ARRAH : आज के हर एक युवक का सपना होता है ऑफिसर बनना. लेकिन दूसरी तरफ कुछ ऐसे युवा भी है. जो प्रशासनिक अधिकारी का जॉब छोड़ असिस्टेट प्रोफेस बन गए. इनके लिए सम्मान के साथ सुकून की जिंदगी ज्यादा अहम है. बता दें बीते कुछ सालों में वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में ऐसे आधा दर्जन असिस्टेट प्रोफेसर पोस्टेड हुए हैं. जो पहले से प्रशासन और पुलिस में बड़े पोस्ट पर थे.
इन सभी असिस्टेट प्रोफेसरों का कहना है कि प्रशासनिक अफसर बनने में रूतबा और सम्मान जरूर है. लेकिन जवाबदेहियों में उलझ कर आप ना अपनी पढाई कर सकते है ना ही कोई प्रयोग. जबकि शिक्षा क्षेत्र को चुनने का बड़ा फायदा है कि आप अपनी पढ़ाई और ज्ञान अर्जित करने की रूचि को जारी रख सकते हैं. इस=इन्हीं में से एक डीएसपी का पद छोड़कर एसबी कालेज में भूगोल के सहायक प्राध्यापक बने सदाम हुसैन कहते हैं कि पुलिस अधिकारी को जो सम्मान मिलता है, उससे थोड़ा भी कम सम्मान गुरु का नहीं है. इसीलिए, जब मौका मिला, तब उन्होंने अध्यापन को अपना करियर चुना. दूसरी तरफ एसबी कालेज में इतिहास विभाग में अभिनव आनंद, एचडी जैन कालेज के भूगोल विभाग में कुमार निर्भय, स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में शशि भूषण देव आदि भी ऐसे ही शिक्षक हैं. जो बड़े पोस्ट को त्याग कर आए हैं.
स्नातकोत्तर इतिहास विभाग में शशि भूषण देव पोस्टेड हैं जो 53-55वीं बीपीएससी परीक्षा में बीडीओ पद के लिए चयनित हुए. छापरा जिले के गड़खा प्रखंड में में छह माह ड्यूटी कि लेकिन संतुष्टि नहीं मिली. कहते हैं कि मन अच्छे पद को पाकर खिल उठता है, लेकिन परिवार के लिए समय नहीं मिलता है. यह मुझे अंदर से कचोटता रहा. शिक्षक कार्य में आंतरिक शांति है और सम्मान भी है. एसबी कालेज के भूगोल विभाग में सदाम हुसैन असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. 56वीं बीपीएससी परीक्षा में डीएसपी के लिए चयनित किये गए और पटना ऑफिस में छह माह सेवा भी दी. उनका कहना है पुलिस की नौकरी रास नहीं आई. शिक्षक बनने में सम्मान और संतुष्टि दोनों है.