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बिहार की बहादुर बिटिया, पापा को साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से दरभंगा ले आयी

1st Bihar Published by: PRASHANT KUMAR Updated Mon, 18 May 2020 08:38:00 AM IST

बिहार की बहादुर बिटिया, पापा को साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से दरभंगा ले आयी

DARBHANGA : वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से बाहर फंसे मजदूरों की बेबसी का ट्रक वाले जमकर फायदा उठा रहे हैं. मानवता के ठिक उलट लॉकडाउन उनके लिए फायदे का सौदा बन गया है. मजदूरों को उनके गंतव्य स्थान तक पहुंचाने के एवज में मनमाना भाड़ा वसूल रहे हैं. वहीं मनमाना भाड़ा ने दे पाने के कारण दिल्ली में फंसा दरभंगा का एक बिमार मजदूर घर नहीं आ पा रहा था.  पर उसकी बहादुर 13 साल की बिटिया ने दिल्ली से पिता के साथ घर पहुंचने की ठान ली. 

पिता के पास पैसा नहीं देखकर बहादुर बिटिया ने साइकिल से घर लौटने का फैसला किया.  कमतौल थाना इलाके के सिंहवारा प्रखंड के सिरहुल्ली गांव के मोहन पासवान की 13 साल की बेटी ज्योति कुमारी अपने बिमार पिता को साइकिल पर बैठाकर दिल्ली से 8 दिन में दरभंगा पहुंची. जिसके बाद परिजन और ग्रामीणों ने उन्हें गांव के पुस्तकालय में क्वारेंटाइन कर दिया है. 


अपने गांव पहुंचने के बाद बीमार पिता ने जो आपबीती सुनाई तो उनका दर्द सामने आ गया.  मोहन पासवान ने बताया वे दिल्ली-नोएडा कापासहेरा बॉर्डर पर ई रिक्शा चलाते थे. लॉकडाउन के पूर्व ही उनका 26 जनवरी को दिल्ली में एक्ससिडेंट हो गया और उनके जांघ की हड्डी कई भागों में टूट गयी. इस बीच  उन्हें पता चला कि दरभंगा से कुछ ग्रामीण दिल्ली आ रहे हैं. तब उन्होंने अपनी देखरेख के लिए अपनी बेटी ज्योति को इनलोगो के साथ दिल्ली बुला लिया. इस बीच लॉकडाउन हो गया औऱ काम बंद होने के कारण उन्होंने घर लौटने का मन बनाया. लेकिन कोई वाहन नहीं मिलने पर ट्रक वाले से बात की उसने दो लोगों को दरभंगा छोड़ने के लिए 6000 की मांग की. लेकिन पास में पैसा नहीं होने के कारण वे नहीं आ पाए. इसके बाद बेटी ने साइकिल से ही अपने पिता को घर ले जाने का फैसला लिया. पिता ने लाख मना किया पर बेटी नहीं मानी.  बेटी की जिद के आगे पिता भी झुक गए और साइकिल से ही दरभंगा के लिए निकल पड़े.  8 दिनों की लंबी यात्रा को तय कर दोनों अपने घर सकुशल पहुंच गए. पिता को अपनी बेटी पर गर्व है. 

वहीं बिहार की बहादुर बिटिया ज्योति ने बताया मेरे पापा के पास तो 500 रुपये भी नहीं थे और हालात दिन ब दिन खराब होते जा रहे थे. घर मे खाने को पैसे नहीं और  मकान मालिक की प्रताड़ना अलग थी. पिता के लिए दवा का भी इंतजाम नहीं कर पा रही थी. ऐसे में प्रधानमंत्री की सहायता राशि के 500 रुपये बैंक में आए और उसने दरभंगा आने का मन बना लिया. अपनी दृढ़ निश्चय की बदौलत ज्योति अपने पिता के साथ गांव पहुंच गई है.