फर्स्ट बिहार की पड़ताल: गया के कई गांवों में ताबड़तोड़ धर्मांतरण, ईसा मसीह को मानने पर बीमारी दूर होने से लेकर वेतन तक का लोभ

फर्स्ट बिहार की पड़ताल: गया के कई गांवों में ताबड़तोड़ धर्मांतरण, ईसा मसीह को मानने पर बीमारी दूर होने से लेकर वेतन तक का लोभ

PATNA : बिहार के गया जिले में ताबडतोड़ धर्मांतरण का खेल जारी है. अब गया के डोभी प्रखंड के पांच सौ से ज्यादा लोगों के धर्म बदलने का मामला सामने आया है. इससे पहले गया शहर के नगर प्रखंड स्थित नैली पंचायत के बेलवादीह गांव में करीब 50 परिवारों के धर्मांतरण का मामला उजागर हुआ था. फर्स्ट बिहार की टीम ने डोभी प्रखंड के कई पंचायतों में पड़ताल किया. पता चला लोगों की बीमारी ठीक करने से लेकर वेतन तक के लालच पर धर्म बदला जा रहा है.


डोभी पहुंची फर्स्ट बिहार की टीम
फर्स्ट बिहार की टीम गया के सूदूरवर्ती प्रखंड डोभी के एक गांव में पहुंची. वहां ईसाई धर्म का कैंप लगा था. उसे अस्थायी चर्च का रूप दिया गया था. चर्च के उस कैंप में 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे. सब से सब मांझी परिवार के. पूछने पर पता चला इन तमाम लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया है. कैंप की कमान एक महिला के हाथों में थी. जो बोलने के लहजे से दक्षिण भारतीय लग रही थी. हमारी टीम ने जब पूछा तो उन्होंने अपना नाम दीदी बताया. कहा-सब यहां दीदी कहते हैं इसलिए आप भी दीदी ही बोलिये. वेशभूषा बिल्कुल हिन्दू धर्म की साध्वी जैसा. वैसा ही हल्का गेरूआ वस्त्र औऱ चादर ओढे हुए.



धर्म परिवर्तन का कारण जानिये
डोभी के उस धार्मिक कैंप में सुरेंद्र मांझी बैठे थे. उन्हें ईसा मसीह के संदेश बताये जा रहे थे. हमारी टीम ने सुरेंद्र मांझी से पूछा तो उन्होंने बताया कि वे पहले हिन्दू थे लेकिन अब ईसाई बन गये हैं. सुरेंद्र मांझी की जुबानी ही समझिये वे क्यों ईसाई बन गये. “हमारा तबीयत खराब रहता था. हमको कहा गया कि कैंप में आकर पिता परमेश्वर( ईसा मसीह) की पूजा करो तो बीमारी ठीक हो जायेगा और सुख-शांति से परिवार चलाओगे. हम यहां आय़े तो हमारा बीमारी ठीक हो गया. इसलिए ईसाई धर्म अपना लिये.”


हमारी टीम सुरेंद्र मांझी से बात कर ही रही थी कि उस कैंप की संचालिका दीदी वहां पहुंच गयी. उन्होंने मीडिया की टीम को टोका औऱ सुरेंद्र मांझी को वहां से जाने को कहा. बात अधूरी रह गयी.



बेटी की बीमारी ठीक करने के लिए बुलाया गया था
वहीं सविता मांझी मिली. डोभी के पास ही उनका गांव है. सविता मांझी बोली-हमारी बेटी की तबीयत बहुत खराब रहती थी. इस कैंप में कुछ लोग आते थे, वे सब बोले कि कैंप में चलोगी तो बेटी की तबीयत ठीक हो जायेगी. हम यहां आये तो बेटी की तबीयत ठीक हो गयी. पिता परमेश्वर सब ठीक कर दिये हैं इसलिए हम ईसाई धर्म मानने लगे हैं. 


एक दूसरे व्यक्ति ने कहा कि उसे इलाज के लिए मदद मिली थी. हम उससे जब तक पूरी बात कर पाते तब तक उसे वहां से हटने का इशारा दिया गया औऱ वह निकल गया.


अब हमने उस चर्च औऱ कैंप की संचालिका से बात करना शुरू किया. वेशभूषा से वे हिन्दू साध्वी लग रही थी. गेरूआ रंग का वस्त्र और वैसा ही चादर. हमने उनका नाम पूछा. जवाब मिला-यहां सब दीदी ही कहते हैं इसलिए आप दीदी ही कहिये. हालांकि बोलने का लहजा दक्षिण भारतीय था. हमने पूछा- यहां लोगों को क्यों बुलाया है. जवाब मिला-परमेश्वर को याद कराने के लिए बुलाया है.


दीदी ने कहा-
हिन्दू धर्म में परमेश्वर का नाम सिर्फ एक बार परमेश्वर का नाम लिया जाता है. जब शादी होता है तो कार्ड पर छपता है कि परमेश्वर की कृपा से शादी हो रही है. हम इन लोगों को सिखाते हैं कि रोज परमेश्वर को याद करो. परमेश्वर को याद करोगे तो जीवन सुखमय रहेगा. हमने सवाल पूछा कि क्या उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है. दीदी ने बड़ी चालाकी से सवाल टाल दिया. एक दफे भी स्वीकार नहीं किया कि वे धर्म परिवर्तन करा रही हैं. लेकिन वहां बैठा हर आदमी ये कह रहा था कि उसने हिन्दू धर्म छोड़ कर ईसाई धर्म अपना लिया है.


स्थानीय लोगों ने बताया कि ऐसे कई लोग डोभी के इलाके में घूम रहे हैं जिनका मकसद धर्म परिवर्तन कराना है. उनका वेशभूषा सब हिन्दू धर्म गुरूओं के जैसा है. टारगेट पर मांझी यानि मुशहर जाति के लोग हैं. गरीब औऱ अशिक्षत तबके से आने वाले मुशहर जाति के लोगों का बडे पैमाने पर धर्म परिवर्तन कराया गया है. ये सिलसिला रोज जारी है.