आया था. आरटीआई के तहत सूचना मांगने वाले एक व्यक्ति के नाबालिग बेटे पर आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जेल भेज दिया गया था. उस व्यक्ति ने नीतीश कुमार की ड्रीम योजना सात निश्चय में गड़बड़ी, मनरेगा में घोटाले और पैक्स द्वारा धान खरीद में अनियमितता को लेकर कई आरटीआई आवेदन दायर किये थे. बेटे के जेल जाने के बाद उन्होंने सूचना मांगने से तौबा कर ली है.


बिहार का ये हाल तब है जब सरकारी आदेश है कि आरटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ अत्याचार के सभी मामलों को एक महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए और प्रत्येक मामले पर पुलिस अधीक्षक (एसपी) की नजर होनी चाहिए. सरकारी आदेश में साफ किया गया है कि अगर एसपी के खिलाफ शिकायत होती है तो पुलिस महानिरीक्षक को ऐसे मामलों को देखना चाहिए. लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इस बाबत जब बिहार के गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव आमिर सुबहानी से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि वे लंबित मामलों की जांच कराएंगे.