GAYA :गया जिले के मानपुर का पटवा टोली पहचान का मोहताज नहीं है।कोई साल ऐसा नहीं, जब यहां के आठ-दस बच्चे आइआइटी के लिए चयनित नहीं होते हो, बड़ी-बड़ी कंपनियां हो, टेक्नोक्रेट्स हों या ब्यूरोक्रेट्स, सब इसे जानते हैं. इस गांव के गौरव में चार चांद लगाने वाली एक बात और है कि यहां कभी दहेज न लिया जाता है, न दिया जाता है। अब कोरोना संकट के बीच इस टोली की एक और बड़ी खासियत सामने आयी है। यहां 25 हजार मजदूरों को 24 घंटे में रोजगार देने की क्षमता है। लेकिन एक मामली वजह से यहां हजारों लोगों को रोजगार देने का मामला फंस गया है।
गया के मानपुर का पटवाटोली 24 घंटे में 25 हजार प्रवासी मजदूरों को रोजगार दे सकता है। मानपुर की पटवा टोली में लगभग साढ़े नौ हजार हथकरघा व विद्युतकरघा संचालित हैं। इनमें लगभग दस हजार बुनकर और मजदूर काम करते हैं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान हजारों मजदूर अपने-अपने घरों को वापस लौट गये। लेकिन पटरी पर लौटती जिंदगी के बीच अभी भी यहां सबकुछ सामान्य नहीं हो सका है। गया जिला प्रशासन और बुनकर समिति के आपसी तालमेल के अभाव में यहां का कपड़ा उद्योग ठप पड़ा हुआ है। पावरलूम खामोश पड़े हुए हैं।
बुनकर समिति के अध्यक्ष प्रेम नारायण पटवा ने दावा किया है कि जिला प्रशासन कपड़ा उद्योग से जुड़े मजदूरों व कामगारों को चिन्हित कर सूची उपलब्ध कराए तो 24 घंटे के अंदर 25हजार कामगारों को काम पावरलूम में मिल सकता है। उन्होनें कहा कि चूंकि मानपुर पावरलूम में लॉक डाउन के पहले 45हजार मजदूर काम कर रहे है जिसमे आधा वापस अपने घर चले गए मजदूरों व कामगारों की कमी है।यहां कपड़े का डिजाइन,पावरलूम ऑपरेटर,मजदूर,कपड़े को ढोना सहित कई कार्य है लेकिन अधर में लटका है।वहीं अगर 3शिफ्ट में 24 घंटे पावरलूम पर काम हो तो 60हजार अप्रवासी मजदूरों को काम देने की क्षमता पटवा टोली रखती है।
लॉक डाउन में विभिन्न प्रदेशों से गया जिले में हजारों प्रवासी मजदूर गया पहुंचे है। जिला प्रसाशन द्वारा स्थानीय क्वारेंटीन सेंटरों में रखा गया और उनके रोजगार के लिए क्वारेंटीन सेंटरों के अलावे डोर टू डोर स्क्रीनिंग के दौरान स्किल मैपिंग की गई है और की जा रही है। सूरत में कपड़ा उद्योग से जुड़े करीब 1500 सौ कामगारों की सूची भी जिला प्रशासन ने बनाई है वहीं पूरी सूची 6870 पेजो में बनाई गयी है। ये सूची बुनकर समिति को दी गयी और जिला प्रशासन की तरफ से कहा गया है कि इसमें से 1500 सौ मजदूरों को अलग कर उन्हें काम दे।अब बुनकर समिति के सामने सबसे बड़ी समस्या ये पेश आ रही है कि इतनी लंबी-चौड़ी सूची में से कपड़ा उद्योग के जानकार मजदूरों को खोंजे तो कैसे खोंजे।
इस सम्बंध में डीएम अभिषेक सिंह ने बताया कि सभी प्रवासी मजदूरों का स्किल मैपिंग कराई गई जिसमें स्किल और अनस्किल्ड है।रोजगार देने के लिए बुनकर समितियों से बात हुई है।वहीं मनरेगा के तहत कई लोगो को जॉब कार्ड बनाकर काम दिया गया है।उन्होनें बताया कि बिहार के अन्य स्थानों के प्रवासी मजदूरों को भी इस जिले में काम देने की क्षमता है।