बिहार के इस बगीचे की बात ही कुछ और है: 56 बीघे के एक बाग में 45 किस्म के आम, कई ऐसे जो कहीं और नहीं मिलेंगे

बिहार के इस बगीचे की बात ही कुछ और है: 56 बीघे के एक बाग में 45 किस्म के आम, कई ऐसे जो कहीं और नहीं मिलेंगे

BUXAR : क्या आपके आम का कोई ऐसा बगीचा देखा है जिसमें एक साथ 45 तरह के आम की खूशबू आये. बाग में घुसते ही अल्फांसों की खूशबू आपको मदहोश कर दे, कुछ दूर आगे लंगड़ा, फिर दशहरी, जर्दालू, चौसा, कृष्णभोग औऱ ना जाने कितने औऱ तरीके के आम. बक्सर में आम का ऐसा ही बगीचा है. यहां आम की ऐसी दुलर्भ प्रजाति के पेड लगे हैं जो आपको कहीं औऱ नहीं मिले.


बक्सर का बाग-ए-कला
ये बक्सर का बाग-ए-कला है. स्थानीय लोग इसे बड़का बगीचा भी कहते हैं. ये बक्सर के डुमरांव राज परिवार की संपत्ति है. 56 बीघे में फैले बाग-ए-कला में 45 किस्म के आम की खूशबू बिखरने लगी है. बगीचे में लगे आम के साथ साथ 100 से ज्यादा किस्म के फूलों की सुगंध जब मिलती है तो फिर आपकी रूह भी तृप्त हो जायेगी. 100 साल से भी ज्यादा समय से डुमराव राज परिवार ने अपने इस बाग को इस तरह सजाया-संवारा है कि जो वहां जाये उसका जी वहीं बस जाने का करे. फल-फूलों के पेड़ के बीच विशाल तालाब औऱ भगवान शिव का मंदिर इसे औऱ मनोरम बनाते हैं.


बिहार में अल्फांसो आम यहीं मिलेंगे
महाराष्ट्र का प्रसिद्ध अल्फांसो आम बिहार में कहीं मिलेगा तो बक्सर के बाग-ए-कला में ही. बक्सर राज परिवार  के महाराज चंद्रविजय सिंह बताते हैं कि कई लोगों ने कहा था कि अल्फांसो आम का पेड़ बिहार की जलवायु में नहीं टिक सकता. लेकिन यहां अल्फांसों आम के एक दर्जन पेड़ हैं. उनमें फल भी आ रहे हैं. 


दुर्लभ ‘खात्मा विलखेर’ प्रजाति के आम भी मिलेंगे
आम की प्रजाति खात्मा विलखेर का नाम बहुत कम लोगों ने सुना होगा. लेकिन ये आम की बहुत उत्कृष्ट प्रजाति मानी जाती रही है. देश भर के राजघरानों के बाग-बगीचे में आम की ये प्रजाति जरूर लगायी जाती है. डुमराव राज परिवार के लोग बताते है कि तकरीबन 100 साल पहले रोहतास के कोआथ नवाब ने डुमराव महाराज केशव प्रसाद सिंह को खात्मा विलखैर प्रजाति के आम के पेड़ भेंट किये थे. नवाब ने आधा दर्जन पेड़ भेट किये थे. अब इस बाग में खात्मा विलखैर प्रजाति के दो दर्जन से ज्यादा पेड़ हैं. डुमराव राज घराने के लोग आम की इस प्रजाति को हर साल त्रिपुरा से लेकर ग्वालियर राज घराने को ये आम तोहफे में भेजते हैं. 


बक्सर के बाग-ए-कला में हर वह आम मौजूद है जिसे उत्कृष्ट किस्म का माना जाता है. चाहे तो वह लंगड़ा आम हो या दूधिया. कृष्णभोग हो या जर्दालु. चौसा हो या दशहरी. या फिर छोटे पौधे वाला आम्रपाली. आम के इतने प्रकार के पेड़ लगे हैं जिन्हें पूरा याद रख पाना मुश्किल है.


बाग से राजपरिवार का खास लगाव
बाग-ए-कला को डुमरांव राज परिवार ने बहुत सहेज कर रखा है. आज भी डुमराव राज परिवार में किसी का जन्म होने पर इस बाग में आम का एक पेड़ जरूर लगाया जाता है. परिवार में कोई बड़ा उत्सव हो तो भी आम का एक पौधा लगता है. राज परिवार के लोगों ने अपने जन्मदिन पर भी पेड़ लगाने का रिवाज बना रखा है. 56 बीघे के इस बगीचे की देखभाल के लिए वैसे तो एक दर्जन से ज्यादा कर्मचारी लगे रहते हैं लेकिन फिर भी राजपरिवार के सदस्य खुद इसकी देखभाल में जुटे रहते हैं.