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बिहार के इस अस्पताल में तांत्रिकों का बोलबाला, सांप काटने के बाद अस्पताल पहुंचे मरीजों का तांत्रिक करने लगा झाड़ फूंक, घंटों चलता रहा अंधविश्वास का खेल

1st Bihar Published by: SANT SAROJ Updated Mon, 15 Jul 2024 09:24:28 PM IST

बिहार के इस अस्पताल में तांत्रिकों का बोलबाला, सांप काटने के बाद अस्पताल पहुंचे मरीजों का तांत्रिक करने लगा झाड़ फूंक, घंटों चलता रहा अंधविश्वास का खेल

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SUPAUL: आज के आधुनिक युग में भी अंधविश्वास की जड़ें इतनी मजबूत हैं कि लोगों का विज्ञान और तर्क के बजाय तंत्र-मंत्र पर ज्यादा भरोसा है। इसका एक जीवंत उदाहरण आज सुपौल के त्रिवेणीगंज अनुमंडलीयअस्पताल में देखने को मिला जहां सांप काटने के बाद दो मरीजों को इलाज के लिए अस्पताल लाया गया था लेकिन अस्पताल में डॉक्टरों के पास पहुंचने से पहले ही तीन तांत्रिकों को अस्पताल परिसर में बुलाया गया। जिसने घंटों झाड़-फूंक का नाटक किया। इतना ही नहीं इस नाटक को देखने के लिए अस्पताल में लोगों की भीड़ लग गयी। तब घंटों अंधविश्वास का खेल चलता रहा और अस्पताल प्रशासन हाथ पर हाथ धर यह सब देखते रहे।


त्रिवेणीगंज अनुमंडलीय अस्पताल में तांत्रिकों का इस कदर बोलबाला था कि वहां की चिकित्सा व्यवस्था भी कुछ समय के लिए मौन रह गई। तांत्रिकों ने झाड़-फूंक की प्रक्रिया को इतना खींचा कि मरीजों का इलाज शुरू होने में काफी देर हो गई। दरअसल त्रिवेणीगंज के ही महेशुवा वार्ड 11 का एक 10 साल का बच्चे को सांप ने काट लिया था। वही त्रिवेणींगज के ही बघला गांव की एक महिला भी सर्पदंश के बाद इलाज के लिए त्रिवेणीगंज अस्पताल पहुंची थी लेकिन तांत्रिकों के द्वारा घंटो चले इस ड्रामें में अस्पताल प्रशासन भी मूकदर्शक बना रहा और किसी ने भी इस अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश नहीं की। 


इससे स्पष्ट होता है कि आज भी गांव के कुछ लोग तंत्र-मंत्र पर कितनी आस्था रखते हैं। जबकि मेडिकल साइंस के क्षेत्र में इतनी तरक्की हो चुकी है। तांत्रिकों द्वारा किए गए झाड़-फूंक के नाटक के बाद डॉक्टरों ने मरीजों का इलाज शुरू किया। हालांकि गनीमत रही कि दोनों मरीजों में सर्पदंश के कोई लक्षण नही थे। त्रिवेणीगंज अस्पताल के चिकित्सक डॉ. देव दिवाकर ने कहा कि दोनों मरीजों में सर्पदंश के कोई लक्षण नहीं था फिलहाल दोनों की हालत स्थिर है। बहरहाल यह जरूरी है कि लोगों को अंधविश्वास और तंत्र-मंत्र के चक्कर से निकालकर चिकित्सा विज्ञान पर विश्वास करना सिखाया जाए। इसके लिए शिक्षा और जागरूकता अभियानों की जरूरत है, ताकि समाज इस तरह के अंधविश्वासों से मुक्त हो सके और स्वस्थ जीवन की ओर कदम बढ़ा सके।